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सी एम ई आर आई, दुर्गापुर में प्रशिक्षण

मुझे विगत 9 नवम्‍बर से लेकर 17 नवम्‍बर 2010 तक सी एम ई आर आई, दुर्गापुर जाकर वहां के लडकों को प्रशिक्षण देने का मौका मिला। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम दुर्गापुर के संस्‍थान के अनुरोध पर मेरे द्वारा दिया गया। मैं इसके लिए उन सबों के प्रति आभार प्रकट करता हॅूं जिन्‍होंने मेरा चयन इसके लिए किया तथा मुझे वहां आने के लिए आमंत्रित किया। प्रशिक्षण में नामित अधिकांशत: कार्मिक मेरे ही बैच मेट थे इसलिए मुझे प्रशिक्षण देने में कोई परेशानी नहीं हुई और न ही मुझे वहां रहने-खाने आदि की कोई परेशानी हुई। उनलोगों ने व्‍यवस्‍था में किसी तरह की कोई कमी नहीं की थी। मैं जिन्‍दगी में कभी भी सी एम ई आर आई, दुर्गापुर को भूला नहीं सकता। इसी संस्‍थान ने मुझे रोजी-रोटी दी है। मैं वहां इम्‍प्रेस साफटवेयर तथा आयकर से संबंधित प्रोग्राम का प्रशिक्षण देने गया था तथा मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपने आप से जितना हो सकता उतना प्रशिक्षण देने का प्रयास किया और सफल भी रहा। मैं व्‍यक्तिगत रूप से वहां के सभी अनुभाग अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारी महोदय तथा निदेशक महोदय के प्रति कृतज्ञता के भाव अर्पित करता हूँ।

बेचारा

बेचारा शब्‍द से न जाने मुझे क्‍यों घृणा सी हो गई है। इस शब्‍द का उपयोग दूसरों पर करने से पहले मैं सौ बार सोचता हूँ क्‍योंकि मैं खुद को इस शब्‍द का पर्यायवाची समझता हॅूं। हर रिश्‍ते नाते से जुडा हुआ हॅूं मगर फिर भी अकेलेपन की अनुभूति होती रहती है। माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची सभी हैं आस-पास इसके बावजूद हर वक्‍त अकेलेपन का आभास होता है। रिश्‍ते नाते किसी सागर की लहरों की भांति चोट करते रहते हैं। इन सबके बीच मैं अकेला खडा चोटिल होता हुआ महसूस करता रहता हूँ। लोग नित नए रिश्‍ते बनाते हैं मगर मैं रिश्‍ते नातों की दुनिया से दूर रहने की कोशिश करता रहता हॅूं क्‍योंकि वक्‍त के थपेडे ने मुझे कटु सत्‍य से परिचय करा दिया है।

बीते कल की कहानी

मैंने अपने जीवन में कई उतार चढाव देखे, कई रिश्‍तों को पुन:र्जन्‍म लेते देखा, कई रिश्‍तों को रिश्‍तों के मायने तलाशते देखा, कई रिश्‍तों को सामाजिक बंधनों की मर्यादा मानते हुए निभाते हुए देखा, कई रिश्‍तों को बदलते बिगडते देखा, कई रिश्‍तों को महज सामाजिक बंधनों की मार्यादा के कारण ही बंधे रहते देखा। अपने 32 वर्ष के जीवन में मुझे रिश्‍ते नाते के व्‍यवहारिक दुनिया ने कई दौर दिखाए। मुझे ऐसा लगता है जैसे कि रिश्‍ते नाते की इस दुनिया में मैं काफी बूढा हो चुका हूँ। ऐसा लगने लगा है जैसे हर कोई महज सामाजिक बंधनों की मर्यादा का पालन करते हुए रिश्‍ते नाते निभाने को बाध्‍य हैं। अब तो रिश्‍ते नाते चुभने लगे हैं। रिश्‍ते नातों की इस दुनियां में सब कुछ के रहने के बावजूद मैं अपने आप को अकेला महसूस कर रहा हूँ। दूर दूर तक कोई तो नहीं है आस पास। आंखे बंद करता हूँ तो भी रिश्‍ते नातों से भरे मेरे जीवन में मुझे सिर्फ एक शख्‍स को छोडकर कोई नहीं दिखता और जो दिखता भी है उससे मेरा कोई खून का रिश्‍ता है भी नहीं। चाहे खुशी के पल हो या फिर दुख के मैं तो हर वक्‍त खुद को अकेला ही पाता हॅूं। कोई नहीं जिससे मैं अपने जीव

एक लक्ष्य जो अंततः मैंने पा ही लिया...(ईमेल में वेतन स्लिप)

इससे पहले कि मैं इस विषय पर कुछ भी लिखूं सर्वप्रथम मैं अनुभाग अधिकारी श्री राजेश कुमार सिंह रौशन के साथ साथ सूचना व संचार प्रोद्योगिकी इकाई (आई.सी.टी.- यू) के वैज्ञानिक प्रमुख श्री व्योमकेश दास और वैज्ञानिक श्री सुदीप कुंडू को व्यक्तिगत रूप से हार्दिक बधाई देता हूँ जिनके सहयोग से मैंने उस लक्ष्य को अंततः पा ही लिया जो मैंने इस प्रयोगशाला के स्थापना IV / बिल अनुभाग में कार्यभार ग्रहण करने के बाद निर्धारित किया था। 1 सितम्बर, 2008 को CMERI, Durgapur से ट्रान्सफर के बाद मैंने NML जमशेदपुर में अपना कार्यभार ग्रहण किया। उस समय मेरी तैनाती AO Office में हुई। 2 महीनों के बाद नवम्बर, 2008 में मेरी तैनाती इस प्रयोगशाला के बिल अनुभाग में कर दी गयी। बिल अनुभाग में मुझे इस प्रयोगशाला के ग्रुप डी स्टाफ और कैंटीन स्टाफ के वेतन बिल से सम्बंधित कार्य के अलावा ओवर टाइम पेमेंट से सम्बंधित कार्य सोंपा गया। अचानक कुछ ही महीनों के बाद अगस्त, 2009 में मुझे ग्रुप डी स्टाफ और कैंटीन स्टाफ के वेतन बिल के बदले इस प्रयोगशाला के सभी वैज्ञानिको, अनुभाग अधिकारीयों तथा तकनीकी अधिकारियों के वेतन बिल बनाने का काम सों

मेरी अंतिम इच्छा.

बहुत कुछ सोचकर अंततः आज मैं अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर रहा हूँ। जन्म से लेकर आज तक मैं जलता ही रहा हूँ। कभी अपनों ने तो कभी अपने बनकर परायों ने मुझे आज तक सिर्फ और सिर्फ जलाया ही है। मैं रोजाना ही इस तपिस में जल ही रहा हूँ। वर्षों से मेरा रोम-रोम इस तपिस की ज्वाला से अन्दर ही अन्दर सुलग रहा है। मैं अब और जलना नहीं चाहता इसलिए मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मरने के बाद मेरे नश्वर शरीर को जलाया नहीं जाय बल्कि इसे दफना दिया जाय। बहुत दिनों तक सोचने के बाद मैंने अपने इस अंतिम इच्छा को व्यक्त की है। कल को मैं रहूँ या ना रहूँ मेरे इस ब्लॉग के माध्यम से अभिव्यक्त टिप्पण को मेरी अंतिम इच्छा मानी जाय। और एक बात मैंने ROSHANI FOUNDATION के द्वारा अपना नेत्र दान करवा रखा है अतः मेरे मरने के फ़ौरन बाद इसकी सूचना नजदीकी हॉस्पिटल को देकर मेरा नेत्र दान कराने की कृपा की जाय.

मेरी चाहत या मेरा पागलपन.

एक लड़की जो मेरे दिल में मोहब्बत का पैगाम लेकर आई और जिसे जिन्दगी मानकर मैं जीने को विवश हो गया मगर सच्चाई तो यही है कि कभी भी उसके साथ बैठकर दो चार शब्द प्यार भरी बातें तक नहीं हुई। प्यार की बातें तो छोडिये जनाब उसने तो कभी भी मेरी एक तरफा मोहब्बत पर ऐतबार तक नहीं किया। 1994 से आरम्भ हुई मेरी मोहब्बत में हम सिर्फ उनसे व्यक्तिगत रूप से सिर्फ और सिर्फ एक बार ही मुलाकात कर पाए (मेरा ब्लॉग पढ़े - मुलाकात (पहली और आखिरी)-एक सच्ची मोहब्बत की अनकही सच्ची कहानी, ब्लॉग दिनांक 21 अक्टूबर 2009) और उस मुलाकात में भी हम किसी प्रेमी प्रेमिका की तरह नहीं मिले थे। वो मुलाकात का अंजाम भी बस सहानुभूति से शुरू होकर सहानुभूति पर समाप्त हो गयी थी। हमारी मुलाकात एक बार और हुई थी मगर उसे व्यक्तिगत मुलाकात नहीं कहा जा सकता क्यूंकि हम दोनों किसी की शादी में मिले थे और वहां भी हमारी मुलाकात किसी अजनबी की तरह ही हुई थी। इतना कुछ होने के बावजूद मैं आज तक किसी के एकतरफा प्यार में पागलों की तरह जीवन व्यतीत करता आ रहा हूँ। जो भी मुझे और मेरी एक तरफा मोहब्बत के बारे में जानता है वो मुझपर आज भी हँसता है। मगर मैं क्या क

सबसे छोटे भाई की मंगनी (इंगेजमेंट)

मेरे घर का सबसे छोटा बेटा और मेरा सबसे छोटा भाई सत्यार्थ सुमन वर्तमान में UCIL जादूगोड़ा में वैज्ञानिक सहायक के पद पर कार्यत है। पिछले कई वर्षों से उसकी शादी की बातचीत चल रही थी। उस दौरान मैं दुर्गापुर में ही था। कई लड़की वालों के प्रस्ताव आये थे। कई लड़कियों के फोटो भी आये थे और कई लड़कियों को देखने मेरे माता पिताजी अपने दामाद और बेटी के साथ गए थे। सितम्बर, 2008 से मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ जमशेदपुर में ही रह रहा हूँ। इस वर्ष मुझे अपने परिवार के साथ अपने भाई की शादी के लिए दो जगह लड़की देखने का न्योता भी मिला। पहले वाली लड़की हमारे परिवार को पसंद नहीं आई मगर दूसरी लड़की जिसे हमलोग देखने राम मंदिर, बिस्टुपुर गए वे हम सबों को पसंद आई। इसके कुछ दिनों के बाद माँ ने हमारी मौसी को गाँव से बुलाया। मौसी गाँव से आई तो हमें बताया गया की मौसी भी लड़की देखने जा रही है। मौसी, माँ घर की मंझली बहू, मंझला बेटा, बेटी और दामाद भी लड़की देखने गए। कुछ दिनों के बाद मुझे किसी और ने ये सूचना दी कि उस दौरान ही मेरे सबसे छोटे भाई की मंगनी कर दी गयी, मंगनी का मतलब एंगेजमेंट अर्थात लड़की और लड़के दोनों ने एक दूसरे

मेरे पास तो माँ भी नहीं है.

हर दिन रात को जब कमरे में सोने जाता हूँ, लाईट बंद करके जैसे ही बिस्तर पर लेटता हूँ, मेरे जेहन में दीवार फिल्म का वो सीन तरोताजा हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे बिलकुल ही मेरी आँखों के सामने वो सीन चल रहा है जब एक भाई दुसरे भाई से कहता है "मेरे पास बंगला है, मोटर है, कार है, ............. तुम्हारे पास क्या है" और दूसरा भाई जवाब देते हुए कहता है "मेरे पास माँ है"। ये सीन, ये संवाद हर रात को मेरे जेहन के आर-पार होता है और मुझे ये सोचने पर विवश कर देता है कि फिल्म और असल जिंदगी के बीच कितने फर्क है. कहाँ इस फिल्म में वो माँ जो बचपन से जिस बेटे से ज्यादा प्यार करती रही महज गलत रास्ते पर चलने के कारन वो उस बेटे के बदले अपने दुसरे बेटे का साथ देना पसंद करती है और उसके साथ उसके घर में रहने लगती है। मेरे अनुसार आज तक मैं अपने रास्ते पर सही था, सही हूँ और मुझे खुद पर विश्वास है कि आगे भी सही ही रहूंगा। मेरी शादी जो कि 30 अप्रैल, 2002 में हुई, इससे पहले मैं अपने घर का दुलारा बेटा था, अपनी माँ का सबसे प्रिय बेटा था। आज मेरे पास जो कुछ भी है वो सिर्फ मेरी माँ की ही देन हैं। इसका एह

बड़ा बेटा और छोटे भाई की शादी.

मुझे मिलाकर हम तीन भाई हैं। इनमें से सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरे बाद वाले भाई पुरुषार्थ सुमन, जिसे हम सब प्यार से छोटू बोलते थे। वो कम उम्र से ही रंगीला मिजाज का रहा है। दिखने में भी वो अक्षय कुमार से कुछ कम नहीं लगता था। छोटे उम्र से ही उसका झुकाव लड़कियों की तरफ ज्यादा रहा था। इंटर तक की पढाई करने के बाद जमशेदपुर के टेल्को मैदान में ही हुए आर्मी के सेलेक्सन कैंप में उसका चयन हो गया और उसने बड़ी ही कम उम्र में आर्मी ज्वाइन कर ली। उस समय मैं NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। मुझे अच्छे से याद है जब उसकी आर्मी की ट्रेनिंग चल रही थी, एक दिन उसने मुझे फ़ोन किया था और रो रोकर मुझसे आर्मी की नोकरी छोड़ने की बात बोल रहा था। मैंने उसे समझाया था कि पागल हो क्या? आज के ज़माने में भला नोकरी किसी को मिलती है क्या? ऐसा हरगिज नहीं सोचना। वो अक्सर फ़ोन पर माँ से भी यही बातें करता और माँ बोलती थी कि बेटा तुम्हारी शादी कर दूँ फिर तुम ये आर्मी की नोकरी छोड़ देना। मेरी शादी तो हो ही चुकी थी। उसकी शादी के लिए भी लड़की वाले आ ही रहे थे। बहुत सारे लड़की वालों से उसकी

पिताजी का धन.

बात कई वर्ष पहले की है। मेरे पापा जो कि उस समय टिस्को में काम करते थे। वे अपनी सर्विस ना के बराबर ही करते थे। महीने में औसत 10 दिन की ही सर्विस करते थे। उनका सारा का सारा समय सिर्फ और सिर्फ जन सेवा और सामाजिक कार्य में बीतता था। उस वर्ष टिस्को में ESS का स्कीम आया, तो मेरी माँ और अन्य परिवार के लोगों ने पापा को समझकर ESS लेने को कहा और मेरे पापा ने ESS ले लिया। उस समय मैं NICT कंप्यूटर संस्थान में कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। मैं घर का बड़ा बेटा था बावजूद इसके मुझे ये जानकारी नहीं कि उनके ESS लेने के समय उन्हें राशि मिली थी। मुझे अच्छे से याद है कि मेरे पापा ने उस समय श्री किशोर यादव जो कि NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट के मालिक थे, उनके हाथों जबरदस्ती करके मेरे और मेरे छोटे भाई के नाम से सिंहभूम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में 50 - 50 हजार रुपये फिक्स करवा दिए थे। इस विषय पर मेरी और मेरे छोटे भाई ने अपने पापा से काफी बहस भी की थी, कि आखिर क्यों हमारे नाम से रुपये फिक्स कर रहें हैं। उस समय मेरे पापा ने कहा था "बेटा नौकरी का क्या भरोसा है? कम से कम ये फिक्स किये गए 50 हजार रुप

मेरी एकतरफा मोहब्बत और तुम्हारी यादें.

दिनांक 25 मार्च 2014 को अपडेटेड 1994 - आत्महत्या की मेरी नाकाम कोशिश के बाद जब मेरे दिल की धडकनों में तुम्हारी यादों ने एक नए जीवन के रूप में दस्तक दी। तुन्हारे निगाहों में ना जाने क्यों मुझे मेरे जीवन की डोर दिखाई दी। 1994 - "हम आपको लाइक नहीं करते" ये शब्द खुद तुम्हीं ने अपनी जुबान से हमें कहा था, जिसे हम बेइंतहा मोहब्बत करते थे। एक वाक्य ने मेरे अरमानों को तार तार कर दिया। मैं तो जीते जी ही मर चूका था। 1994 - एक तेरी तस्वीर जिसे देख देखकर मैं जीने की कोशिश कर रहा था, वो भी तुमने मुझसे छीन ने। क्या मिला तुम्हे मेरा सुकून छिनकर. 1995 - टूटे हुए दिल और टूटे हुए दिल के अरमानों के साथ किसी तरह से जीने की कोशिश कर रहे थे। तुम्हें चाहकर भी नहीं भुला पा रहे थे। तुम्हारी यादें को अपने जीने का सामान बना लिया था. 1996 - 23 जनवरी, को जब भाभी के घर तुम्हारी सहेलियों के साथ तुमसे आमना सामना हुआ और मैंने अपने हाथ पर लिखे हुए तुम्हारे नाम को काट दिया। एक बार फिर से तुम्हे भूलने की एक और नाकाम किशिश की. 1997 - तुम्हारे बिना दुर्गा पूजा का कोई महत्व ही नहीं रहा, तुम दुर

मेरा जीवन और भूली बिसरी यादें.

3 मार्च 1978 को मेरा जन्म जमशेदपुर में हुआ। मेरे पापा टाटा स्टील में परमानेंट थे। मेरी माँ हाउस वाइफ थी। पिताजी टाटा स्टील के वर्कर कम एक समाजसेवक ज्यादा थे। मेरे जन्म से पहले मेरे माता पिता दोनों ही गायत्री युग निर्माण योजना से संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से और उनकी संस्था से जुड़े हुए थे और वे दोनों ही श्री आचार्य जी से सत्संग मण्डली में भजन आदि के कार्यक्रम करते थे। मेरे जन्म के बाद मेरे माता पिता दोनों ही पारिवारिक रूप से अपना जीवन यापन करने लगे। बागबेरा रेलवे कालोनी, लाल बिल्डिंग जो कि टाटानगर रेलवे स्टेशन से महज 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है, वहां मेरी परवरिश एक झोपडी नुमा मकान में हुई। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर यहाँ मेरे पापा ने कुछ घर बनाए थे जिसमें हमलोग रह रहे थे और साथ ही साथ कुछ घरों को भाड़े पर लगाया गया था। मैंने अपना बचपन और जवानी दोनों इसी घर में बिताया। इस घर के आस पास रेलवे के घर थे जिसमें रेलवे में काम करने वाले कर्मचारी रहते थे। आस पास के लोगों से हमारा ताल्लुक ना ही के बराबर था। बचपन से लेकर जवानी तक पड़ोसियों से कोई सम्बन्ध नहीं के बराबर रहा। जमशेदपुर

साईकिल का अरमान

बात उन दिनों की है जब मैं 1995 में इंटर पास करके B Sc. (Math) में नामांकन कराया था। उस वक़्त मैंने tuition के लिए आदर्श नगर, सोनारी में कोपरेटिव कालेज के प्रोफेसर के यहाँ अपना नामांकन कराया। मेरे घर से सोनारी की दूरी लगभग 10 किलो मीटर थी। मेरे पास वोही पुरानी साईकिल जो मेरे पापा की थी जिसका उपयोग मैं 1992 से करता आ रहा था। इसी साईकिल से मैंने KMPM स्कूल, बिस्टुपुर जाकर क्लास IX और X की पढाई की और मेट्रिक पास किया, इसी साईकिल से मैं KMPM इंटर कॉलेज, बिस्टुपुर जाकर XI और XII की पढाई की और इंटर पास किया। अब चूँकि मैंने SP कॉलेज, parsudih में Graduation के लिए अपना नाम लिखा लिया था और tuition के लिए मुझे सोनारी जाना पड़ रहा था इसलिए मैंने अपने पापा से एक नयी साईकिल के लिए कहा। ऐसा नहीं कि मैंने अपनी साईकिल के लिए पहली बार अपने पापा से कही हो, ये मैं विगत 4 वर्षों से उनसे कहता आ रहा था, लेकिन मुझे नयी साईकिल नहीं मिल रही थी। मगर इस बार मैं जिद पर आ गया और मैंने भूख हड़ताल कर दी और कहा कि जब तक मुझे नयी साईकिल नहीं मिलेगी मैं खाना नहीं खाऊंगा। अंततः मेरे पापा मुझे लेकर साईकिल खरीदने के लिए घर

कैसे मैं भूल जाऊं उसे?

कितना आसान है ये कहना कि भूल जाओ। मगर क्या ऐसा मुमकिन है? मैंने अपनी जिन्दगी में ये आजमा कर देखा है? एक तरफा मोहब्बत की तपिस में जल जलकर किसी की निगाहों में अपनी जिन्दगी का सवेरा देखा है। नफरत भरी नज़रों में न जानें क्यूं अपने लिए बेइंतहा प्यार देखा है। किसी को अपनी धडकनों में बसाकर अपनी निगाहों में उसका अख्स बिठाकर फिर उसे भूल पाना भला कैसे संभव हो सकता है? जिसकी याद मेरी सांसों में दोड़ते हुए खून की तरह फ़ैल चुकी हो उसे भला भूल पाना कैसे संभव हो सकता है? 1994 से लेकर आज तक सब कुछ बदल चुका है। यदि नहीं बदला तो सिर्फ मेरा अंतर्मन और मेरी दिल का वो एहसास जो किसी के प्रति समर्पित था। 1994 से 28 नवम्बर, 2000 के बीच जबकि मेरी उससे कोई व्यक्तिगत मुलाकात तक नहीं हुई थी, मेरी आँखे हर दिन उसके दीदार को प्यासी भटकती रहती थी. उसकी एक नज़र पाने भर को मैं बेचैन हो उठता था। 29 नवम्बर, 2000 ने मेरे उन सारे एहसासों को मिटा दिया। मेरी सोच को मुझे बदलने को मजबूर कर दिया। इस दिन में स्वप्न लोक की नगरी से धरातल पर वापस आया और मैंने खुद का सही आंकलन किया। एक तरफ मेरी दम तोडती मोहब्बत थी तो दूसरी तरफ वो

नक्सलवाद नहीं आतंकवाद

विगत कई महीनों से नक्सल वादियों द्वारा किये जा रहे आतंककारी क़दमों ने समूचे हिन्दुस्तान को हिला कर रख दिया है। चाहे वो छत्तीसगढ़ में CRPF पर किया गया हमला हो या फिर झारग्राम में पिछले कई दिनों से ट्रेनों पर किये जा रहे हमले हों, इन सब को देखते हुए वर्तमान परिदृश्य में नक्सली को आतंकवादी कहना गलत नहीं होगा। नक्सल वादियों ने अपने कृकृत्य से अपने आप को हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा दुश्मन बना लिया है। हालात तो ऐसे हैं कि आज हमे पकिस्तान और आतंकवादियों से भी कई गुना खतरा अपने ही मुल्क के अपने ही लोग नक्सलवादियों से है। अब तो जरुरत है श्रीलंका के द्वारा अपने मुल्क के अन्दर आतंक कारी गतिविधियों के खाते का अनुसरण करने की। पानी अब सर के ऊपर जा चूका है और हमे अब जरुरत है अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की। अब नक्सल आन्दोलन पर पूरी तरह नकेल कसने की जरुरत है इसके लिए हमें अपने आर्मी, नेवी और एयर फौर्स को इसकी जिम्मेदारी दे देनी चाहिए।

गोलमुरी थाना और अपनों को बहुत-बहुत धन्यवाद.

मेरी हीरो होंडा motorcycle जो कि 20 अप्रैल 2010 को रात के लगभग 08.30 से 9 बजे के बीच tinplate Reliance फ्रेश के सामने से चोरी हो गयी थी उसे 6 मई 2010 को गोलमुरी थाना द्वारा recover कर लिया गया और इस चोरी में शरीक चोर को हवालात भेज दिया गया। इसके लिए मैं अंतर मन से गोलमुरी थाना और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकारीयों और कार्मिको का धन्यवाद देता हूँ। मेरे उपर्युक्त गाड़ी चोरी के सन्दर्भ में गोलमुरी थाना द्वारा उठाये गए क़दमों का मैं शुक्रिया अदा करता हूँ। इस मामले में मैं विशेषकर गोलमुरी थाना में तैनात और मेरे मामले के जाँच अधिकारी श्री K P Singh जी का आतंरिक रूप से आभार प्रकट करता इसके साथ साथ पूरे गोलमुरी थाना के स्टाफ सदस्यों के प्रति भी मैं अपना आभार प्रकट करता हूँ। मैं उन सभी दोस्तों, परिवार के सदस्यों, सहकर्मियों के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने मेरे इस दुःख भरे समयमें अपना शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से मुझे सहयोग दिया या देने की कोशिश की। अंत में मैं माननीय विधायक श्री Banna Gupta Jee के प्रति अपना तहे दिल से आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने मेरे मामले में अपनी रुचि दिखाई और

मेरी किस्मत और हमदर्दों का साथ

आज काफी दिनों के बाद समय निकालकर अपने ब्लॉग पर कुच्छ लिखने बैठा हूँ। पिछले महीने मेरे जीवन में काफी उतार चड़ाव आये। मैं २० अप्रैल २०१० का दिन कभी भी भूल नहीं सकता। एक तरफ ख़ुशी और दूसरी तरफ गम। दोनों का तालमेल एक साथ एक दिन वो दिन था २० अप्रैल २०१०। दोपहर के ३ बजे के करीब मुझे LTC अग्रिम का पैसा ऑफिस से मिला और मैंने तुरंत ही इन्टरनेट से IRCTC द्वारा टाटानगर से जम्मू जाने और वापस आने के लिए ट्रेन का ticket कटा लिया। ticket को देखने पर मैंने ये पाया कि सारी की सारी ticket उपर बर्थ की थी। तुरंत मैंने उस ticket को कैंसल कराया और पैसे लेकर टाटानगर रेलवे स्टेशन चला गया और वहां से ticket का reservation कराया। मेरे अनुरोध पर मुझे जाने और वापस आने के ticket में एक ticket lower बर्थ का मिल गया। मेरे जम्मू जाने की जानकारी मैंने अपने माँ के घर जाकर माँ और छोटे भाई को दिया और फिर अपनी बहन के ससुराल जाकर अपनी बहन को दिया और फिर अपने घर गोलमुरी वापस आते समय लाल बिल्डिंग स्थित मोटर मेकानिक को अपनी हीरो होंडा के key को बदलने के लिए आने वाले शनिवार को उसके पास आने की बात कही और वापस अपने घर करीब 7. 30

नक्सलवाद और हिन्दुस्तान

आतंक के साए में सांसे ले रहा हिन्दुस्तान आज त्रस्त है। हर तरफ आतंक और आतंक पसरा हुआ है। हर कोई आतंक के साये में सांसे ले रहा है। पहले तो हम दूसरे देशों से आये आतंकवादियों से संग्राम कर रहें थे, और आज हम अपने ही देश में पाले बढे यहाँ के विघटनकारी तत्वों अर्थात नक्सलवादिओं से लड़ भीड़ रहें हैं। दोनों और से हमारे ही लोग मर रहें हैं, और इसका खामियाजा पूरी तरह से हमें ही भुगतना पड़ रहा है। कहीं सैनिक शहीद हो रहें हैं तो कहीं नक्सलवादी मर रहें हैं। एक भाई के हाथों दूसरा का खून तो हो ही रहा है। नक्सल को आन्दोलन का नाम देलेवालों को इस पर सोचना चाहिए। एक तरफ वो अपने आपको गरीबों के आन्दोलन का हिस्सा मानती है तो दूसरी तरफ उनके द्वारा इसी देश के लोगों की निर्मम हत्याएं की जाती हैं। एक तरफ वो सरकार को जमीं, शिक्षा और गरीबी में मुद्दे पर कटघरे में हमेशा ही खड़ा करती है तो दूसरी तरफ उनके द्वारा गावों कस्बों के विद्यालय भवनों को महज़ इसलिए नेस्तनाबूत कर दिया जाता है कि वहां उनके खात्मे के लिए सैनिकों को पानाह दिया जाता है। ये क्या है? एक विद्यालय जहाँ ना जाने कितने अशिक्षित लोग शिक्षित हो सकते है उसे बस ए

सानिया मिर्ज़ा और शोएब मल्लिक विवाद

सानिया और शोएब विवाद पर पिछले कई दिनों से जो हंगामा हो रहा है मुझे लगता है की वो बिलकुल ही ठीक नहीं है। मीडिया को इस तरह की खबरों को मुख्य खबर बनाकर पेश करने से बचना चाहिए। मैं व्यक्तिगत रूप से शोएब के मर्दानिगी पर दाद देना चाहूँगा जिसने ये जानते हुए भी कि हिन्दुस्तान में उसके साथ कुछ भी हो सकता है इसके बावजूद भी वो निडर होकर अकेला ही सानिया के पास चला आया। पाकिस्तान और हिंदुस्तान कि वाशिंदे शोएब के बारे में कुछ भी बोले मगर इसके इस साहसपूर्ण कार्य ने ना सिर्फ सानिया के दिल को बल्कि हर मोहब्बत करने वालों के दिल को जीत लिया है। एक पाकिस्तानी होकर वो भी हिन्दुस्तान में आकर अपने ऊपर लगे दागों को धोने और उस पर सफाई देने का जो साहस शोएब भाई ने किया है वो काबिले तारीफ है। मैं ये नहीं जनता कि शोएब कहाँ तक सच्चे हैं मगर सच तो येही है कि सच्चे लोग ही अपना सीना तान कर सबके सामने चलते है, जैसा कि शोएब भाई अभी तक करते आ रहें है। हमलोगों को सानिया और शोएब के शादी की ओर बड़ते पाक क़दमों को हिन्दुस्तान और पकिस्तान के बीच एक दोस्ताना रिश्ता मानना चाहिए और उनके इस कदम को अपना अपना समर्थन देना चाहिए.

और मत तोड़ो इस देश को !

सिर्फ और सिर्फ सत्ता सुख को पाने की लालसा ने अखंड हिंदुस्तान को टुकड़ों में बांटकर पाकिस्तान और बांग्लादेश बना दिया और फिर उसके बाद शुरू हुए राजनीति की बिसात जिस पर बैठकर राजनेताओं ने इस टूटे फूटे हिन्दुस्तान को कभी संप्रदाय के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर तोडना शुरू कर दिया, सिर्फ और सिर्फ अपनी अपनी राजनीति की रोटी को सकने के लिए। हम कभी हिन्दू मुस्लिम के नाम पर तोड़े गए कभी हम ऊँची और नीची जातियों के नाम पर तोड़े गए और हद तो तब हो गयी जब भाषा के नाम पर हम तोड़े गए। हम हिंदुस्तान के नागरिक जाएँ तो कहाँ जाएँ। धर्म की diwaren बनाते बनाते हमने जाति की दीवार बना डाली। आज फिर से एक बार हम टूटने जा रहें हैं मगर इस बार धर्म और jati नहीं बल्कि लिंग है। तोड़ने की हर गुंजाईश को हमने पूरी कर दी है महिला आरक्षण बिल भी तो इसी का नमूना है। इस बार हमें लिंग के रूप में विभाजित किया जा रहा है और हम सभी इस विभाजन का हिस्सा बनाने जा रहें हैं। पता नहीं ये राजनीति इस देश को अंततः कहाँ ले जाकर दम लेगी।

तुम्हारी याद

आज फिर से तुम्हारी यादों ने हमें बेजार कर दिया। मैंने एक बार फिर से अपने गुजरे जमाने 1994 से लेकर अब तक के बीच के पलों के दौरान घटित हुए सभी दृष्यों का एहसास किया। बहुत याद किया तुम्हे इतना याद किया कि इसे शब्दों में लिखने के लिए आज रविवार होते हुए भी कंप्यूटर पर आकर मैं बैठ गया। ... तुम कहाँ हो, कैसी हो, क्या कर रही हो? कुछ भी मुझे मालूम नहीं, सिर्फ मुझे इतना पता है मेरे दिल से तुम्हारी मोहब्बत लुप्त होने का नाम ही नहीं ले रही है। मैं खुश हूँ कारण कि मैं इतना जानता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी अपनी जिंदगी खुशहाल जी रही होगी। मेरी तो हालात ऐसी है कि मैं किसी से तुम्हारे बारे में पूछ भी नहीं सकता। मेरे दिल में अब तुम्हारे दीदार की ख्वाहिश भी नहीं, तुमसे बातें करने की अब कोई वजह भी नहीं। फिर भी ना जाने क्यूं तुम्हारी यादें मुझे इतना तडपती हैं। मैं बेचैन सा हूँ। मैं परेशान सा हूँ। किसी से अपने दिल की बातें बता भी नहीं पा रहा हूँ। इतना कुछ होने के बाद मैं यही समझ पाया हूँ कि मुझे शादी नहीं करनी चाहिए थी। मैं जिंदगी को दोहरी मानसिकता से जी रहा हूँ। मेरी पत्नी है, एक बेटा है दोनों के प्रति मेरा ग

जमशेदपुर के एस पी नवीन कुमार को हार्दिक बधाई ..

विगत कई दिनों से आतंक के साए में जी रहे जमशेदपुरवासिओं के लिए 27 जनवरी का दिन सुखद रहा। यहाँ के एस. पी श्री नवीन कुमार ने अपने कार्य शैली के कारण पिछले दिनों हुए सभी आपराधिक घटनायों पर से पर्दा उठा दिया और जमशेदपुर जैसे शांत शहर में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले नए आपराधिक गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए लगभग सारे अपराधियों को पकड़ लिया, इसके लिए वे वाकई बधाई के पात्र हैं। जमशेदपुर के सभी वासिओं की तरफ से उन्हें हार्दिक बधाई। पिछले कई आपराधिक घटनाओं में लिप्त अपराधियों के नामों पर गौर करने से ये दुखद पहलू सामने आ रहा है कि कोई ना कोई अपराधी किसी ना किसी पुलिस अधिकारी का रिश्तेदार निकलता है और तो और जमशेदपुर के मोस्ट वांटेड अपराधी के मामले में तो ये बात भी सामने आई है कि उसकी जमानत तक किसी पुलिस अधिकारी ने ही ले रखी है। ये वाक्य सचमुच में गंभीर है। श्री नवीन कुमार जी को इस पर जरुर से जरुर ध्यान देना चाहिए। एक बार फिर से मैं व्यक्तिगत रूप से एस.पी श्री नवीन कुमार को उनकी इस कार्यकुशलता और दक्षता के कारण धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि कांड का खुलासा करने के साथ - साथ दोषियों को सख्त से

जमशेदपुर का नया सवेरा

आज सुबह मैं काफी देर से उठा कारण शनिवार होने के कारण आज ऑफिस बंद थी। मेरी पत्नी हर दिन की तरह ही आज का अखबार लेकर आई, मैं हर दिन की तरह ये सोचकर कि फिर फ्रंट पेज पर कोई कत्ले आम या फिर किसी पर जानलेवा हमले की खबर छपी होगी। इसी अनिष्ट की आशंका से मैंने आज अखबार को लेकर फ्रंट पेज के बदले अन्दर के पृष्ठों को पढ़ना आरम्भ किया। तक़रीबन ३० ४० मिनट के बाद हिम्मत करके फ्रंट पेज को अपने नज़र के सामने किया तो मेरी नज़र बन्ना के "मिशन कचड़ा" से बवाल पर जाकर टिक गयी। हालाँकि नेताओं के समाचारों से मैं नज़र चुराता फिरता हूँ किन्तु इस समाचार का हेडिंग और इसमें दिए गए तस्वीर ने मुझे इसे पढने को बाध्य कराने दिया। .. इसे पढ़कर व्यक्तिगत रूप मुझे ये एहसास हुआ कि यदि नगरपालिका के कर्मचारी अपने अपने काम समय रहते करें तो जमशेदपुर में जो गंदगी का अम्बार जहाँ तहां फैला है वो नहीं रहेगा। आज जमशेदपुर में टिस्को एरिया को छोड़ दें तो जुगसलाई, मानगो आदि इलाको की स्थिति बदतर से बदतर है सिर्फ नगरपालिका के गैर जिमेदाराना रवैये के कारण। एक MLA का इस समस्या को दूर करने के प्रति समर्पित होना और खुद गन्दगी को उठाकर

जमशेदपुर में अपराधी बेखौफ

पिछले दिनों जमशेदपुर पूरी तरह से अस्त व्यस्त रहा। अपराधी पूरी तरह से बेखौफ होकर अपना काम करते रहे। प्रशासन इनके आगे बेबस - असहाय नज़र आ रहा है। मुखबिरी पर पकड़ नहीं होने के कारण ही ये स्थिति बनती जा रही है। मेरा निम्नलिखित सुझाव हैं जिससे मुझे लगता है कि अमल में लाने पर जमशेदपुर में आपराधिक गतिविधियाँ जरुर से जरुर कम होंगी : लगभग सभी चाक चौराहों पर वाहनों की चेकिंग सही तरीके से होनी चाहिए। ज्यादातर चेकिंग सिर्फ पैसे उगाहने के लिए की जाती हैं, जिस पर अंकुश तभी लग सकता है, जब उच्च अधिकारी स्वयं इसका निरीक्षण करें। सभी थानों में कंप्यूटर और हाई स्पीड इन्टरनेट कनेक्शन होने चाहिए और सभी थाने एक-दुसरे से इंट्रानेट से जुड़े होने चाहिए। थानों के सभी प्रकार के रिकॉर्ड कंप्यूटर में होने चाहिए। वक्त वक्त पर थानों की निगरानी उच्च अधिकारिओं द्वारा स्वयं करनी चाहिए। वर्तमान में यातायात पुलिस भ्रस्ताचार की सभी सीमायों के पार जा रहा है, इस पर नियंत्रण करने की अति शीघ्र जरुरत है। उच्च अधिकारिओं को यातायात पुलिस के जवानों को अनुशासन का पाठ पठाने की जरुरत है ताकि वे अपनी पाकेट भरने का काम छोड़कर यातायात सँभा

जीने की तमन्ना

ना हो जमीं और ना ऐ सितारें हो ना साथ मेरे ऐ महकती बहारें हो रिश्ते नातों के इस जहाँ में अब ना कोई अपना है मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!१!! आएगी नव वर्ष साथ खुशियों की बहारें लेकर मगर हम तो तनहा ही रहेंगे साथ तन्हाई का लेकर डरता हूँ फिर से कहीं फासले ना बढते रहे हम दोनों के दरमयान टूटकर बिखरते ना रहे कहीं मेरे दिल के मचलते हुए अरमान कल को झूमेगा सारा जहाँ नए साल के नगमों में हम तो मगर खोये ही रहेंगे बीते कल के सदमों में फखत दामन में मेरे दिल के टुटा हुआ सपना है मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!२!! परमार्थ सुमन 25 दिसम्बर 1998 लाल बिल्डिंग हाउस 11:30 PM

तुम्हारी यादें

मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम किये जिसने सितम हर बार दिल पर उठाये हमने ये गम जिनसे जुदा होकर आँखें हुई थी नम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!१!! नहीं कह सकता मगर मैं उसको बेरहम आज भी है वो क्यूंकि दिल के आईने में हरदम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!2!! हरपाल तड़पता रहता हूँ जिसके बिना मैं सुमन उसको भूलने को अब पूरी जिन्दगी भी पड़ेगी कम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!3!! परमार्थ सुमन 5 अक्टूबर, 2000 IOCL बरौनी 8 PM

तुम्हारी जुदाई और मेरा ख्वाब

गमगीन था वो पल मायूस था वो लम्हा जब उनसे बिछड़ने का झेला था हमने सदमा अश्क बह ही रहे थे ये सोचकर कि वो जा रही है जिनसे है रौशन मेरी ये जिन्दगी वो ही जा रही है कुछ पल तक यूँ ही रोते रहे हम दर्द दिल का खामोश सहते रहे हम पल भर में वो हमसे छूटने को थे दिल के खून निगाहों से बहने को थे तभी किसी ने देकर आवाज़ मुझको संभाला ये तो वो ही सख्श था जिसने हमें रुलाया पास खड़ी थी वो खामोश नजरें झुकाए मैं देखता रहा उसे बिना अपनी पलकें गिराए याद जो आई फिर मुझे जुदाई की बातें बेचैन हो गयी फिर मेरे दिल की सांसें मेरी बेचैनी को देख वो कहने लगी माना तेरे दिल को ठोकर मैंने ही दी मगर क्या तू मोहब्बत आज भी करता है मुझसे कहा मैंने पूछ लो तुम मेरी नजर से तभी उसने कहा ऐ "सुमन" कहते हो मुझसे प्यार करते हो तुम फिर कैसी है ऐ जुदाई और कैसा है ऐ आलाप मेरे जाने से तू क्यूं होता है उदास सच्ची है गर तेरी मोहब्बत तो जुदाई कैसी जो मिल गयी आत्मा तो दीवारें कैसी करार जो पाना हो दिल का पलकें बंद कर लेना सुमन नज़र आउंगी तुझको हर पल तेरे दामन के साथ हमदम अपनी नादानी पे हंसकर मैंने उसे WISH करना चाहा मगर वो तो दूर जा च

कफ़न

ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को बैठकर मजार पर वो मेरे बहाने लगेगी निगाहों से झील को आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!१!! ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी डूबती हुई जब कश्ती दिल की ढूंढ़एगी किसी साहिल को आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!२!! ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी इन्तजार करती हुई उसकी फिर भी निगाहें "सुमन" होगी ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!३!! परमार्थ सुमन 9 अक्टूबर, 2000 IOCL बरौनी 10 PM

इन्तजार

कैसें करूँ अफसाने बयां मैं हाल दिल के अपने आज भी ढूंढ़ती हैं तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने बेचैन सी नज़र को तेरा इंतज़ार क्यूं है? दबी - दबी सी जुबान में तेरा ही नाम क्यूं है? जख्मों को बना लिया है अब तो रहगुजर हमने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!१!! हर लम्हा तड़पते रहते हैं बस तेरे दीदार को सीने से लगाकर आज तक रखा हमने तेरे इनकार को जाने क्यूं फिर इस कदर नफ़रत किया हमसे तुमने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!2!! दफ़न हो गयी दिल में अब तो जीने की आस दिल में कहीं कैद है मगर तेरी ही तलाश कदम भी तेरे बढ़ रहें हैं अब किसी कि हमसफ़र बनने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!3!! ना जाने क्या कमी है इस "सुमन" में अब तो हूँ परेशान मैं इसी उलझन में आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!4!! परमार्थ सुमन 29 दिसम्बर, 2000 NICT Computer AT 10:30 PM