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पिताजी का धन.

बात कई वर्ष पहले की है। मेरे पापा जो कि उस समय टिस्को में काम करते थे। वे अपनी सर्विस ना के बराबर ही करते थे। महीने में औसत 10 दिन की ही सर्विस करते थे। उनका सारा का सारा समय सिर्फ और सिर्फ जन सेवा और सामाजिक कार्य में बीतता था। उस वर्ष टिस्को में ESS का स्कीम आया, तो मेरी माँ और अन्य परिवार के लोगों ने पापा को समझकर ESS लेने को कहा और मेरे पापा ने ESS ले लिया। उस समय मैं NICT कंप्यूटर संस्थान में कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। मैं घर का बड़ा बेटा था बावजूद इसके मुझे ये जानकारी नहीं कि उनके ESS लेने के समय उन्हें राशि मिली थी। मुझे अच्छे से याद है कि मेरे पापा ने उस समय श्री किशोर यादव जो कि NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट के मालिक थे, उनके हाथों जबरदस्ती करके मेरे और मेरे छोटे भाई के नाम से सिंहभूम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में 50 - 50 हजार रुपये फिक्स करवा दिए थे। इस विषय पर मेरी और मेरे छोटे भाई ने अपने पापा से काफी बहस भी की थी, कि आखिर क्यों हमारे नाम से रुपये फिक्स कर रहें हैं। उस समय मेरे पापा ने कहा था "बेटा नौकरी का क्या भरोसा है? कम से कम ये फिक्स किये गए 50 हजार रुपये कल को 1 लाख बन जायेंगे, तो तुम लोग इससे कोई व्यापार तो कर सकोगे, तुम्हारे भविष्य के लिए ही मैंने ये रुपये फिक्स करवाए हैं" उनकी बातों से हम दोनों भाई कुछ हद तक संतुष्ट हुए थे।
इसी बीच हमारा नया घर बन गया और मेरी शादी हो गयी और मैं कुछ दिनों के बाद NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट छोड़कर NML में प्रोजेक्ट असिस्टेंट के रूप में काम करने लगा। यहाँ का वेतन काफी कम था और अब मेरी जिम्मेदारी भी बढ़ गयी थी। मैं इस काम के साथ साथ एक नया व्यापार शुरू करने का खवाब देखने लगा। मेरे इस खवाब के पीछे वे ही रुपये थे जो कई वर्ष पहले पापा ने मेरे नाम से 50 हजार फिक्स कराये थे और कुछ ही महीने के बाद वो डबल होकर मिलने वाले थे। मैंने उन रुपयों को लेकर एक व्यापार आरम्भ करने की सोच राखी थी और इसके लिए सबसे पहले मैंने STD बूथ के नए कनेक्सन के लिए आवेदन दे दिया। मैं अपने पुराने घर में, जहाँ कि मेरे पापा अकेले रहते थे कुछ किरायेदारों के साथ, एक कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और इसके साथ ही एक STD बूथ और उसमे xerox मशीन लगाने का सोचा था। इसके लिए मुझे मिलने वाली पूंजी कम लग रही थी, इसलिए मैंने अपने इस प्रोजेक्ट में अपने दोस्त संजीव गौर और विजय कुमार शर्मा को भी सम्मिलित कर लिया।
मैंने कंप्यूटर इंस्टिट्यूट के क्लास के लिए अपने पुराने घर के एक रूम में संशोधन करने के लिए मजदूर लगवा दिया। मैं सुबह पुराने घर पहुंचता और वहां अपने दोनों दोस्तों को आज के दिन का काम समझाता और फिर मैं NML के लिए निकल जाता और फिर NML से छुट्टी होने पर वापस अपने पुराने घर को आता और अपने दोस्तों के साथ बातें करता और मजदूरों को उनका उस दिन का पेमेंट कर देता और वापस अपने नए घर को आ जाता। कुछ दिनों तक मेरी येही दिन चर्या थी। इसी बीच मैंने कुछ पुरानी कुर्सियां सेकेण्ड हैण्ड दाम पर कंप्यूटर क्लास के लिए खरीद ली। और मेरे STD बूथ का कनेक्सन भी आ गया। सब कुछ तय किये अनुसार ही चल रहा था कि एक दिन मेरे NML से वापस आपने पर मुझे मेरी दोनों दोस्तों ने बताया कि तुम्हारे पापा पूछ रहे थे कि "आपलोगों के प्रोफिट में मेरा कितना प्रतिशत शेयर रहेगा, ये आप अपने दोस्त सुमन से पूछकर मुझे बताना"। मेरे दोस्तों ने इस सम्बन्ध में मुझे अपने पापा से बात करने को कहा। मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आया, मैंने सोचा कि शायद पापा ने मजाक किया होगा। अगले दिन जब मैं फिर NML कि छुट्टी होने पर वापस पुराने घर पंहुचा तो देखा कि काम बंद है, मुझे मेरे दोस्तों ने बताया कि "क्या यार तुमने अपने पापा से बात नहीं की थी क्या?" मैंने पुछा कि क्या हुआ? तो मेरे दोनों दोस्तों ने बताया कि आज तुम्हारे पापा ने हमसे कहा कि "क्या आपने सुमन से बात नहीं कि क्या, पहले अपने प्रोफिट में मेरी हिस्सादारी तय करे फिर काम बढ़ाएं" ये सुनकर मेरे दोस्तों ने मजदूरों से काम को बंद करने को कह दिया था। मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हो रहा है? क्यों आखिर क्यों एक पुत्र के व्यापार के प्रोफिट में एक बाप को हिस्सादारी चाहिए? मैंने तुरंत ही फैसला लिया और अपने दोस्तों से कहा "प्रोजेक्ट कैंसल" अगर हमें अपने व्यापार के प्रोफिट में हिस्सादारी ही देनी है तो क्यों ना हम 1 नंबर की जमीं में व्यापार करें क्यों हम 2 नंबर की जमीन में व्यापार करेंगे? इतना कहकर मैं घर वापस आ गया और रात भर येही सोचता रहा ही मेरे पापा ने जब किशोर भैया को कंप्यूटर लेने के लिए मेरे फिक्स किये गए पैसे के ऊपर लोन दिलवाया था तब तो उन्होंने किशोर भैया से उनके प्रोफिट में किसी तरह की हिस्सेदारी के बात नहीं की थी, आज जब उनका बेटा किसी तरह व्यापार करना चाह रहा है तो वे किस मुंह से अपने बेटे के प्रोफिट में हिस्सेदारी मांग रहें हैं? मैं अपने दोस्तों के साथ संपर्क में था और हमलोग आसपास ही किसी अच्छे जमीं कि तलाश में थे जहाँ हम लोग कंप्यूटर इंस्टिट्यूट खोल सके। इसी दौरान एक दिन तबियत ठीक नहीं लगाने के कारन मैं NML से दोपहर के समय अपने घर वापस आ गया। उस समय मेरे पापा उस घर में ही थे। थोड़ी देर के बाद मेरा छोटा भाई मेरे सामने आया और मुझे एक आवेदन पर दस्तखत करने को कहने लगा, मैंने पुछा कि क्या है तो उसने बताया कि पापा ने जो पैसे फिक्स करने के लिए आपके नाम से जमा कराया था वे रुपये डबल हो गए हैं, इसलिए पापा ये आवेदन पर दस्तखत करने को कह रहें हैं जिससे वे उन रुपयों को निकाल सकें। इतना सुनना था कि मुझे काटो तो खून नहीं, मेरी आँखों के सामने अन्धेरा छा गया। मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है, जिन पैसें के खवाब देखकर मैं क्या कुछ करना छह रहा हूँ वोही ................! मैंने दस्तखत करने से मना कर दिया इसके बाद तो घर में मानों भूचाल ही आ गया। आज मैंने इतनी बद्दुआ अपनी माँ के मुंह से सुनी कि मानो मेरा कलेजा ही कौंध गया। पापा तो पापा, माँ भी आज क्या से क्या हो गए थी, उन रुपयों के लिए जो कभी उन्होंने मेरे भविष्य के लिए मेरे नाम से जमा कराया था। आज मेरी नज़रों के सामने वो दिन था जबकि मेरे पापा कह रहे थे "बेटा नौकरी का क्या भरोसा?..............................................................." सबकुछ बदल गया था 6 से 7 वर्षों के दौरान सब कुछ बदल गया। सब कुछ टूट गया। दिल से लेकर जज्बात सब कुछ समाप्त हो गया।
बहुत कुछ मैंने सुना अपनी माँ के मुंह से मैंने वो बद्दुआ भी सुनी जो एक माँ कभी अपने बेटे को नहीं दे सकती। सब कुछ सुनाने के बाद मैंने उस आवेदन पर दस्तखत कर दिया। उसके बाद ना सिर्फ सारे के सारे रुपये निकाल लिए गयी बल्कि मेरा बैंक अकाउंट भी बंद कर दिया गया। इसके कुछ दिनों के बाद मेरे पापा ने मुझसे कहा "बेटा वो STD बूथ वाले लोग काफी दिनों से आ रहें हैं, यदि तुम्हें STD बूथ नहीं लगनी है तो पड़ोस के चौबे जी का बेटा बोल रहा था, तुम चाहो तो STD बूथ का कनेक्सन उसे बेच दो"
कुछ दिन के बाद मैंने वो कुर्सियां भी बेच दी जो कंप्यूटर क्लास के लिए मैंने खरीदी थी। मेरे मामले में मुझे ये एहसास हो गया कि पिता का धन पिता का या फिर माँ का होता है।
पूरे परिवार को संभालने और एक सूत्र में पिरोने का काम पिता ही करता है। अपने परिवार के हर जरुरत को पूरा करने का काम एक पिता ही करता है। अपने संतान के भविष्य के प्रति एक पिता समर्पित रहता है।

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