मुझ जैसे कई लोग होंगे जो बेवकूफों की तरह रिश्तों के मायने तलाशते फिर रहे होंगे । पैदा होने से लेकर मरने तक हम कैद रहते हैं रिश्तों के भ्रम जाल में। मां-पिता, भाई-बहन, पत्नी-संतान से लेकर अनगिनत रिश्ते में हम दिन प्रतिदिन फंसते जाते हैं। कहीं हम दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं तो कहीं हम दूसरों से बेवकूफ बनते हैं। लोग जाने अनजाने रिश्तों के भ्रम जाल में खुद को कैद करके रखते हैं।
We are all INDIAN before a Hindu, Muslim, Sikh aur Isai or a Bihari, Marathi, Bengali etc. Love to all human being........
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
इनकम टैक्स की उपयोगिता
वर्तमान परिस्थिति में जबकि समूचा हिन्दुस्तान भ्रष्टाचार से ग्रसित है पिछले कई महीनों से लगातार ही कभी मघु कोडा के लगभग 4000 करोड रुपए, कभी ए राजा के लगभग कई लाख करोड, कभी कलमाडी के कई हजार करोड मामले प्रकाश में आ रहे हैं, इन सबको देखते हुए लगता है इनकम टैक्स अर्थात आयकर देने वाले लोग पूरी तरह से बेवकूफ बन रहे हैं। सरकार द्वारा सभी प्रकार के टैक्स लेने का प्रयोजन इस पैसों को हिन्दुस्तान के गरीब आम जनता की भलाई के लिए कार्य करना है मगर यदि यही पैसा किसी एक दो आदमी की बपौती बनने लगे तो फिर टैक्स देने वाले लोग तो अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करेंगे ही। कई बार अखबारों में यही विज्ञापन दिया जाता है कि आप कोई भी समान खरीदें आप वैट आदि टैक्स देकर मूल बिल लें ताकि टैक्स द्वारा जमा किए गए पैसे आम जनता की भलाई में खर्च किए जा सके। मगर वास्तविकता इससे कितनी दूर होती जा रही है छोटे से छोटे काम से लेकर बडे से बडे काम में घपले से घपले ही किए जा रहे हैं। सरकारी तंत्र का भी यही मानना है कि सरकार द्वारा भेजी जा रही राशि जो गरीबों के हित में खर्च की जानी है उसका सिर्फ 10 प्रतिशत ही सदुपयोग हो रहा है, इसका मतलब यही कि बाकी 90 प्रतिशत कमीशन आदि के रूप में भ्रष्टाचारियों के जेब में जा रही हैा
एक इनकम टैक्स देने वाले भारतीय की तो बात ही निराली है, एक तो वह अपने पूरे वेतन पर निर्धारित किए गए आयकर अर्थात इनकम टैक्स दे ही रहा है उपर से रोज मर्रा की जरूरी सारी चीजें मसलन पेट्रोल से लेकर पानी तक, चावल से लेकर दवाई तक में अलग से अन्य प्रकार के टैक्स को चुकाना पड रहा है। इसका मतलब जिन रूपयों पर वह पहले से ही सरकार को निर्धारित टैक्स अदा कर चुका है फिर से दुबारा उन्हें कई प्रकार के टैक्स को चुकाना पड ही रहा हैा ऐसे में यदि टैक्स के पैसे का इस तरह से दुरुपयोग किया जाए तो फिर टैक्स देने वाले लोगों में क्या भाव जागृत होगा।
क्या वर्तमान परिदृश्य में टैक्स की उपयोगिता पर सवाल उठाना उचित नहीं, क्या अपनी मेहनत से कमाए गए पैसों से टैक्स देने वाले लोगों को उनके टैक्स के पैसों के खर्च का हिसाब लेने का हक नहीं। इसमें पारदर्शिता की जरूरत है। अब हमें दुबारा नए सिरे से सोचना होगा कि सरकारी सिस्टम के फेल होने के कारण ही यदि एक वार्षिक बजट जितने का पैसा यदि ए राजा, कलमाडी और मधु कोडा जैसे दो चार लोग ही हडप जाते हैं तो फिर आयकर अर्थात इनकम टैक्स से हमें मुक्ति क्यों नहीं। हम क्यों पीसे जा रहे हैं गरीबों आम जनता की भलाई के नाम पर। क्यों हमारी मेहनत के, पसीने के कमाई पर सेंधमारी की जा रही है टैक्स के नाम पर। यह सब कुछ बंद होना चाहिए। सरकारी तंत्र को अब हर हाल में सोचना चाहिए कि क्या हमसे टैक्स लेकर यूं ही हमें बेवकूफ बनाया जाता रहेगा।
भ्रष्टाचारियों पर अंकुश की नाकाम कोशिश
पिछले कई दिनों से भ्रष्टाचार के अनगिनत मामले प्रकाश में आए। कुछेक मामले में कार्रवाई भी कई गई मगर सवाल यही उठता है कि किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई निचले स्तर तक ही जाकर सिमट जाती हैा कभी भी भ्रष्टाचार के मामले में पूरे दल को अर्थात नीचे से लेकर उपर तक के लोगो को घसीटा नहीं जाता हैा भ्रष्टाचार कभी भी किसी एक स्तर पर नहीं हो सकता। यह नीचे के कार्मिकों से आंरभ होकर उपर के आला अधिकारियों तक जाकर समाप्त होता हैा किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार तभी संभव है जब नीचे से लेकर उपर तक के अधिकारी व कार्मिक मिल जुलकर इसे अंजाम न पहुंचाए। अधिकतर मामले में यही देखा गया कि भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में क्या आया सिर्फ नीचे के स्तर के कार्मिकों पर कार्रवाई की गयी और उपर के अधिकारी जो मुख्य रूप से भ्रष्टाचार से जुडे रहते है उनका नाम तक प्रकाश में नहीं आया। एक दो मामले को यदि छोड दिया जाए जो कि रक्षा से संबंधित हैं बाकी सभी मामले इसी तरह के हैं। चाहे ए राजा प्रकरण हो, मधु कोडा प्रकरण हो या फिर कलमाडी प्रकरण, मुझे यही लगता है ऐ सारे के सारे तो सिर्फ मोहरे मात्र हैं, इनके पीछे इनसे जुडे लोग तो आज भी प्रकाश में नहीं आ पाए हैं।
साधारण से साधारण मामले में भी यही होता आया हैा अभी पिछले कुछ महीनों से ट्राफिक पुलिस से संबंधित लोकल न्यूज पेपरों में आए दिन भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आ रहे हैं और यहां भी वही हो रहा हैा महज उन लोगों पर ही नाम मात्र कार्रवाई की जा रही है जिनसे संबंधित मामले प्रकाश में आ रहे हैं। मगर सवाल यही उठता है कि क्या ट्राफिक पुलिस में कार्यरत कार्मिकों के द्वारा बिना अपने उच्च अधिकारियों की जानकारी के यह सब कुछ अंजाम दिया जा रहा है, यदि ऐसा है तो भी उच्च अधिकारियों के लिए ऐ शर्म की बात है। मुझे तो बिलकुल भी ऐसा नहीं लगता कि बिना आला अधिकारियेां के मिलीभगत के कोई ट्राफिक पुलिस में काम करने वाला नीचे स्तर का कार्मिक दिन दहाडे रोजना वसूली का कार्य करने में मशगूल रहेगा। यहां सिर्फ नीचे स्तर के वैसे कार्मिकों पर कार्रवाई की जा रही है जिनके मामले अखबारों में प्रकाशित हो रहे हैं जबकि इनके द्वारा भ्रष्टाचार को अंजाम दिलाए जाने वाले अधिकारी साफ बचते फिर रहे हैं। क्या इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश संभव है, क्या यह कार्रवाई आम जनता की आंख में धूल झोंकने का प्रयास भर नहीं हैा
आज समूचा हिन्दुस्तान भ्रष्टाचारियों के कारनामे से चर्चित हैा हम हर ओर घिरे पडे हैं इन भ्रष्टाचारियों के जमात से और सरकार, प्रशासन अपनी आंख बंद किए हुए हैा मामले प्रकाश में लाने की जिम्मेदारी लगती है सिर्फ न्यूज चैनलों और अखबारों पर छोड दिए गए हैं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)