रविवार, 31 जनवरी 2010

तुम्हारी याद

आज फिर से तुम्हारी यादों ने हमें बेजार कर दिया। मैंने एक बार फिर से अपने गुजरे जमाने 1994 से लेकर अब तक के बीच के पलों के दौरान घटित हुए सभी दृष्यों का एहसास किया। बहुत याद किया तुम्हे इतना याद किया कि इसे शब्दों में लिखने के लिए आज रविवार होते हुए भी कंप्यूटर पर आकर मैं बैठ गया।
...
तुम कहाँ हो, कैसी हो, क्या कर रही हो? कुछ भी मुझे मालूम नहीं, सिर्फ मुझे इतना पता है मेरे दिल से तुम्हारी मोहब्बत लुप्त होने का नाम ही नहीं ले रही है। मैं खुश हूँ कारण कि मैं इतना जानता हूँ कि तुम जहाँ भी होगी अपनी जिंदगी खुशहाल जी रही होगी। मेरी तो हालात ऐसी है कि मैं किसी से तुम्हारे बारे में पूछ भी नहीं सकता। मेरे दिल में अब तुम्हारे दीदार की ख्वाहिश भी नहीं, तुमसे बातें करने की अब कोई वजह भी नहीं। फिर भी ना जाने क्यूं तुम्हारी यादें मुझे इतना तडपती हैं। मैं बेचैन सा हूँ। मैं परेशान सा हूँ। किसी से अपने दिल की बातें बता भी नहीं पा रहा हूँ। इतना कुछ होने के बाद मैं यही समझ पाया हूँ कि मुझे शादी नहीं करनी चाहिए थी। मैं जिंदगी को दोहरी मानसिकता से जी रहा हूँ। मेरी पत्नी है, एक बेटा है दोनों के प्रति मेरा गहरा लगाव भी है। मैं जिंदगी की सारी खुशियाँ उन्हें देना चाहता भी हूँ मगर इस सब के बीच तुम्हारी यादों से भी घिरा रहता हूँ, ये भी एक कटु सत्य है।
....
मेरा पहला प्यार ना जाने क्यूं अधूरा रहा गया? शायद कुछ मेरी नादानियां और शायद कुछ तुम्हारी मानसिकता इसकी जिम्मेवार थी। मैंने प्यार किया था तुमसे। प्यार को जिंदगी समझा था मैंने। अपनी औकात मैं भूल गया था। जिंदगी जीने के लिए सिर्फ प्यार ही काफी नहीं होता है, अपने पैरों पर खड़े होने के बाद ही प्यार को पाने की कोशिश करनी चाहिए। ये बात मैंने पहले से ही जान रखा था। यही कारण था कि तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करने के बावजूद मैंने कभी तुम्हे इस बात की जानकारी नहीं दी। मैं पहले अपने पैर पर खड़ा होना चाहता था।
....
29 नवम्बर 2000 याद है तुम्हे जब हम दोनों आशीर्वाद होटल, बिस्टुपुर में मिले थे। शायद तुम भूल गयी हो मगर मैं बिलकुल भी भूला क्यूंकि यही तो मेरी मोहब्बत से मेरी पहली और आखिरी व्यक्तिगत मुलाक़ात थी। इसी दिन तो तुमने मेरे भविष्य कि पटकथा लिख डाली थी। इसी दिन तो मेरा सबकुछ लूट गया था। मैं बर्बाद हो गया था।
...
मैं तुम्हारा कोई दोष नहीं देता मेरी औकात ही नहीं थी कि तुम्हे मैं अपनी जिंदगी का हमसफ़र बनाता। मैं अपने परिवार वालों का भी कोई दोष नहीं देता उनके तरफ से तो बिलकुल ही ग्रीन सिग्नल था। इसका पूरा का पूरा जिम्मेवार main और मेरी किस्मत को है। पिछले 17 वर्षों से तुम्हारी यादों के साये में जी रहा हूँ। ये पूरी जिंदगी भी कम पड़ेगी तुम्हे भूलने को।
...
इतना कुछ होने के बाद भी आज तक तुम मुझे समझ नहीं सकी इसका मुझे अफ़सोस है।
...

कोई टिप्पणी नहीं: