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मेरी एकतरफा मोहब्बत और तुम्हारी यादें.

दिनांक 25 मार्च 2014 को अपडेटेड 1994 - आत्महत्या की मेरी नाकाम कोशिश के बाद जब मेरे दिल की धडकनों में तुम्हारी यादों ने एक नए जीवन के रूप में दस्तक दी। तुन्हारे निगाहों में ना जाने क्यों मुझे मेरे जीवन की डोर दिखाई दी। 1994 - "हम आपको लाइक नहीं करते" ये शब्द खुद तुम्हीं ने अपनी जुबान से हमें कहा था, जिसे हम बेइंतहा मोहब्बत करते थे। एक वाक्य ने मेरे अरमानों को तार तार कर दिया। मैं तो जीते जी ही मर चूका था। 1994 - एक तेरी तस्वीर जिसे देख देखकर मैं जीने की कोशिश कर रहा था, वो भी तुमने मुझसे छीन ने। क्या मिला तुम्हे मेरा सुकून छिनकर. 1995 - टूटे हुए दिल और टूटे हुए दिल के अरमानों के साथ किसी तरह से जीने की कोशिश कर रहे थे। तुम्हें चाहकर भी नहीं भुला पा रहे थे। तुम्हारी यादें को अपने जीने का सामान बना लिया था. 1996 - 23 जनवरी, को जब भाभी के घर तुम्हारी सहेलियों के साथ तुमसे आमना सामना हुआ और मैंने अपने हाथ पर लिखे हुए तुम्हारे नाम को काट दिया। एक बार फिर से तुम्हे भूलने की एक और नाकाम किशिश की. 1997 - तुम्हारे बिना दुर्गा पूजा का कोई महत्व ही नहीं रहा, तुम दुर

मेरा जीवन और भूली बिसरी यादें.

3 मार्च 1978 को मेरा जन्म जमशेदपुर में हुआ। मेरे पापा टाटा स्टील में परमानेंट थे। मेरी माँ हाउस वाइफ थी। पिताजी टाटा स्टील के वर्कर कम एक समाजसेवक ज्यादा थे। मेरे जन्म से पहले मेरे माता पिता दोनों ही गायत्री युग निर्माण योजना से संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से और उनकी संस्था से जुड़े हुए थे और वे दोनों ही श्री आचार्य जी से सत्संग मण्डली में भजन आदि के कार्यक्रम करते थे। मेरे जन्म के बाद मेरे माता पिता दोनों ही पारिवारिक रूप से अपना जीवन यापन करने लगे। बागबेरा रेलवे कालोनी, लाल बिल्डिंग जो कि टाटानगर रेलवे स्टेशन से महज 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है, वहां मेरी परवरिश एक झोपडी नुमा मकान में हुई। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर यहाँ मेरे पापा ने कुछ घर बनाए थे जिसमें हमलोग रह रहे थे और साथ ही साथ कुछ घरों को भाड़े पर लगाया गया था। मैंने अपना बचपन और जवानी दोनों इसी घर में बिताया। इस घर के आस पास रेलवे के घर थे जिसमें रेलवे में काम करने वाले कर्मचारी रहते थे। आस पास के लोगों से हमारा ताल्लुक ना ही के बराबर था। बचपन से लेकर जवानी तक पड़ोसियों से कोई सम्बन्ध नहीं के बराबर रहा। जमशेदपुर