बुधवार, 5 मार्च 2014

इंतजार

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



उसके इंतजार में दिल

अक्सर तड़पता रहता है

हर शख्स में दिल उसकी ही

तस्वीर ढूंढता फिरता है

मेरे अरमानों का मगर

उसपर कुछ भी असर नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



बेजुबान दिल अक्सर ही

कराहता रहता है

अपने जख्मी दिल को

खुद ही संभालता फिरता है

मेरे जज़्बातों का मगर

उसे कुछ भी कद्र नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



मेरे दिल के मंदिर में

नित नए फूल खिलते रहते हैं

हकीकत मे न सही

ख्वाबों में हम मिलते रहते हैं

मेरी हसरतों का मगर

उसे कोई फिक्र नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से

एतबार


मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं

मेरे कसमें वादों पर

तुझको क्यों एतबार नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 1 ।।


हम ढूंढते फिरते हैं खुशियाँ

तेरी ज़ुल्फों की छांव में

मेरे अरमानों का घरौंदा तोडने वाले

तुझसे क्यों मैं नाराज नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 2 ।।



नादान सी चाहत में

तलाश रहा हूँ अनाम रिश्ते

जीवन की इस आपाधापी में

तू क्यों मेरी हमराज नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 3 ।।



तेरी झील सी निगाहों में

बिखरे पडे हैं ख़्वाब सारे

मेरी सांसों में समानेवाली

तुझको क्यों मुझसे प्यार नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 4 ।।

तेरा साथ

 
तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ

तूझसे नाराज होकर भी

तेरी यादों को ही साथ लिए चलता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ



तेरी नादानियों से रूसवा होकर भी

तेरे दर पर ही आकर ठहरता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ



तेरी गलतफहमियों से परेशान होकर भी

तेरे आगोश में ही सर अपना छुपाता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ