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जनवरी 2, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जीने की तमन्ना

ना हो जमीं और ना ऐ सितारें हो ना साथ मेरे ऐ महकती बहारें हो रिश्ते नातों के इस जहाँ में अब ना कोई अपना है मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!१!! आएगी नव वर्ष साथ खुशियों की बहारें लेकर मगर हम तो तनहा ही रहेंगे साथ तन्हाई का लेकर डरता हूँ फिर से कहीं फासले ना बढते रहे हम दोनों के दरमयान टूटकर बिखरते ना रहे कहीं मेरे दिल के मचलते हुए अरमान कल को झूमेगा सारा जहाँ नए साल के नगमों में हम तो मगर खोये ही रहेंगे बीते कल के सदमों में फखत दामन में मेरे दिल के टुटा हुआ सपना है मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!२!! परमार्थ सुमन 25 दिसम्बर 1998 लाल बिल्डिंग हाउस 11:30 PM

तुम्हारी यादें

मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम किये जिसने सितम हर बार दिल पर उठाये हमने ये गम जिनसे जुदा होकर आँखें हुई थी नम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!१!! नहीं कह सकता मगर मैं उसको बेरहम आज भी है वो क्यूंकि दिल के आईने में हरदम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!2!! हरपाल तड़पता रहता हूँ जिसके बिना मैं सुमन उसको भूलने को अब पूरी जिन्दगी भी पड़ेगी कम मैं कैसे भूल जाऊ उसे दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!3!! परमार्थ सुमन 5 अक्टूबर, 2000 IOCL बरौनी 8 PM

तुम्हारी जुदाई और मेरा ख्वाब

गमगीन था वो पल मायूस था वो लम्हा जब उनसे बिछड़ने का झेला था हमने सदमा अश्क बह ही रहे थे ये सोचकर कि वो जा रही है जिनसे है रौशन मेरी ये जिन्दगी वो ही जा रही है कुछ पल तक यूँ ही रोते रहे हम दर्द दिल का खामोश सहते रहे हम पल भर में वो हमसे छूटने को थे दिल के खून निगाहों से बहने को थे तभी किसी ने देकर आवाज़ मुझको संभाला ये तो वो ही सख्श था जिसने हमें रुलाया पास खड़ी थी वो खामोश नजरें झुकाए मैं देखता रहा उसे बिना अपनी पलकें गिराए याद जो आई फिर मुझे जुदाई की बातें बेचैन हो गयी फिर मेरे दिल की सांसें मेरी बेचैनी को देख वो कहने लगी माना तेरे दिल को ठोकर मैंने ही दी मगर क्या तू मोहब्बत आज भी करता है मुझसे कहा मैंने पूछ लो तुम मेरी नजर से तभी उसने कहा ऐ "सुमन" कहते हो मुझसे प्यार करते हो तुम फिर कैसी है ऐ जुदाई और कैसा है ऐ आलाप मेरे जाने से तू क्यूं होता है उदास सच्ची है गर तेरी मोहब्बत तो जुदाई कैसी जो मिल गयी आत्मा तो दीवारें कैसी करार जो पाना हो दिल का पलकें बंद कर लेना सुमन नज़र आउंगी तुझको हर पल तेरे दामन के साथ हमदम अपनी नादानी पे हंसकर मैंने उसे WISH करना चाहा मगर वो तो दूर जा च

कफ़न

ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को बैठकर मजार पर वो मेरे बहाने लगेगी निगाहों से झील को आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!१!! ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी डूबती हुई जब कश्ती दिल की ढूंढ़एगी किसी साहिल को आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!२!! ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी इन्तजार करती हुई उसकी फिर भी निगाहें "सुमन" होगी ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी आएगी तब वो पास मेरे इतना यकीं है दिल को !!३!! परमार्थ सुमन 9 अक्टूबर, 2000 IOCL बरौनी 10 PM

इन्तजार

कैसें करूँ अफसाने बयां मैं हाल दिल के अपने आज भी ढूंढ़ती हैं तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने बेचैन सी नज़र को तेरा इंतज़ार क्यूं है? दबी - दबी सी जुबान में तेरा ही नाम क्यूं है? जख्मों को बना लिया है अब तो रहगुजर हमने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!१!! हर लम्हा तड़पते रहते हैं बस तेरे दीदार को सीने से लगाकर आज तक रखा हमने तेरे इनकार को जाने क्यूं फिर इस कदर नफ़रत किया हमसे तुमने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!2!! दफ़न हो गयी दिल में अब तो जीने की आस दिल में कहीं कैद है मगर तेरी ही तलाश कदम भी तेरे बढ़ रहें हैं अब किसी कि हमसफ़र बनने आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!3!! ना जाने क्या कमी है इस "सुमन" में अब तो हूँ परेशान मैं इसी उलझन में आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!4!! परमार्थ सुमन 29 दिसम्बर, 2000 NICT Computer AT 10:30 PM