ना हो जमीं और ना ऐ सितारें हो
ना साथ मेरे ऐ महकती बहारें हो
रिश्ते नातों के इस जहाँ में
अब ना कोई अपना है
मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!१!!
आएगी नव वर्ष
साथ खुशियों की बहारें लेकर
मगर हम तो तनहा ही रहेंगे
साथ तन्हाई का लेकर
डरता हूँ फिर से कहीं
फासले ना बढते रहे हम दोनों के दरमयान
टूटकर बिखरते ना रहे कहीं
मेरे दिल के मचलते हुए अरमान
कल को झूमेगा सारा जहाँ
नए साल के नगमों में
हम तो मगर खोये ही रहेंगे
बीते कल के सदमों में
फखत दामन में मेरे दिल के
टुटा हुआ सपना है
मगर फिर भी साथ लेकर तेरी यादों का जीने की तमन्ना है !!२!!
परमार्थ सुमन
25 दिसम्बर 1998
लाल बिल्डिंग हाउस
11:30 PM
We are all INDIAN before a Hindu, Muslim, Sikh aur Isai or a Bihari, Marathi, Bengali etc. Love to all human being........
शनिवार, 2 जनवरी 2010
तुम्हारी यादें
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम
किये जिसने सितम
हर बार दिल पर उठाये हमने ये गम
जिनसे जुदा होकर आँखें हुई थी नम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!१!!
नहीं कह सकता मगर मैं उसको बेरहम
आज भी है वो क्यूंकि दिल के आईने में हरदम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!2!!
हरपाल तड़पता रहता हूँ जिसके बिना मैं सुमन
उसको भूलने को अब पूरी जिन्दगी भी पड़ेगी कम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!3!!
परमार्थ सुमन
5 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
8 PM
दिए जिसने गम
किये जिसने सितम
हर बार दिल पर उठाये हमने ये गम
जिनसे जुदा होकर आँखें हुई थी नम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!१!!
नहीं कह सकता मगर मैं उसको बेरहम
आज भी है वो क्यूंकि दिल के आईने में हरदम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!2!!
हरपाल तड़पता रहता हूँ जिसके बिना मैं सुमन
उसको भूलने को अब पूरी जिन्दगी भी पड़ेगी कम
मैं कैसे भूल जाऊ उसे
दिए जिसने गम, किये जिसने सितम !!3!!
परमार्थ सुमन
5 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
8 PM
तुम्हारी जुदाई और मेरा ख्वाब
गमगीन था वो पल मायूस था वो लम्हा
जब उनसे बिछड़ने का झेला था हमने सदमा
अश्क बह ही रहे थे ये सोचकर
कि वो जा रही है
जिनसे है रौशन मेरी ये जिन्दगी
वो ही जा रही है
कुछ पल तक यूँ ही रोते रहे हम
दर्द दिल का खामोश सहते रहे हम
पल भर में वो हमसे छूटने को थे
दिल के खून निगाहों से बहने को थे
तभी किसी ने देकर आवाज़ मुझको संभाला
ये तो वो ही सख्श था जिसने हमें रुलाया
पास खड़ी थी वो खामोश नजरें झुकाए
मैं देखता रहा उसे बिना अपनी पलकें गिराए
याद जो आई फिर मुझे जुदाई की बातें
बेचैन हो गयी फिर मेरे दिल की सांसें
मेरी बेचैनी को देख वो कहने लगी
माना तेरे दिल को ठोकर मैंने ही दी
मगर क्या तू मोहब्बत आज भी करता है मुझसे
कहा मैंने पूछ लो तुम मेरी नजर से
तभी उसने कहा ऐ "सुमन"
कहते हो मुझसे प्यार करते हो तुम
फिर कैसी है ऐ जुदाई और कैसा है ऐ अलाप
मेरे जाने से तू क्यूं होता है उदास
सच्ची है गर तेरी मोहब्बत तो जुदाई कैसी
जो मिल गयी आत्मा तो दीवारें कैसी
करार जो पाना हो दिल का
पलकें बंद कर लेना सुमन
नज़र आउंगी तुझको हर पल
तेरे दामन के साथ हमदम
अपनी नादानी पे हंसकर मैंने उसे WISH करना चाहा
मगर वो तो दूर जा चुकी थी बहुत दूर - बहुत दूर
मगर आज भी जब कभी मैं निगाहें बंद करता हूँ
अपने दिल की हर धड़कन में बस उसे महसूस करता हूँ
कैसी है ऐ मेरी मोहब्बत
मैं किस-किस को बताउं
पागल हो चूका हूँ मगर
पागलपन मैं कैसे छुपाऊं
करीब रहकर इतने जब समझ ना सके
वो मेरे दिल के जज्बात को
क्या ख़ाक समझेगी वो भला
इतने दूर रहकर मेरे हालात को
बस इतनी सी है सदा मेरे इस दिल की
वो फूल बनी रहे मेरे निगाहों के झील की
जब कभी मुझपर तन्हाई का बादल छाए
हर उस पल वो ख्वाब बनकर मेरी नजर में आये
ना कोई तमन्ना है ना कोई अब सपना है
लगता है जैसे मिलकर कोई बिछड़ गया अपना है
सदियों से जिसकी मेरे दिल को तलाश थी
मेरी पहली मोहब्बत की जो पहली एहसास थी
जुदा हो गया उनसे ही आज मैं
जिसके बिना मेरी जिन्दगी बिलकुल निराश थी।
परमार्थ सुमन
19 मई, 1998
लाल बिल्डिंग हाउस
11 PM
जब उनसे बिछड़ने का झेला था हमने सदमा
अश्क बह ही रहे थे ये सोचकर
कि वो जा रही है
जिनसे है रौशन मेरी ये जिन्दगी
वो ही जा रही है
कुछ पल तक यूँ ही रोते रहे हम
दर्द दिल का खामोश सहते रहे हम
पल भर में वो हमसे छूटने को थे
दिल के खून निगाहों से बहने को थे
तभी किसी ने देकर आवाज़ मुझको संभाला
ये तो वो ही सख्श था जिसने हमें रुलाया
पास खड़ी थी वो खामोश नजरें झुकाए
मैं देखता रहा उसे बिना अपनी पलकें गिराए
याद जो आई फिर मुझे जुदाई की बातें
बेचैन हो गयी फिर मेरे दिल की सांसें
मेरी बेचैनी को देख वो कहने लगी
माना तेरे दिल को ठोकर मैंने ही दी
मगर क्या तू मोहब्बत आज भी करता है मुझसे
कहा मैंने पूछ लो तुम मेरी नजर से
तभी उसने कहा ऐ "सुमन"
कहते हो मुझसे प्यार करते हो तुम
फिर कैसी है ऐ जुदाई और कैसा है ऐ अलाप
मेरे जाने से तू क्यूं होता है उदास
सच्ची है गर तेरी मोहब्बत तो जुदाई कैसी
जो मिल गयी आत्मा तो दीवारें कैसी
करार जो पाना हो दिल का
पलकें बंद कर लेना सुमन
नज़र आउंगी तुझको हर पल
तेरे दामन के साथ हमदम
अपनी नादानी पे हंसकर मैंने उसे WISH करना चाहा
मगर वो तो दूर जा चुकी थी बहुत दूर - बहुत दूर
मगर आज भी जब कभी मैं निगाहें बंद करता हूँ
अपने दिल की हर धड़कन में बस उसे महसूस करता हूँ
कैसी है ऐ मेरी मोहब्बत
मैं किस-किस को बताउं
पागल हो चूका हूँ मगर
पागलपन मैं कैसे छुपाऊं
करीब रहकर इतने जब समझ ना सके
वो मेरे दिल के जज्बात को
क्या ख़ाक समझेगी वो भला
इतने दूर रहकर मेरे हालात को
बस इतनी सी है सदा मेरे इस दिल की
वो फूल बनी रहे मेरे निगाहों के झील की
जब कभी मुझपर तन्हाई का बादल छाए
हर उस पल वो ख्वाब बनकर मेरी नजर में आये
ना कोई तमन्ना है ना कोई अब सपना है
लगता है जैसे मिलकर कोई बिछड़ गया अपना है
सदियों से जिसकी मेरे दिल को तलाश थी
मेरी पहली मोहब्बत की जो पहली एहसास थी
जुदा हो गया उनसे ही आज मैं
जिसके बिना मेरी जिन्दगी बिलकुल निराश थी।
परमार्थ सुमन
19 मई, 1998
लाल बिल्डिंग हाउस
11 PM
कफ़न
ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को
बैठकर मजार पर वो मेरे
बहाने लगेगी निगाहों से झील को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!१!!
ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी
मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी
डूबती हुई जब कश्ती दिल की
ढूंढ़एगी किसी साहिल को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!२!!
ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी
दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी
इन्तजार करती हुई उसकी
फिर भी निगाहें "सुमन" होगी
ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!३!!
परमार्थ सुमन
9 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
10 PM
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को
बैठकर मजार पर वो मेरे
बहाने लगेगी निगाहों से झील को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!१!!
ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी
मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी
डूबती हुई जब कश्ती दिल की
ढूंढ़एगी किसी साहिल को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!२!!
ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी
दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी
इन्तजार करती हुई उसकी
फिर भी निगाहें "सुमन" होगी
ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!३!!
परमार्थ सुमन
9 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
10 PM
इन्तजार
कैसें करूँ अफसाने बयां मैं हाल दिल के अपने
आज भी ढूंढ़ती हैं तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने
बेचैन सी नज़र को तेरा इंतज़ार क्यूं है?
दबी - दबी सी जुबान में तेरा ही नाम क्यूं है?
जख्मों को बना लिया है अब तो रहगुजर हमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!१!!
हर लम्हा तड़पते रहते हैं बस तेरे दीदार को
सीने से लगाकर आज तक रखा हमने तेरे इनकार को
जाने क्यूं फिर इस कदर नफ़रत किया हमसे तुमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!2!!
दफ़न हो गयी दिल में अब तो जीने की आस
दिल में कहीं कैद है मगर तेरी ही तलाश
कदम भी तेरे बढ़ रहें हैं अब किसी कि हमसफ़र बनने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!3!!
ना जाने क्या कमी है इस "सुमन" में
अब तो हूँ परेशान मैं इसी उलझन में
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!4!!
परमार्थ सुमन
29 दिसम्बर, 2000
NICT Computer
AT 10:30 PM
आज भी ढूंढ़ती हैं तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने
बेचैन सी नज़र को तेरा इंतज़ार क्यूं है?
दबी - दबी सी जुबान में तेरा ही नाम क्यूं है?
जख्मों को बना लिया है अब तो रहगुजर हमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!१!!
हर लम्हा तड़पते रहते हैं बस तेरे दीदार को
सीने से लगाकर आज तक रखा हमने तेरे इनकार को
जाने क्यूं फिर इस कदर नफ़रत किया हमसे तुमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!2!!
दफ़न हो गयी दिल में अब तो जीने की आस
दिल में कहीं कैद है मगर तेरी ही तलाश
कदम भी तेरे बढ़ रहें हैं अब किसी कि हमसफ़र बनने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!3!!
ना जाने क्या कमी है इस "सुमन" में
अब तो हूँ परेशान मैं इसी उलझन में
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!4!!
परमार्थ सुमन
29 दिसम्बर, 2000
NICT Computer
AT 10:30 PM
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