बीता शनिवार 7 जनवरी, 2012 मेरे जीवन का ऐतिहासिक दिन रहा। 20 ओवर के क्रिकेट मैच में मैंने एनएमएल टीम की ओर से खेलते हुए 56 बॉल में नाबाद 102 रन बनाए जबकि हमारी टीम का कुल स्कोर 195 रहा। अपने इस 102 रनों की नाबाद पारी में मैंने 10 चौके तथा 6 छक्के लगाए।
यह मेरे क्रिकेट कैरियर का पहला शतक था जिसे मैंने अपने परमपूज्य पिताजी श्री श्याम किशोर सिंह जी के नाम समर्पित किया।
मैं कई वर्षों तक टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता रहा। कई छोटे मोटे टूर्नामेंट में मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज भी कराई। कई खेल मैदान मुझे आज तक याद हैं बागबेडा स्थित वायरलेस मैदान जहां कभी मैंने टेनिस बॉल के मैच में एक ही ओवर में पाँच छक्के और एक चौका जडा था, जुगसलाई स्थित आर.पी.पटेल हाई स्कूल मैदान में 12 ओवरों के मैच में बिना विकेट खोए 167 रनों का पहाड। आज भी वो सारा दृश्य मेंरी आंखों के सामने बना रहता है।
कुछ दिनों तक मैं लालबिल्डिंग स्थित आर्शिवाद होटल के पीछे वाले मैदान में कॉरकेट बाल से भी क्रिकेट खेला। हालांकि कोई टूर्नामेंट नहीं खेला मैं कॉरकेट बाल से।
2006 में दुर्गापूर में नौकरी ज्वाइन करने के बाद, अगले ही वर्ष जब दुर्गापूर की क्रिकेट टीम लखनउ जाने की तैयारी कर रही थी तब मैं सहमा-सहमा सा कुछ डरा डरा सा क्रिकेट प्रैक्टिस करने जाने लगा और वहां के अनुभाग अधिकारी श्री सुप्रकाश हलधर के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप मैं डयूज बॉल से क्रिकेट प्रैक्टिस करने लगा और 2007 में लखनउ दुर्गापूर की टीम का सदस्य बनकर गया मगर उस टूर्नामेंट में मेरा प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा। फायइन के लिए क्वालीफाइ नहीं कर पायी और फिर हमलोग वापस आकर दुर्गापूर में दूसरे टीमों के साथ क्रिकेट मैंच खेलने लगे। इसी दौरान हालांकि एक बार मेरे अंगूठे में हेयर क्रेक भी हो गया था। वर्ष 2008 में मैं दूर्गापूर से ट्रांसफर होकर जमशेदपुर आ गया मगर 2009 में हमारी टीम जो कि राजस्थान जा रही थी उसमें मैं क्रिकेट टीम का सदस्य नहीं बनकर बॉलीबाल टीम का सदस्य बनकर गया।
वर्ष 2011 में एनएमएल की टीम ने क्रिकेट प्रैक्टिस आरंभ कर दी क्योंकि जनवरी 2012 में इस टीम को आसाम, जोरहाट टूर्नामेंट खेलने जाना है। इसी प्रैक्टिस सत्र के रूप में कई टीमों से प्रत्येक शनिवार तथा रविवार को मैचों का आयोजन किया जा रहा है। इसी एक मैच में बीते शनिवार 7 जनवरी, 2012 को मैंने अपनी जिंदगी का पहला शतक ठोंका और ठीक इसके अगले दिन के मैच 8 जनवरी, 2012 को भी मैंने 39 बॉल पर नाबाद 53 रनों की पारी खेली है जिसमें 9 चौके शामिल हैं।
मैं ईश्वर से दुआ करता हॅूं कि आने वाले टूर्नामेंट में भी वो मुझपर अपना आशीष बनाए रखे।
मैं कई वर्षों तक टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलता रहा। कई छोटे मोटे टूर्नामेंट में मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज भी कराई। कई खेल मैदान मुझे आज तक याद हैं बागबेडा स्थित वायरलेस मैदान जहां कभी मैंने टेनिस बॉल के मैच में एक ही ओवर में पाँच छक्के और एक चौका जडा था, जुगसलाई स्थित आर.पी.पटेल हाई स्कूल मैदान में 12 ओवरों के मैच में बिना विकेट खोए 167 रनों का पहाड। आज भी वो सारा दृश्य मेंरी आंखों के सामने बना रहता है।
कुछ दिनों तक मैं लालबिल्डिंग स्थित आर्शिवाद होटल के पीछे वाले मैदान में कॉरकेट बाल से भी क्रिकेट खेला। हालांकि कोई टूर्नामेंट नहीं खेला मैं कॉरकेट बाल से।
2006 में दुर्गापूर में नौकरी ज्वाइन करने के बाद, अगले ही वर्ष जब दुर्गापूर की क्रिकेट टीम लखनउ जाने की तैयारी कर रही थी तब मैं सहमा-सहमा सा कुछ डरा डरा सा क्रिकेट प्रैक्टिस करने जाने लगा और वहां के अनुभाग अधिकारी श्री सुप्रकाश हलधर के प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप मैं डयूज बॉल से क्रिकेट प्रैक्टिस करने लगा और 2007 में लखनउ दुर्गापूर की टीम का सदस्य बनकर गया मगर उस टूर्नामेंट में मेरा प्रदर्शन कोई खास नहीं रहा। फायइन के लिए क्वालीफाइ नहीं कर पायी और फिर हमलोग वापस आकर दुर्गापूर में दूसरे टीमों के साथ क्रिकेट मैंच खेलने लगे। इसी दौरान हालांकि एक बार मेरे अंगूठे में हेयर क्रेक भी हो गया था। वर्ष 2008 में मैं दूर्गापूर से ट्रांसफर होकर जमशेदपुर आ गया मगर 2009 में हमारी टीम जो कि राजस्थान जा रही थी उसमें मैं क्रिकेट टीम का सदस्य नहीं बनकर बॉलीबाल टीम का सदस्य बनकर गया।
वर्ष 2011 में एनएमएल की टीम ने क्रिकेट प्रैक्टिस आरंभ कर दी क्योंकि जनवरी 2012 में इस टीम को आसाम, जोरहाट टूर्नामेंट खेलने जाना है। इसी प्रैक्टिस सत्र के रूप में कई टीमों से प्रत्येक शनिवार तथा रविवार को मैचों का आयोजन किया जा रहा है। इसी एक मैच में बीते शनिवार 7 जनवरी, 2012 को मैंने अपनी जिंदगी का पहला शतक ठोंका और ठीक इसके अगले दिन के मैच 8 जनवरी, 2012 को भी मैंने 39 बॉल पर नाबाद 53 रनों की पारी खेली है जिसमें 9 चौके शामिल हैं।
मैं ईश्वर से दुआ करता हॅूं कि आने वाले टूर्नामेंट में भी वो मुझपर अपना आशीष बनाए रखे।