शनिवार, 2 जनवरी 2010

कफ़न

ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को
बैठकर मजार पर वो मेरे
बहाने लगेगी निगाहों से झील को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!१!!

ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी
मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी
डूबती हुई जब कश्ती दिल की
ढूंढ़एगी किसी साहिल को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!२!!

ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी
दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी
इन्तजार करती हुई उसकी
फिर भी निगाहें "सुमन" होगी
ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!३!!

परमार्थ सुमन
9 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
10 PM

कोई टिप्पणी नहीं: