ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को
बैठकर मजार पर वो मेरे
बहाने लगेगी निगाहों से झील को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!१!!
ना कारवां होगा, ना ही कोई मंजिल होगी
मेरी जिन्दगी की जब सांसें भी थम चुकी होगी
डूबती हुई जब कश्ती दिल की
ढूंढ़एगी किसी साहिल को
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!२!!
ना कोई करीब होगा ना ही कोई बेकरार होगी
दिल में मेरे जब हर एक जज्बात दफ़न होगी
इन्तजार करती हुई उसकी
फिर भी निगाहें "सुमन" होगी
ना जख्म होंगे ना ही कोई आरजू होगी
मेरी चिताओं की जब लौ भी बुझ चुकी होगी
आएगी तब वो पास मेरे
इतना यकीं है दिल को !!३!!
परमार्थ सुमन
9 अक्टूबर, 2000
IOCL बरौनी
10 PM
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