रविवार, 29 अगस्त 2010

बीते कल की कहानी

मैंने अपने जीवन में कई उतार चढाव देखे, कई रिश्‍तों को पुन:र्जन्‍म लेते देखा, कई रिश्‍तों को रिश्‍तों के मायने तलाशते देखा, कई रिश्‍तों को सामाजिक बंधनों की मर्यादा मानते हुए निभाते हुए देखा, कई रिश्‍तों को बदलते बिगडते देखा, कई रिश्‍तों को महज सामाजिक बंधनों की मार्यादा के कारण ही बंधे रहते देखा। अपने 32 वर्ष के जीवन में मुझे रिश्‍ते नाते के व्‍यवहारिक दुनिया ने कई दौर दिखाए। मुझे ऐसा लगता है जैसे कि रिश्‍ते नाते की इस दुनिया में मैं काफी बूढा हो चुका हूँ।
ऐसा लगने लगा है जैसे हर कोई महज सामाजिक बंधनों की मर्यादा का पालन करते हुए रिश्‍ते नाते निभाने को बाध्‍य हैं। अब तो रिश्‍ते नाते चुभने लगे हैं। रिश्‍ते नातों की इस दुनियां में सब कुछ के रहने के बावजूद मैं अपने आप को अकेला महसूस कर रहा हूँ। दूर दूर तक कोई तो नहीं है आस पास।
आंखे बंद करता हूँ तो भी रिश्‍ते नातों से भरे मेरे जीवन में मुझे सिर्फ एक शख्‍स को छोडकर कोई नहीं दिखता और जो दिखता भी है उससे मेरा कोई खून का रिश्‍ता है भी नहीं। चाहे खुशी के पल हो या फिर दुख के मैं तो हर वक्‍त खुद को अकेला ही पाता हॅूं। कोई नहीं जिससे मैं अपने जीवन के सुख-दुख को बांट सकूं। मैं अपनी पत्‍नी और पुत्र के साथ अकेलेपन की जिंदगी पिछले कई वर्षों से जी रहा हॅू। ईश्‍वर को समर्पित मेरी हर खुशी और दुख का पता है। उसे मालूम है मैं कैसा जीवन जी रहा हॅूं। उसे एहसास है मेरे अकेलेपन का, मेरे जीवन में सूनापन का। सारे लोग आसपास ही हैं लेकिन फिर भी मैं तनहा ही हूँ।
खून के रिश्‍ते जो जीवन भर साथ रहते हैं मेरे जीवन में वही बदलते वक्‍त की दरिया में बहते पानी की बयार के साथ बह रहे हैं। रिश्‍तों को निभाने की कोशिश दोनों ओर से हो रही है मगर मैं अब थक चूका हॅूं रिश्‍तों को सामाजिक बंधनों की मयार्दा में निभाने की कोशिश करते करते।
एक दिल का रिश्‍ता बचा है जिसे मैंने सहेज कर रखा है बीते 16 वर्षों से। यह पाक रिश्‍ता उसी तरह कायम है जिस तरह यह बीते 16 वर्ष पहले था। मैं अपने इष्‍ट से यही कामना करता हॅूं कि जीवन भर मैं इस पाक रिश्‍ते के बंधन में बंधा रहूं। वक्‍त बदलता है लोग बदलते हैं सोच बदलते हैं लेकिन मैं नहीं बदला मेरी सोच भी नहीं बदली। मैं आज भी तडपता हूँ मगर मेरी इस तडपन में अब उससे मिलने की, उसके दीदार की, उसके साथ जिंदगी बिताने की हसरत नहीं रही। वक्‍त के साथ मेरी यह हसरत दफन हो गयी। मैं अपनी पत्‍नी और पुत्र के साथ अपना जीवन जी रहा हूँ मगर दिल के इस रिश्‍ते के साथ मैं अब भी जुडा हुआ हूँ।
मुझे ऐसा लगता है जैसे बीते कल की ही तो बात है वो मेरे जज्‍बात को समझ नहीं सकी, वो मेरे इकतरफा मोहब्‍बत पर यकीन कर नहीं सकी। आज भी बिस्‍तर पर जब रात को सोने जाता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं उसके पैर के सिराहने पर लेट रहा हूँ और फिर ऐसा सोचकर मैं गहरी नींद के आगोश में चला जाता हॅूं। इस दौरान न तो कोई ख्‍वाब मैं देखता हॅूं और न ही किसी तरह की बेचैनी महसूस करता हॅूं।
मुझे मालूम है कि मैं कभी उसके लायक था ही नहीं और न ही मेरी औकात ऐसी थी कि वो मेरी जीवन संगिनी बन सके मगर इसके बावजूद न जाने क्‍यों मेरे दिल ने कभी उसको अपने दिल में बसाने की गुस्‍ताखी की थी इसका जवाब मैं आज भी खुद से तलाशता फिरता हॅूं।
वो जहां भी है खुश रहे, उसकी जिंदगी खुशहाल रहे मेरी ईश्‍वर से यही कामना है।

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