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जून 11, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पिताजी का धन.

बात कई वर्ष पहले की है। मेरे पापा जो कि उस समय टिस्को में काम करते थे। वे अपनी सर्विस ना के बराबर ही करते थे। महीने में औसत 10 दिन की ही सर्विस करते थे। उनका सारा का सारा समय सिर्फ और सिर्फ जन सेवा और सामाजिक कार्य में बीतता था। उस वर्ष टिस्को में ESS का स्कीम आया, तो मेरी माँ और अन्य परिवार के लोगों ने पापा को समझकर ESS लेने को कहा और मेरे पापा ने ESS ले लिया। उस समय मैं NICT कंप्यूटर संस्थान में कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। मैं घर का बड़ा बेटा था बावजूद इसके मुझे ये जानकारी नहीं कि उनके ESS लेने के समय उन्हें राशि मिली थी। मुझे अच्छे से याद है कि मेरे पापा ने उस समय श्री किशोर यादव जो कि NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट के मालिक थे, उनके हाथों जबरदस्ती करके मेरे और मेरे छोटे भाई के नाम से सिंहभूम क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक में 50 - 50 हजार रुपये फिक्स करवा दिए थे। इस विषय पर मेरी और मेरे छोटे भाई ने अपने पापा से काफी बहस भी की थी, कि आखिर क्यों हमारे नाम से रुपये फिक्स कर रहें हैं। उस समय मेरे पापा ने कहा था "बेटा नौकरी का क्या भरोसा है? कम से कम ये फिक्स किये गए 50 हजार रुप