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जून 17, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्यों

क्यों ख्वाबों की दुनियां में हमें तुम दूर ले जाती हो क्‍यों अनजान राहों में हमें तुम अपना हमसफर बनाती हो क्‍यों मोहब्बत के नगमें हमें तुम सुनाती हो क्‍यों पास अपने बुलाकर हमें तुम अपनेपन का एहसास दिलाती हो क्‍यों अपनी ज़ुल्फों की छांव में हमें तुम सुलाती हो क्‍यों झील सी निगाहों में हमें तुम वफा के मंजर दिखाती हो क्‍यों बांहों में बांहें डालकर हमें तुम साथ जीने-मरने की कसमें खिलाती हो क्‍यों ख्वाबों की दुनियॉं में हमें तुम दूर ले जाती हो ।।