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जून, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरा मन

मुझको मेरी मोहब्बत का ऐ कैसा सिला मिला खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है तेरी मोहब्बत में फिर से बेकरार अब होने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है । 1   ।   ना जाने कहाँ तू चली गई मेरी मोहब्बत से होकर अंजान तेरी यादों में फिर से एकबार अब खोने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का दिल करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है । 2   ।   मेरे दिल को तोड़ने वाले ऐ संगदिल बेरहम तेरे करीब फिर से एकबार अब जाने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है । 3   ।

क्यों

क्यों ख्वाबों की दुनियां में हमें तुम दूर ले जाती हो क्‍यों अनजान राहों में हमें तुम अपना हमसफर बनाती हो क्‍यों मोहब्बत के नगमें हमें तुम सुनाती हो क्‍यों पास अपने बुलाकर हमें तुम अपनेपन का एहसास दिलाती हो क्‍यों अपनी ज़ुल्फों की छांव में हमें तुम सुलाती हो क्‍यों झील सी निगाहों में हमें तुम वफा के मंजर दिखाती हो क्‍यों बांहों में बांहें डालकर हमें तुम साथ जीने-मरने की कसमें खिलाती हो क्‍यों ख्वाबों की दुनियॉं में हमें तुम दूर ले जाती हो ।।

तेरी आशिक़ी

बेरहम दुनिया के अनजान रास्‍ते तनहाई भरे सफर में खुद को तलाशते पूछता है दिल , अब कौन है अपना हकीकत के आईने में अब टूट गया सपना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।1।।   बेवफाओं की मंडी में वफा की कहानी तूझसे मोहब्‍बत करके क्‍यों की नादानी मोहब्‍बत की राहों में अब खुद को संभालते पूछता है दिल , अब कौन है अपना जख्‍म दिल के अब खुद ही है सहना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।2।।   तेरी आशिकी में बीताए लम्‍हें लगने लगे हैं अब मुझको बेमानी बेबस निगाहों में अब सूखे समन्‍दर सा पानी पूछता है दिल , अब कौन है अपना छूट गया है अब तेरी गलियों से भी गुजरना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।3।।

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत   पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।   दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।   बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज