सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बड़ा बेटा और छोटे भाई की शादी.

मुझे मिलाकर हम तीन भाई हैं। इनमें से सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरे बाद वाले भाई पुरुषार्थ सुमन, जिसे हम सब प्यार से छोटू बोलते थे। वो कम उम्र से ही रंगीला मिजाज का रहा है। दिखने में भी वो अक्षय कुमार से कुछ कम नहीं लगता था। छोटे उम्र से ही उसका झुकाव लड़कियों की तरफ ज्यादा रहा था। इंटर तक की पढाई करने के बाद जमशेदपुर के टेल्को मैदान में ही हुए आर्मी के सेलेक्सन कैंप में उसका चयन हो गया और उसने बड़ी ही कम उम्र में आर्मी ज्वाइन कर ली। उस समय मैं NICT कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा था। मुझे अच्छे से याद है जब उसकी आर्मी की ट्रेनिंग चल रही थी, एक दिन उसने मुझे फ़ोन किया था और रो रोकर मुझसे आर्मी की नोकरी छोड़ने की बात बोल रहा था। मैंने उसे समझाया था कि पागल हो क्या? आज के ज़माने में भला नोकरी किसी को मिलती है क्या? ऐसा हरगिज नहीं सोचना। वो अक्सर फ़ोन पर माँ से भी यही बातें करता और माँ बोलती थी कि बेटा तुम्हारी शादी कर दूँ फिर तुम ये आर्मी की नोकरी छोड़ देना। मेरी शादी तो हो ही चुकी थी। उसकी शादी के लिए भी लड़की वाले आ ही रहे थे। बहुत सारे लड़की वालों से उसकी शादी की बातचीत हो रही थी, मगर कहीं भी बात फाइनल नहीं हुई थी। इसी बीच मेरे माता पिताजी दोनों ही कुछ काम के सिलसिले में अपने गाँव फरदा, मुंगेर, बिहार गए। उनके गाँव जाने के कुछ दिनों बाद घर में फ़ोन आया कि बेटा यहाँ गाँव में तुम्हारे पापा की तबियत कुछ खराब हो गयी है, ऐसा करो तुम सबसे छोटे भाई सत्यार्थ को उन रूपयों के साथ गाँव भेज दो जो घर के भाड़े के रूप में उसे भाडेदार ने दे दिए होंगे। हमारे पुराने घर के कुछ कमरे किराये पर दिए गयी थे जिनका किराया पापा को मिलता था क्योंकि पापा पुराने घर में ही रहते थे। मैंने अपने सबसे छोटे भाई सत्यार्थ को इस विषय में बताया और उसे अपनी गाड़ी से रेलवे स्टेशन ट्रेन पकड़ने के लिए छोड़ आया। कुछ दिनों बाद फिर मेरे पास मेरी माँ का फ़ोन आया और माँ ने कहा "बेटा हमलोग जमालपुर रेलवे स्टेशन में हैं, यहाँ तुम्हारे छोटे भाई के लिए एक लड़की देखने आयें हुए हैं, लड़की थोड़ी हेल्थी है, क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है? तुम ही बताओ" इतना सुनकर मैं विस्मित हो गया और थोड़ी देर के लिए मैं सोचने लगा कि मेरे भाई के लिए लड़की देखने गएँ हैं और मुझे जानकारी तक नहीं। मैंने तुरंत ही अपनी माँ से कहा "देखो माँ जो भी फैसला करना छोटू से बात करके ही करना", इतना कहकर मैंने तुरंत ही छोटू का फ़ोन नंबर अपनी माँ को नोट कर दिया। दुसरे दिन शाम के समय मेरे गाँव से फ़ोन आया कि माँ, पापा और सत्यार्थ गाँव से जमशेदपुर के लिए निकल चुके हैं और मेरे छोटे मौसेरे भाई ने मुझे ये बात बतलाई कि "छोटू भैया का रिश्ता तय हो गया है, मगर मुझे वो लड़की छोटू के लायक नहीं लगती" मेरी मौसी ने मुझसे कहा कि "बेटा तुम्हरे माँ पिताजी ने रिश्ता तय कर दिया है और वे तो लड़की वालों से कुछ रूपए भी लेकर अपने साथ गए हैं" इतना सुनकर मैं कुछ देर के लिए खामोश ही रहा जबकि फोन दूसरी और से कट चूका था। मेरी पत्नी मुझसे बार बार पूछ रही थी क्या बात है? मगर मैं उसे कुछ भी बता पाने के लायक नहीं था। आज मैं अन्दर ही अन्दर पूरी तरह से टूट गया था। मुझे कुछ समझ मैं ही नहीं आ रहा था, ये क्या हो रहा है, ये क्यूं हो रहा है, आखिर मैंने क्या गुनाह किया है? आखिर मेरे अपने सहोदर छोटे भाई का रिश्ता तय कर दिया गया और मैं और मेरी पत्नी को लड़की और उसके परिवार को देखने तक का मौका नहीं दिया गया। सब कुछ इतना अचानक क्यों किया गया मैं समझ ही नहीं पाया। मेरे माता पिताजी ने क्यों घर के एक बड़े बेटे को इस घर के इतने बड़े फैसले में शरीक नहीं किया, ये मैं बिलकुल ही समझ नहीं पाया।
दूसरे दिन मैं अपनी गाड़ी लेकर रेलवे स्टेशन गया अपने माँ पिताजी और सबसे छोटे भाई सत्यार्थ को रिसीव करने। अपनी माँ को मैंने अपनी गाड़ी के पीछे बैठाया जबकि मेरे पिताजी और छोटा भाई टेम्पो से आने लगा। रास्ते में मैंने अपनी माँ से पूछा कि माँ क्या छोटू का रिश्ता तय हो गया है? माँ ने बड़े ही सहजता से जवाब देते हुए कहा कि "अभी कहाँ अभी तो हमने लड़की ही देखी है, छोटू छुट्टी में घर आएगा लड़की पसंद करेगा तभी बात फ़ाइनल होगा" मैंने फिर पूछा "कहीं तुमलोगों ने लड़की वालों से रुपये तो नहीं ले लिए" माँ ने सहज भाव से कहा "नहीं रे पैसे की जल्दी क्या है पहले छोटू को लड़की तो पसंद आ जाय" कुछ देर के बाद हम लोग घर आ गए और तभी मेरे पापा ने मेरी माँ से कहा "बीना हो, रुपयों को ठीक से गिन लीजिये और सैफ में रख दीजिये" इतना सुनना था कि मैं अपनी माँ को देखने लगा, मेरी माँ को काटो तो खून नहीं, उनकी झूठ पकड़ी गयी थी। आनन् फानन में मुझे लड़की का फोटो देखने के लिए दिया गया, फोटो देखकर मैंने उस फोटो को जमीं पर फेंक दिया और अपनी माँ से कहा "माँ तुम्हे ये लड़की किसी भी एंगल से छोटू के लायक लगती है क्या?, कैसे तुमने इसे छोटू के लिए पसंद कर लिया?" इतना कहकर मैं अपने कमरे के अन्दर चला गया फिर मुझे पता चला कि माँ ने फ़ोन करके छोटू को छुट्टी लेकर आने को कहा ताकि वो लड़की दो देख सके मगर उसने माँ को यही कहा जो तुम्हारी पसंद है, उसी से मैं शादी करूँगा। और फिर वो अपनी शादी के लिए आर्मी से 1 महीने की छुट्टी लेकर आया और उसकी धूम धाम से गाँव से ही शादी भी हो गयी मगर शादी के बाद जब छुट्टी ख़तम होने पर वो अपनी आर्मी की नोकरी ज्वाइन करने जम्मू गया तो उसने वहां से माँ को फ़ोन करके कहा कि "माँ मैं नोकरी ज्वाइन नहीं करना चाहता, मैं वापस आना चाहता हूँ, तुम यदि मन करोगी तो मैं यहीं कहीं घूमता रहूँगा मगर नोकरी ज्वाइन नहीं करूँगा" इसपर माँ ने उससे कहा कि "बेटा तुम घर वापस आ जाओ" और फिर मेरा छोटा भाई आर्मी की नोकरी छोड़ वापस अपने घर जमशेदपुर आ गया।
आज भी वो जमशेदपुर में ही अपनी माँ के साथ ही रह रहा है मगर बहुत कुछ बदल चूका है। आज की तिथि में वो एक नंबर का पियक्कड़ हो चुका है। उसका दिन दारू से शुरू होता है और दारू से ही दिन ढलता भी है। सिर्फ उसकी ही वजह से मैं अपनी पत्नी और एक्लोते बेटे के साथ NML कालोनी गोलमुरी में रह रहा हूँ और तनहा जीवन यापन कर रहा हूँ।
अब तो मेरा छोटा भाई छोटू अपनी माँ की ख़ुशी के लिए अपनी बीबी तक को लातों से भी मारने से परहेज नहीं करता है। उसका एक 4 साल का बड़ा प्यारा बेटा भी है, जो अपनी आँखों से ये सबकुछ देखता है। पता नहीं वो क्या समझता होगा जिन्दगी के मायने को। पता नहीं किन संस्कारों में वो अपना जीवन यापन करेगा। आज मेरा छोटा भाई छोटू और उसकी पत्नी और बेटे का पूरा खर्चा मेरे माँ और पिताजी ही उठा रहें हैं। अपने छोटे भाई को दिन प्रतिदिन अँधेरे की ओर गर्त में गिरते देख रहा हूँ, मैं मानसिक रूप से आहत हूँ समझ नहीं पा रहा हूँ कि मैं क्या करूँ?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत   पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।   दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।   बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज

इश्वर, आत्मा और कुछ अनसुलझे रहस्य !

आत्मा, ना जन्म लेती है, ना ही मरती है, और ना ही उसे जलाकर नष्ट किया जा सकता है। ये वो सारी बातें हैं, जो हम गीता स्मरण के कारण जानते और मानतें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, हम लिखी बातोंपर जल्द ही यकीं कर लेतें हैं और फ़िर हमारे वंशज उसी को मानते चले जातें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, विश्वास करना हमारे रगों में है, किसी ने कुछ लिख दिया, किसी ने कुछ कह दिया बस हमने उसपर बिना कोई सवाल किए विश्वास कर लिया। हम रामायण से लेकर महाभारत तक तो सिर्फ़ मानकर विश्वास करते ही तो आ रहें हैं। हम शिव से लेकर रावण तक सिर्फ़ विश्वास के बल पर ही तो टिके हुए हैं। हमें हमारे माता-पिता ने बतलाया कि ब्रम्हा, बिष्णु, शिव, राम, हनुमान, गणेश, विश्वकर्मा, काली, दुर्गा आदि हमारे भाग्य विधाता हैं और हमने हिन्दुस्तानी का धर्म निभाते हुए ये मान लिए कि वे इश्वर हैं, हमारे भाग्य विधाता हैं। जब कोई विपत्ति कि बेला आई हमने उनका ध्यान करना आरम्भ कर दिया। बिना कोई सवाल किए हमने उनको इश्वर मानना आरम्भ कर दिया और फिर येही परम्परा बन स्थापित हो गई। ये ही दुहराव फिर हम भी अपने-अपने संतानों के साथ करेंगे, जो हमारे साथ किया गया। हमारे

जमशेदपुर में ट्रैफिक की समस्या

जमशेदपुर आज ट्रैफिक समस्याओं से बुरी तरस से ग्रसित है। मगर ना जाने क्यूंकिसी को इसकी परवाह नहीं है। चाहे बिस्टुपुर हो या स्टेशन एरिया या फिर साक्ची हो अथवा शहर के दुसरे इलाके हों सभी ट्रैफिक समस्यायों से बुरी तरह से ग्रसित हैं। बिष्टुपुर एरिया के मेनरोड को देखकर तो ऐसा लगता है की ये कोई मुख्यसड़क नही होकर कोई पार्किंग एरिया है। पता नहीं कैसे लोग खुले तौरपर अपने दो पहिये और चार पहिये वाहन को निर्भीक होकर मुख्य सड़क पर पार्क कर रोजमर्रा के कार्य करने में लीनहो जातें हैं। कोई देखने वाला नहीं की वाहन मुख्य सड़क पर पार्क कर दी गयी है। और तो और मुख्य सड़क पर पार्क कराकर पार्किंग टैक्स की वसूली भी की जाती है। आज की तिथि में बिष्टुपुर एरिया के मुख्य सड़क का आधा भाग तो वाहनों के ही पार्किंग से भरा परा रहता है। समूचा बिस्टुपुर एरिया देखने से ही किसी पार्किंग स्थल सा प्रतीत होता है। कोई देखने वाला नहीं, कोई एक्शन लेने वाला नही। कुछ इसी तरह के हालात साक्ची एरिया के भी हैं। जहाँ तहां खोमचे वाले, ठेले वाले, टेम्पू वाले अपने अपने मनमुताबिकजगह पर तैनात हैं। किसी को किसी की परवाह ही नहीं है। किसी को किसी का