शनिवार, 2 जनवरी 2010

इन्तजार

कैसें करूँ अफसाने बयां मैं हाल दिल के अपने
आज भी ढूंढ़ती हैं तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने
बेचैन सी नज़र को तेरा इंतज़ार क्यूं है?
दबी - दबी सी जुबान में तेरा ही नाम क्यूं है?
जख्मों को बना लिया है अब तो रहगुजर हमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!१!!

हर लम्हा तड़पते रहते हैं बस तेरे दीदार को
सीने से लगाकर आज तक रखा हमने तेरे इनकार को
जाने क्यूं फिर इस कदर नफ़रत किया हमसे तुमने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!2!!

दफ़न हो गयी दिल में अब तो जीने की आस
दिल में कहीं कैद है मगर तेरी ही तलाश
कदम भी तेरे बढ़ रहें हैं अब किसी कि हमसफ़र बनने
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!3!!

ना जाने क्या कमी है इस "सुमन" में
अब तो हूँ परेशान मैं इसी उलझन में
आज भी मगर ढूंढ़ती है तुम्हें मेरे टूटे दिल के सपने !!4!!

परमार्थ सुमन
29 दिसम्बर, 2000
NICT Computer
AT 10:30 PM

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