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बीते कल की याद............

मेरा बचपन जमशेदपुर शहर के टाटानगर रेलवे स्‍टेशन से लगभग 1.5 कि.मी. दूर बागबेडा रेलवे कॉलोनी, लालबिल्डिंग में बीता। मेरी पैदाइश 3 मार्च, वर्ष 1978 से लेकर 1998-99 तक मैं यहां रेलवे के अतिक्रमित जगह पर बनाए गए घर में अपनी जिंदगी गुजारी है। बचपन से हमें पानी के लिए कुंए पर आश्रित रहना पडा है। कुएं की जिंदगी बहुत ही सुखद रही है। कितना अदभुत एहसास होता है जब रस्‍सी लगे बाल्‍टी को नीचे डाला और कुछ देर की मेहनत के बाद एक भरी बाल्‍टी पानी आपके हाथों में। पानी के लिए दूसरे अन्‍य विकल्‍प यथा हैंडपम्‍प की तुलना में कुएं से पानी लेना बहुत ही आसान होता है। कुएं से पानी निकालते समय हमेशा यही ध्‍यान में रहता था कि कुएं का पानी बचाना है ताकि गर्मियों में कोई दिक्‍कत नहीं हो। पानी बचाने की यही मानसिकता मेरी आज भी जेहन में कैद है। आज जबकि मैं सरकारी आवास में रह रहा हॅूं तथा आवास में नल के द्वारा पानी सप्‍लाई की जाती है। आज भी जब कभी मैं नहाने जाता हॅूं तो मैं बाल्‍टी में पानी भरकर अपने पुराने दिनों को याद करने लगता हॅूं जब एक एक बाल्‍टी पानी के लिए कितनी मशक्‍कत करनी पडती थी और पानी भरने के बाद उसका उप

मुक्ति-बंधन

लगभग 14 वर्षों के वनवास के बाद एक मां कमला देवी की कोख ने पहले संतान के रूप में अपने कुल-दीपक को जन्‍म दिया। पति श्री ओम प्रकाश राय सीआरपीएफ में कार्यरत थे तथा दो भाईयों में छोटे थे। पत्‍नी कम पढी लिखी थी तथा उत्‍तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के रेवतीपुर गांव में रहती थी। बचपन से अपने पुत्र को उच्‍च शिक्षा देने तथा अच्‍छा मुकाम हासिल करने की ललक में उस पिता ने अपने कुल-दीपक जिसका नाम दीपक ही रखा था, उसे लगभग 4 वर्ष की ही अबोध उम्र में अपने बडे भाई श्री अरुण कुमार राय, जो कि जमशेदपुर स्थित टाटा स्‍टील की नौकरी कर रहे थे, उनके हाथों सुपुर्द कर दिया। उनके इस फैसले के पीछे काफी बडा बलिदान छिपा हुआ था। अपने कुल के चिराग को बेहतर शिक्षा देकर उसे अपने पैरों पर खडा करके अपने कुल का नाम रौशन करने की ललक ही थी जिसने मां की ममता और पिता के दुलार से वंचित करते हुए उसे यशोदा रूपी मां उर्मिला देवी की गोद में बाल्‍यावस्‍था में ही सौंप दिया। उस समय उर्मिला की अपनी तीन बेटियां ही थी। पुत्र के रूप में दीपक को पाकर वह धन्‍य धान्‍य से परिपूर्ण हो गई थी। इधर एक देवकी रूपी मां कमला देवी पुत्र के विरह में इस इ

सर्वश्रेष्‍ठ कार्मिक की उपलब्धि और उच्‍चस्‍तरीय अपेक्षाएं

विगत 26 नवम्‍बर, 2011 को प्रयोगशाला के स्‍थापना दिवस समारोह के शुभ अवसर पर मुझे इस प्रयोगशाला के सर्वश्रेष्‍ठ कार्मिक के पुरस्‍कार से नवाजा गया। मेरे लिए इस उपलब्धि को पाना वाकई एक अविस्‍मरणीय क्षण था। इस पुरस्‍कार की प्राप्ति में मेरे अनुभाग अधिकारी श्री राजेश कुमार सिंह रौशन जी का महत्‍वपूर्ण योगदान रहा। उनके उच्‍च कोटि के  दिशानिर्देश तथा भविष्‍यदर्शी विचारों का ही परिणाम रहा कि मैं इस पुरस्‍कार के काबिल बन पाया। आज मैं जो कुछ भी हॅूं तो सिर्फ उनके दिशानिर्देश तथा भविष्‍यदर्शी विचारों के परिणामस्‍वरूप ही। मुझे याद है जब मैं वर्ष 2008 के सितम्‍बर माह में दुर्गापुर से स्‍थानांतरण के पश्‍चात इस प्रयोगशाला में अपना कार्यभार ग्रहण किया था, उस समय मेरी तैनाती प्रशासनिक सचिवालय में हुई थी। कुछ ही महीनों के बाद नवम्‍बर, 2011 में मेरी तैनाती इस प्रयोगशाला के बिल अनुभाग/स्‍थापना-4 अनुभाग में कर दी गयी थी जिनके अनुभाग अधिकारी श्री रौशन जी ही थे। मैं दुर्गापुर से इस प्रयोगशाला में हालांकि 2 वर्ष का अनुभव प्राप्‍त कर यहां आया था मगर प्रशासनिक कार्य के नाम पर मेरे पास किसी प्रकार का कोई कार्य अ

जीवन मृत्यु : एक कटु सत्य

दिनांक 24 नवम्‍बर की रात 11 बजे के करीब मैं जमशेदपुर वापस आया हॅूं। बीता एक सप्‍ताह मेरे जीवन का न भूलने वाला समय रहा।  इस दौरान वह सब कुछ हुआ जिसकी कल्‍पना मैंने कभी नहीं की थी। दिनांक 18 नवम्‍बर के दोपहर 3 बजे के करीब मुझे मेरे ससुराल वालों की तरफ से यह जानकारी दी गयी कि मेरा बडा साला दीपक जो कि वर्तमान में पुणा के किसी मल्‍टीनेशनल कम्‍पनी में साफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत था, वह गोवा में दुर्घटनाग्रस्‍त हो गया है तथा आईसीयू में एडमिट है। मैं तुरंत ही बिष्‍टुपूर स्थित अपने ससुराल पहुंचा तो मुझे विस्‍तार से जानकारी दी गयी कि दीपक तथा उसके कई अन्‍य पुराने साथी संगी अलग-अलग जगहों से मिलने जुलने के लिए गोवा गए थे जहां समंदर में नहाने के दौरान हादसा हुआ और वह आईसीयू में गंभीर अवस्‍था में एडमिट हैा  यह जानकारी गोवा से उसके दोस्‍तों ने ही फोन द्वारा मेरे ससुराल में दी गयी थी। अचानक हुए इस अप्रिय वारदात ने मेरे ससुराल के लोगों को मानसिक आघात पहुंचा दिया था। आनन फानन में कोलकाता से मुंबई होते हुए गोवा के हवाई मार्ग का टिकट कटाया गया तथा रात के 1 बजे मैं अपने ससुर जी तथा छोटा सा

सी एम ई आर आई, दुर्गापुर क्रिकेट टीम को बधाई

----------------------------------------------------- एसएसबीएमटी 2007 का यादगार ग्रुप फोटो ----------------------------------------------------- बीते दिनों नई दिल्‍ली में आयोजित हुए एसएसबीएमटी जोनल आउटडोर क्रिकेट टूर्नामेंट में सीएमईआरआई, दुर्गापुर की क्रिकेट टीम ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए फाइनल टूर्नामेंट के लिए क्‍वालीफाइ्र कर लिया है। मेरे तरफ से पूरे क्रिकेट टीम तथा इससे जुडे प्रबंधक महोदय तथा सचिव महोदय को बहुत बहुत बधाई। वर्तमान में एसएसबीएमटी टूर्नामेंट जिसका स्‍तर काफी उच्‍च कोटी का है ऐसे में फाइनल के लिए टीम का क्‍वालीफाई करना अपने आप में एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है। मुझे अच्‍छे से याद है कि वर्ष 2007 में जब मैं खुद इस क्रिकेट टीम को एक सदस्‍य बना था। कैसे उस समय प्रशासन के भर्ती अनुभाग के अनुभाग अधिकारी श्री सुप्रकाश हलदर जी ने एक अच्‍छी टीम बनाने के लिए क्‍या कुछ प्रयास किए थे। सुबह सुबह सबके घर के दरवाजे-दरवाजे जाकर उसे उठाकर क्रिकेट ग्राउंड पहुंचने के लिए प्रेरित करना। नेट पर अभ्‍यास के दौरान क्रिकेट से जुडी बारीकियों को समझाना। लीग मैच खेल रहे युवाओं के साथ मैच की

इंसानियत

हम अक्‍सर ही दूसरों को इंसानियत का पाठ पठाया करते हैं। ऐसे मौक कम ही होते हैं जब हम खुद ही इस पाठ को अपने उपर अमल में लाते हैं। इंसानियत अक्‍सर की कई मौकों पर तार-तार होती हैा कभी जानबूझकर कभी बिना जाने बूझे। आज का दिन बहुत ही भयावह रहा। सुबह 06.30 बजे पत्‍नी ने आवाज देकर उठाया और बताया कि बेटे के स्‍कूल की तैयारी नहीं हो पायी है इसलिए ऑटो वाले को मना कर देती हॅूं आप खुद ही बेटे को स्‍कूल छोड दीजिएगा। मैं तैयार हो गया। कारण साफ था ऑटो वाला कुछ अधिक समय पहले ही घर से मेरे बेटे को ले जाता है क्‍योंकि उसे और भी बच्‍चों को उनके घरों से लेना पडता है जबकि मैं सीधे मात्र 10 मिनट में अपने घर से स्‍कूल पहुंच जाता हॅूं। अक्‍सर ही ऐसा वाकया होता है जिसके लिए मैं हमेशा ही मानसिक रूप से तैयार रहता हॅू। मेरी पत्‍नी मेरे पुत्र को स्‍कूल के लिए तैयार कर रही थी तभी अचानक ही मेरे घर के बाहर कुछ तेज आवाज सुनाई दी। मैं बाहर निकला तो देखा मेरे पडोस के शर्मा जी मुझे ही पुकार रहे थे। बाहर निकलने पर उन्‍होंने मुझे सूचना दी कि उनके पडोस के दास जी की दुर्घटना रात्रि समय कार्यालय से आवास आने के सम

लोकतंत्र में अनशन

बहुत ही दुर्भाग्‍यपूर्ण है लोकतंत्र के शिखर लालकिला पर खडे होकर जनतांत्रिक प्रणाली के प्रधानमंत्री का कहना कि किसी प्रकार की मांग को मनाने के लिए अनशन या भूख हडताल का सहारा न लें। वो भी स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर जिसके इतिहास में अनशन तथा भूख हडताल समाया हुआ हो। जनहित में भ्रष्‍टाचार को हटाने की मांग में किए जाने वाले अनशन को जगह तक नहीं दिया जाना एक तरह से लोकतंत्र को गला घोंटने का प्रयास किया गया है। शांतिपूर्वक तरीके से किए जा रहे जन आंदोलन को कूचलने का यह कुत्सित प्रयास बाबा साहेब आम्‍बेडकर के संविधान को एक तमाचा है। वर्तमान सरकार अंग्रेजी हुकूमत से भी आगे निकल गई है। अंग्रेजी हुकूमत ने यदि इस तरह के फरमान सुनाए होते तो महात्‍मा गांधी के सत्‍याग्रह, नमक आंदोलन, नील खेती आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन तथा अन्‍य दूसरे आंदोलन का क्‍या हस्र होता यह जगजाहिर है। आजादी मिलने के बावजूद यदि हम शांतिपूर्वक तरीके से अपनी बात सरकार के सामने नहीं रख पा रहे तो यह कैया लोकतंत्र है, यदि आमरण अनशन के हथियार को नेस्‍तनाबूत करने के सरकार के इस प्रकार के कदम जारी रहे तो फिर इस देश में एक बार फिर से भगत सि

उम्‍मीद

गम की आंधी में उम्‍मीदों का चिराग जलने दो आज जिस बेइंतहा मोहब्‍बत में हो चुका ये दिल बर्बाद उस मासूम नजर पर एतबार करने दो आज गम की आंधी में उम्‍मीदों का चिराग जलने दो आज नजरें फेर कर हमसे जो तडपता छोड गई थी उस कातिल जिगर का इंतजार करने दो आज गम की आंधी में उम्‍मीदों का चिराग जलने दो आज जिसको पाने की आरजू में छूटती गई जीवन की डोर उस संगदिल मुस्‍कुराहट का दीदार करने दो आज गम की आंधी में उम्‍मीदों का चिराग जलने दो आज दम घुंटता जा रहा इस बेदर्द जहां की वादियों में फिर से एकबार अपनी मोहब्‍बत का इकरार करने दो आज गम की आंधी में उम्‍मीदों का चिराग जलने दो आज

मधुशाला

जीवन के भाग दौड में जब अस्त हो जाए सफर पी लेना तू सब्र का प्याला मत जाना प्यारे मधुशाला मधुशाला है धैर्य विहीन संसार जो पौरुष का नाश कर देता है पुरुषार्थ जिससे विनाश हो जाता है परमार्थ जिसका परित्याग कर देता है मंजिल की राहों में जब हर सफर थम जाए दो राहे पर आकर पी लेना तू सब्र का प्याला मत जाना प्यारे मधुशाला मधुशाला के सोमरस में डूबते ही तुम पाओगे रिश्ते नातों की तकरार कर्तव्य विहीन संसार क्षणिक सुख की प्रत्याशा में संसारिक दायित्यों को भूलते ही तुम जाओगे पी लेना तू सब्र का प्‍याला मत जाना प्यारे मधुशाला

आत्महत्या की तीसरी असफल कोशिश - 2001

वर्ष 2001 मेरी जिंदगी के लिए काफी उथल पुथल रहा। अपनी शादी के लिए मैंने काफी ना नुकर किया मगर मेरे बहनोई तथा अन्‍य रिश्‍तेदारों के मानसिक यंत्रणा के परिणामस्‍वरूप मैंने अंतत: अपनी शादी के लिए हां कर दी। मेरी शादी के लिए कई फोटो भी आ गए तथा लडकी देखने का सिलसिला आरंभ भी हो गया। मेरी यही शर्त थी कि लडकी देखने मैं कतई नहीं जाउंगा जिसे मेरे घरवालों ने मान लिया। अंतत: मेरा रिश्‍ता तय भी हो गया। घरवालो ने लडकी देखी और उन्‍हें पसंद आ गया। इस सबके बीच मैं पूरी तरह से मानसिक अवसाद से गुजर रहा था। मैंने अपनी जिंदगी में उस सख्‍श को छोड किसी और की कल्‍पना कभी नहीं की थी मगर आज ऐ सब कुछ हो रहा था वो भी मेरी मर्जी के बाद ही। मैं पूरी तरह से व्‍याकुलता के हद से बाहर था। इसी बीच वेलेंटाइन्‍स डे के दिन मैं चुपके से बिना लडकी वाले के परिवार के लोगों बताए उसके घर भी चला गया था हाथ में गुलाब का फूल लिए और फिर कुछ देर तक लडकी तथा उनके सारे बहनों से अच्‍छी खासी बातें भी की मगर इस सब के बावजूद मैं अंदर से खुद को बिखरा-बिखरा सा महसूस कर रहा था। मुझमें जीने की ललक खत्‍म सी होती जा रही थी। न जाने मुझे ऐ

आत्महत्या की पहली असफल कोशिश - 1994

मुझे अच्‍छे से याद है वर्ष 1994 का वह साल था जबकि मैं के.एम.पी.एम. इण्‍टर कॉलेज के प्रथम वर्ष का छात्र था। वही पिताजी वाली साइकिल से लालबिल्डिंग के अपने घर से बिष्‍टुपुर स्थित कॉलेज जाना तथा वापस आना। कभी कभार पैदल ही स्‍टेशन जाकर वहां से बस पकडकर कॉलेज जाना तथा वापस आना। पढाई - लिखाई से संबंधित कभी कोई प्रश्‍न मेरे पिता ने मुझसे न तो बाल्‍यवस्‍था में पूछे थे और न ही कॉलेज लाइफ में। उन्‍हें कोई मतलब ही कभी नहीं रहा कि उनके बच्‍चे क्‍या-कहां-कब पढ रहे हैं, पढ भी रहें हैं कि नहीं। उनके लिए जिंदगी सामाजिक कार्य से लेकर घर के बगान तक सीमित रहती। 1994 के अगस्‍त महीने में मैंने आत्‍महत्‍या की पहली नाकाम कोशिश की थी। क्‍यों की थी आज तक मैंने यह बात किसी से शेयर नहीं की है। मगर अब लगता है कि अब इसे मैं अपने दिल के अंदर दबा कर और नहीं रख सकता। इसलिए आज बहुत दिनों के बाद काफी सोचने समझने के बाद इसके उपर से पर्दा उठाने जा रहा हॅूं। मैंने बचपन से यही देखता आया कि किसी भी प्रकार की कोई समस्‍या होने पर उस समस्‍या के निराकरण के बदले मेरे पिताजी उस समस्‍या को लेकर किसी मेरी मां पर ही ताना कसने ल

कल और आज

आज 21 जून, 2011 हैा बीता कल 20 जून, 2011 था। आज ही के दिन अर्थात 20 जून, 2006 को मैंने दुर्गापूर में सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यभार ग्रहण किया था। एक सरकारी नौकरी जिसने मेरी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। क्‍या से क्‍या हो गया। 20 जून, 2006 से पहले के समय के बारे में कभी सोचता भी हूं तो सिहर जाता हॅूं। क्‍या जिंदगी थी। सुबह 09.15 से 05.45 तक की ड़यूटी फिर 6.15 के करीब घर वापस आकर तैयार होकर रात 08 बजे से 01.30 बजे की दूसरी ड़यूटी को जाना फिर लगभग 2 बजे के करीब घर वापस आना। 3 से 4 बजे के करीब सुबह में सोना फिर सुबह 8.30 बजे उठकर पहली ड़यूटी की तैयारी में लग जाना। कभी कभी तो दूसरी ड़यूटी सुबह 2 बजे के बाद ही खत्‍म होती। इतना भागदौड करने के बावजूद हाथों में महज 5500/- पांच हजार पांच सौ के करीब राशि का आना और इससे अपने छोटे से परिवार को चलाने के लिए गुत्‍थमगुत्‍थी करना। वक्‍त बदला, मेरी मेहनत से ज्‍यादा मेरी किस्‍मत का हाथ रहा इसमें। 20 जून, 2006 को जब मैंने एक सरकारी कार्मिक के रूप में अपना कार्यभार संभाला तो उस समय मेरे हाथों में लगभग सबकुछ काटने के बाद 5000/- की राशि मिलने लगी

पहली मोहब्बत का इजहार

मोहब्बत का इजहार करना कितना कठिन होता है उपर से उस समय जब आपको यह मालूम न हो कि उसके दिल में आपके लिए क्‍या है। वर्ष 1994 की बात है जब मैं इंटर का प्रथम वर्ष का छात्र था। अगस्‍त का महीना चल रहा था जबकि मैंने आत्‍महत्‍या की नाकाम कोशिश की थी वजह सिर्फ और सिर्फ घरेलू परेशानी थी। इस सदमे से उबरने के बाद मैं जिंदगी जीने की जद्दोजहद कर ही रहा था कि पडोस में रहने वाली एक शख्‍स ने मेरे दिल में एक नई जिंदगी के रूप में दस्‍तक दी। मैं मानसिक रूप से परेशानी की हालत में था, खुद को इस दुनिया के किसी कोने में रख पाने का हौसला बिलकुल ही खो चुका था। ठीक इसी समय मुझे लगा कि मुझे एक नई जिंदगी मिल गई। उसकी ओर मैं खींचा चला गया सिर्फ जिंदगी जीने की मजबूरी के कारण।  मुझे ऐसा लगने लगा कि वही मेरी जिंदगी है और मैं उसे जिंदगी मानकर पुराने गम को भूलने की कोशिश करने लगा। इस बात की खबर मेरे दोस्‍त प्रमोद पंडित को हो गई उसने मुझे अपनी मोहब्‍बत का इजहार उस शख्‍स से करने की बात कही मगर मैं इसके लिए तैयार नहीं हो रहा था किंतु मेरे उस दोस्‍त ने मुझमें शक्ति का संचार किया और परिणामस्‍वरूप मैं एक लम्‍बा चौडा पत्

आधुनिक स्‍वतंत्रता संग्राम

चुप बैठे, खामोश रहें अब हमें ये गंवारा नहीं समस्‍याओं को सुलझाने में अब नेताओं का लेना सहारा नहीं उमड पडी है जन शक्ति अब अण्‍णा के मार्गदर्शन में चुप बैठे, खामोश रहें अब हमें ये गंवारा नहीं जन लोकपाल विधेयक लाकर अब भ्रष्‍टाचार को आगे बढाना नहीं एकजुट हो गयी है जन शक्ति अब अण्‍णा के मार्गदर्शन में चुप बैठे, खामोश रहें अब हमें ये गंवारा नहीं गोरे अंग्रेजों से लडकर हमने एक आजादी पायी है काले अंग्रेजों से लडकर हमें अब फिर से आजादी पानी है संगठित हो गए हैं हिन्‍दुस्‍तानी अब अण्‍णा के मार्गदर्शन में जय हिन्‍द, जय भारत

अण्णा हजारे जी को मेरा शत-शत नमन

अंतत: हम जीत गए । जन शक्ति ने अपना खेल दिखा ही दिया । अण्‍णा जी एवं उनकी पूरी टीम को पूरी हिन्‍दुस्‍तान की जनता की तरफ से बधाई । पिछले कई वर्षों से ऐसा लग रहा था जैसे कोई नहीं जो आम आदमी की बात सुने, कोई नहीं जो आम आदमी की परेशानी को समझ सके। सारा हिन्‍दुस्‍तान त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा था मगर उपर बैठे लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही थी। लोग खुद को बेबस-लाचार महसूस कर रहे थे। ऐसी परिस्थिति में अण्‍णा जी के आंदोलन ने वो कमाल कर दिया जैसे लगा सचमुच हम आजादी की दूसरी लडाई लड रहे हों । अदभुत वाकई अदभुत-अभूतपूर्व रहा। आम जनता की जीत हुई । अण्‍णा जी एवं उनकी पूरी टीम को इसके लिए बधाई। हमें आशा है न सिर्फ भ्रष्‍टाचार अपितु समाज में फैले सभी प्रकार की समस्‍याओं के निराकरण के लिए उनका मार्गदर्शन हमें मिलता रहेगा।

अन्‍ना हजारे और आधुनिक स्‍वतंत्रता संग्राम

पिछले तीन दिनों से अन्‍ना हजारे अनशन पर बैठे हुए हैं। उन्‍होंने पिछले तीन दिनों से कुछ भी खाया पीया नहीं है मगर इस दौरान हमारे देश के 120 करोड की आबादी के अधिकांश लोग अपना जीवन पूर्व की तरह ही जिए जा रहे हैं जिसमें मैं खुद भी शामिल हॅूं। पिछले तीन दिनों के दौरान जब भी कुछ खा पी रहा हॅूं मेरे जेहन के सामने एक चेहरा अकस्‍मात ही नजर आ रहा है वह फिर मैं अपने आप को धिक्‍कारने लगता हॅूं। मुझे आत्‍मग्‍लानि महसूस हो रही है। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं वर्ष 1947 के पहले के समय में हॅूं और जबकि समूचा देश स्‍वतंत्रता संग्राम के लिए आंदोलनरत है मैं अंग्रेजों की वफादारी में अपना समय काट रहा हूँ। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं अपने आप को देशहित के लिए जारी इस आंदोलन में किसी प्रकार शरीक करूँ। मैं क्‍या करूँ, कहां जाएं, किस प्रकार अन्‍ना हजारे के समर्थन में अपने हाथ उठाउं, किसका-कहां विरोध करूँ। आज फिर से एक बार देश को भ्रष्‍टाचार की गुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए एक और गांधी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं मगर मैं खुद को विवश पा रहा हॅूं इस आंदोलन का हिस्‍सा नहीं बन पाने के कारण। जन लोकपाल विधेयक को पारि

आखिर कब तक.........।

कब से सूरज अस्‍त होगा, कब ऐ जिन्‍दगी खतम होगी, कब ऐ सांसें जुदा होगी शरीर से, कब आखिर कब तुम्‍हारे पास होने का एहसास होना बंद होगा.........।

रिश्‍तों के मायने

मुझ जैसे कई लोग होंगे जो बेवकूफों की तरह रिश्‍तों के मायने तलाशते फिर रहे होंगे । पैदा होने से लेकर मरने तक हम कैद रहते हैं रिश्‍तों के भ्रम जाल में। मां-पिता, भाई-बहन, पत्‍नी-संतान से लेकर अनगिनत रिश्‍ते में हम दिन प्रतिदिन फंसते जाते हैं। कहीं हम दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं तो कहीं हम दूसरों से बेवकूफ बनते हैं। लोग जाने अनजाने रिश्‍तों के भ्रम जाल में खुद को कैद करके रखते हैं।

इनकम टैक्‍स की उपयोगिता

वर्तमान परिस्थिति में जबकि समूचा हिन्‍दुस्‍तान भ्रष्‍टाचार से ग्रसित है पिछले कई महीनों से लगातार ही कभी मघु कोडा के लगभग 4000 करोड रुपए, कभी ए राजा के लगभग कई लाख करोड, कभी कलमाडी के कई हजार करोड मामले प्रकाश में आ रहे हैं, इन सबको देखते हुए लगता है इनकम टैक्‍स अर्थात आयकर देने वाले लोग पूरी तरह से बेवकूफ बन रहे हैं। सरकार द्वारा सभी प्रकार के टैक्‍स लेने का प्रयोजन इस पैसों को हिन्‍दुस्‍तान के गरीब आम जनता की भलाई के लिए कार्य करना है मगर यदि यही पैसा किसी एक दो आदमी की बपौती बनने लगे तो फिर टैक्‍स देने वाले लोग तो अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करेंगे ही। कई बार अखबारों में यही विज्ञापन दिया जाता है कि आप कोई भी समान खरीदें आप वैट आदि टैक्‍स देकर मूल बिल लें ताकि टैक्‍स द्वारा जमा किए गए पैसे आम जनता की भलाई में खर्च किए जा सके। मगर वास्‍तविकता इससे कितनी दूर होती जा रही है छोटे से छोटे काम से लेकर बडे से बडे काम में घपले से घपले ही किए जा रहे हैं। सरकारी तंत्र का भी यही मानना है कि सरकार द्वारा भेजी जा रही राशि जो गरीबों के हित में खर्च की जानी है उसका सिर्फ 10 प्रतिशत ही सदुपयोग हो

भ्रष्‍टाचारियों पर अंकुश की नाकाम कोशिश

पिछले कई दिनों से भ्रष्‍टाचार के अनगिनत मामले प्रकाश में आए। कुछेक मामले में कार्रवाई भी कई गई मगर सवाल यही उठता है कि किसी भी प्रकार के भ्रष्‍टाचार के मामले में कार्रवाई निचले स्‍तर तक ही जाकर सिमट जाती हैा कभी भी भ्रष्‍टाचार के मामले में पूरे दल को अर्थात नीचे से लेकर उपर तक के लोगो को घसीटा नहीं जाता हैा भ्रष्‍टाचार कभी भी किसी एक स्‍तर पर नहीं हो सकता। यह नीचे के कार्मिकों से आंरभ होकर उपर के आला अधिकारियों तक जाकर समाप्‍त होता हैा किसी भी प्रकार का भ्रष्‍टाचार तभी संभव है जब नीचे से लेकर उपर तक के अधिकारी व कार्मिक मिल जुलकर इसे अंजाम न पहुंचाए। अधिकतर मामले में यही देखा गया कि भ्रष्‍टाचार का मामला प्रकाश में क्‍या आया सिर्फ नीचे के स्‍तर के कार्मिकों पर कार्रवाई की गयी और उपर के अधिकारी जो मुख्‍य रूप से भ्रष्‍टाचार से जुडे रहते है उनका नाम तक प्रकाश में नहीं आया। एक दो मामले को यदि छोड दिया जाए जो कि रक्षा से संबंधित हैं बाकी सभी मामले इसी तरह के हैं। चाहे ए राजा प्रकरण हो, मधु कोडा प्रकरण हो या फिर कलमाडी प्रकरण, मुझे यही लगता है ऐ सारे के सारे तो सिर्फ मोहरे मात्र हैं, इनके पीछ

कसाब की फांसी पर चर्चा

पिछले दिनों हार्इ कोर्ट ने अजमल कसाब की फांसी पर अपना फैसला देते हुए उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा। उसी रात आईबीएन 7 के न्‍यूज नेटवर्क पर अजमल कसाब को अधूरा इंसाफ शीर्षक चर्चा प्रसारित की गई और उस चर्चा के दौरान दोनों वकीलों के साक्षात्‍कार प्रसारित किए गए और फिर लम्‍बी बहस की गई कि क्‍या सही हुआ क्‍या गलत हुआ। ऐ हिन्‍दुस्‍तान है जनाब और यहां की धरती पर आकर यहां के वाशिंदे को कत्‍लेआम कर देने वालों के साथ भी हमारे अपने मुल्‍क में कई रहनुमां हैं इसके साथ हमारे देश का कानून भी है जो पूरी सत्‍यनिष्‍ठा के साथ मेहमान की तरह रखते हुए फ्री में वकील सुविधा देकर केस को लडने का मौका देता हैा कसाब की बात तो दूर की है हमारे संसद पर हमला करने वाले मुख्‍य आरोपी अफजल गुरु जिसको फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने दे रखी है और जिस पर हमारे माननीया राष्‍टपति महोदया ने भी अपनी रहम की भीख देने से मना कर दी इसके बावजूद आज तक उसे सरकारी मेहमान बना कर रखा गया है सारे सुख सुविधाओं को देकर और तो और अभी हाल ही में ये भी प्रयास किया जा रहा है कि उसे जम्‍मू कश्‍मीर की जेल में स्‍थानांतरण कर दिया जाए ताकि उसकी बूढी

स्विस बैंक में जमा काला धन

पिछले कई महीनों से कभी बाबा रामदेव जी तो कभी बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियों द्वारा विदेशों खासकर स्विस बैंक में जमा भारतीयों के काले धन को वापस हमारे देश में लाने की बातें की जा रही हैा कहा यह जा रहा है कि यदि विदेशों में जमा काले धन को भारत लाने में सफलता मिल गई तो भारत की अर्थव्‍यवस्‍था काफी मजबूत हो जाएगी, ऐ हो जाएगा, वो हो जाएगा। मैं एक बात जानना चाहता हॅूं कि क्‍या भारत में रुपये पैसों की कमी रही, क्‍या कभी किसी बजट में पिछले बजट की अपेक्षा कम बिल पर सहमति बनी। साल दर साल बजट राशि में तो बढोत्‍तरी होती ही जा रही है। और तो और कई ऐसे रास्‍ते भी तलाशते जाते हैं जिनसे नेताओं की झोली भरी जा सके। गरीबों के लिए जितने भी योजना संचालित हैं उनमें से सभी योजनाओं का बंदरबाट इस हद तक जारी है कि वास्‍तविक गरीब तक इसका फायदा 1 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच पाता हैा इस देश को भ्रष्‍टाचार की घून लग चुकी है, नीचे से लेकर उपर तक के लोग इसमें जकड चुके हैं। पहले की बात और थी जब भ्रष्‍टाचार में नाम शामिल होने का मतलब होता था राजनीतिक मौत मगर अब न जाने क्‍या हो गया है वे बिंदास अंदाज में सरकारी तंत्र में शा

तुम्‍हारा वो घर

आज भी वहां से गुजरते हुए तुम्‍हारे मकां की तरफ देखने की हिम्‍मत नहीं होती, कौन कहता है वक्‍त के साथ सबकुछ बदल जाता है, तुम्‍हारा भी शायद ऐसा ही मानना था, लेकिन कमबख्‍त वक्‍त आज तक मुझे बदल ही नहीं पाया। मैं जहां था 1994 में आज भी लगता है जैसे वहां ही खडा हूं। मेरे आस पास के सारे नजारे पूरी तरह से बदल गए मगर नहीं बदला तो मैं और मेरी मानसिकता। मुझे अच्‍छे से याद है 1994 में जबकि मैंने मोहब्‍बत की राहों में चलना आरंभ ही किया था, मुझे तुम्‍हारी ओर तो छोडो तुम्‍हारे मकां तक देखने की हिम्‍मत नहीं होती थी, चोरी छिपके नजरे बचाके देखने की जुर्रत करता था वो भी काफी हिम्‍मत करके और ऐ आज का वक्‍त है जबकि मेरी मोहब्‍बत के निशां तक बाकी नहीं रहे मगर इसके बावजूद आज भी मुझमें हिम्‍मत नहीं कि नजरें उठाकर तुम्‍हारे मकां की ओर देख सकूं। आज भी तुम्‍हारे मकां की ओर चोरी छिपके ही नजरे फिरती हैं वो भी काफी हिम्‍मत करने के बाद। कौन कहता है वक्‍त के साथ सबकुछ बदल जाता है.............।