वर्ष 2001 मेरी जिंदगी के लिए काफी उथल पुथल रहा। अपनी शादी के लिए मैंने काफी ना नुकर किया मगर मेरे बहनोई तथा अन्य रिश्तेदारों के मानसिक यंत्रणा के परिणामस्वरूप मैंने अंतत: अपनी शादी के लिए हां कर दी। मेरी शादी के लिए कई फोटो भी आ गए तथा लडकी देखने का सिलसिला आरंभ भी हो गया। मेरी यही शर्त थी कि लडकी देखने मैं कतई नहीं जाउंगा जिसे मेरे घरवालों ने मान लिया। अंतत: मेरा रिश्ता तय भी हो गया। घरवालो ने लडकी देखी और उन्हें पसंद आ गया। इस सबके बीच मैं पूरी तरह से मानसिक अवसाद से गुजर रहा था। मैंने अपनी जिंदगी में उस सख्श को छोड किसी और की कल्पना कभी नहीं की थी मगर आज ऐ सब कुछ हो रहा था वो भी मेरी मर्जी के बाद ही। मैं पूरी तरह से व्याकुलता के हद से बाहर था। इसी बीच वेलेंटाइन्स डे के दिन मैं चुपके से बिना लडकी वाले के परिवार के लोगों बताए उसके घर भी चला गया था हाथ में गुलाब का फूल लिए और फिर कुछ देर तक लडकी तथा उनके सारे बहनों से अच्छी खासी बातें भी की मगर इस सब के बावजूद मैं अंदर से खुद को बिखरा-बिखरा सा महसूस कर रहा था। मुझमें जीने की ललक खत्म सी होती जा रही थी। न जाने मुझे ऐ
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