वर्ष 2001 मेरी जिंदगी के लिए काफी उथल पुथल रहा। अपनी शादी के लिए मैंने काफी ना नुकर किया मगर मेरे बहनोई तथा अन्य रिश्तेदारों के मानसिक यंत्रणा के परिणामस्वरूप मैंने अंतत: अपनी शादी के लिए हां कर दी। मेरी शादी के लिए कई फोटो भी आ गए तथा लडकी देखने का सिलसिला आरंभ भी हो गया। मेरी यही शर्त थी कि लडकी देखने मैं कतई नहीं जाउंगा जिसे मेरे घरवालों ने मान लिया। अंतत: मेरा रिश्ता तय भी हो गया। घरवालो ने लडकी देखी और उन्हें पसंद आ गया।
इस सबके बीच मैं पूरी तरह से मानसिक अवसाद से गुजर रहा था। मैंने अपनी जिंदगी में उस सख्श को छोड किसी और की कल्पना कभी नहीं की थी मगर आज ऐ सब कुछ हो रहा था वो भी मेरी मर्जी के बाद ही। मैं पूरी तरह से व्याकुलता के हद से बाहर था।
इसी बीच वेलेंटाइन्स डे के दिन मैं चुपके से बिना लडकी वाले के परिवार के लोगों बताए उसके घर भी चला गया था हाथ में गुलाब का फूल लिए और फिर कुछ देर तक लडकी तथा उनके सारे बहनों से अच्छी खासी बातें भी की मगर इस सब के बावजूद मैं अंदर से खुद को बिखरा-बिखरा सा महसूस कर रहा था। मुझमें जीने की ललक खत्म सी होती जा रही थी। न जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा था कि मैं कुछ गलत कर रहा हॅूं।
इसी उधेडबुन में 20 मई, 2001 की रात मैं जबकि घर में अकेला था परिवार के बाकी सारे सदस्य गांव में पूजा देने गए हुए थे। मैंने अपनी बीती नई जिंदगी जो मेरे अनुसार वर्ष 1994 से आरंभ हुई थी को खंगाल डाला और अचानक ही मैंने यह फैसला ले लिया कि अब इस जिंदगी में मैं जी नहीं सकता। जिसकी मोहब्बत ने मुझे यह नई जिंदगी दी यदि वही आज मेरे साथ नहीं तो फिर मेरे लिए इस जिंदगी के कुछ भी मायने बाकी नहीं। यही सब कुछ सोचकर मैंने अंतत: फैसला कर लिया कि अब नहीं जीना इस जींदगी को और फिर मैंने रात को घर में खोजना आरंभ किया जिससे मैं अपनी जिंदगी को समाप्त कर सकूं। थोडी ही देर में मेरे हाथों में एसिड की बोतल थी जो दरअसल बाथरूम साफ करने के लिए लाई गयी थी। मैंने अपने आप को सयंमित करते हुए बोतल में रखे एसिड को एक स्टील के ग्लास में डाली और उसे अपने हाथों में लेकर अपने मुंह तक लाया फिर अचानक मेरे आंखों के सामने एक मोहक मुस्कान जिंदगी की आ गई। मेरे दिल में उसे एक बाद देख लेने उससे अंतिम बार मिलकर उससे कुछ बातें कर लेने का ख्याल घर आया। न चाहते हुए भी आज मैं अपने दिल के हाथों हार गया और फिर मैंने यह सोच लिया कि एक बार अंतिम बार उससे मिल लेता हूं, दिल की बातें कुछ कह लेता हॅूं फिर मौत को गले लगा लूंगा। ऐसा सोचकर मैंने उस ग्लास भरे एसिड को दुबारा एसिड की बोतल में डाल दिया। अचानक मेरी नजर गई तो देखा कि स्टील के ग्लास के अंदर का रंग पूरी तरह बदरंग हो चुका था।
अगले ही दिन मैंने अपनी एक दीदी से अपनी उस जिंदगी से मिलाने का आग्रह किया तो वह मुझसे बोली कि अब क्यों मिलना चाहते हो, अब तो तुम्हारी शादी होने जा रही है। मैंने उससे अपने दिल की सारी बातें कह दी। इस पर उसने मुझे भरोसा देते हुए कहा कि मैं कोशिश करती हॅूं।
मगर अगले ही दिन मुझे उस दीदी ने बताया कि मेरी उस जिंदगी ने कहा कि वह नहीं मिलना चाहती है मुझसे, वह बोल रही थी कि अब क्यों मिलना चाहता है वो मुझसे।
इसके बाद मैं टूट कर बिखर गया और मुझमें हिम्मत नहीं रही मौत को गले लगाने की क्योंकि दिल कमबख्त आखिरी बार उससे मिलना चाहता था, एक अंतिम बार उसका करीब से दीदार करना चाहता था, दिल में दफन कुछ बातें उससे करना चाहता था। मगर शायद मेरे ईश्वर को यह मंजूर नहीं था।
आज भी जिंदा ही हॅूं। जिंदगी जी रहा हॅूं।