मैंने अपने जीवन में कई उतार चढाव देखे, कई रिश्तों को पुन:र्जन्म लेते देखा, कई रिश्तों को रिश्तों के मायने तलाशते देखा, कई रिश्तों को सामाजिक बंधनों की मर्यादा मानते हुए निभाते हुए देखा, कई रिश्तों को बदलते बिगडते देखा, कई रिश्तों को महज सामाजिक बंधनों की मार्यादा के कारण ही बंधे रहते देखा। अपने 32 वर्ष के जीवन में मुझे रिश्ते नाते के व्यवहारिक दुनिया ने कई दौर दिखाए। मुझे ऐसा लगता है जैसे कि रिश्ते नाते की इस दुनिया में मैं काफी बूढा हो चुका हूँ। ऐसा लगने लगा है जैसे हर कोई महज सामाजिक बंधनों की मर्यादा का पालन करते हुए रिश्ते नाते निभाने को बाध्य हैं। अब तो रिश्ते नाते चुभने लगे हैं। रिश्ते नातों की इस दुनियां में सब कुछ के रहने के बावजूद मैं अपने आप को अकेला महसूस कर रहा हूँ। दूर दूर तक कोई तो नहीं है आस पास। आंखे बंद करता हूँ तो भी रिश्ते नातों से भरे मेरे जीवन में मुझे सिर्फ एक शख्स को छोडकर कोई नहीं दिखता और जो दिखता भी है उससे मेरा कोई खून का रिश्ता है भी नहीं। चाहे खुशी के पल हो या फिर दुख के मैं तो हर वक्त खुद को अकेला ही पाता हॅूं। कोई नहीं जिससे मैं अपने जीव
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