मंगलवार, 11 नवंबर 2008

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संस्थान, दुर्गापुर और मैं


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Dear Balu, We all miss you yaar ....................

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संजीत कुमार तथा मनीष जी का शुक्रिया जो आप दोनों ने मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स लिखा , इसी तरह सभी दोस्तों से मेरा अनुरोध है की कृपया करके आप भी अपने कमेंट्स जरुर से जरुर लिखें.
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मेरा बचपन बंगाली माहौल में गुजरा। 1978 के बालपन से लेकर 2006 की जवानी तक मैंने बंगाली माहौल में सांसे ली. मेरा पहला प्यार भी एक बंगाली ही थी। मुझे बंगाल से जुड़ी हर एक चीज पसंद लगती थी। मैंने बंगाली बोलना सीखा। मेरी नौकरी जब दुर्गापुर में केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान में हुई तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। जिस बंगाली माहौल से मुझे एक सभ्य संस्कार की खुशबू आती थी, उसी माहौल में रहने, काम करने का मुझे सौभाग्य मिला था। मेरे लिए बंगाल में काम करना, बंगाली माहौल में काम करना किसी सपने के सच होने के समान था। वो बंगाल जिसने रबिन्द्र नाथ टैगोर और अमर्त्य सेन जैसा नोबेल पदकधारी पैदा किया। वो बंगाल जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपना एक अहम् योगदान दिया। प्रत्येक बंगाली को जिस तरह अपने आप पर गर्व होता है ठीक उसी तरह मुझे भी बंगाल के माहौल में ख़ुद को पाकर असीम गर्व की अनुभूति हुई।
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.समस्त बंगाल के सभी निवासियों को मेरा कोटिशः नमन। .
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मैंने केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान, दुर्गापुर में 20 जून 2006को अपना पद ग्रहण किया। मुझे अच्छी तरह से याद है उस समय मेरा स्वाभाव अजीबोगरीब था। जब मैं पद ग्रहण करने RCT अनुभाग गया था तो मेरे सर पे टोपी थी, मेरे हांथो में बैन्ड बंधा हुआ था। मेरे स्वर में एक अजीब तरह का बडबोलापन था, जो उस समय कई लोगों को जरुर खटका होगा। इसमे कोई दो राय नही की व्यावहारिक स्तर पर मैं ग़लत था। इसका एहसास मुझे लगभग 1 वर्षों के बाद हुआ। मेरे लिए ये नौकरी किसी जीवनदान से कम नहीं। मैं इसके लिए इश्वर को कोतिश: नमन करता हूँ। इस नौकरी से पहले मेरी क्या हालत थी, ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं ही जनता हूँ। सुबह 9 से साम 6 बजे तक NML जमशेदपुर की नौकरी और फिर रात 8 बजे से देर रात 2 बजे तक उदितवाणी समाचार पत्र में काम करके कुल मिलाकर जैसे तैसे 5500 रूपये कमा पाता था। इसी दौरान किसी तरह से कम्पीटिशन की तैयारी करके मैंने CMERI दुर्गापुर जैसे प्रतिष्ठित सन्स्थान में एक पोस्ट पर अपना कब्जा किया था।
मैंने जब CMERI में अपना पद ग्रहण किया था, उस समय मैं हॉस्टल में कुछ दिनों के लिए रहा था। मैं E-II में तैनात मनीष कुमार को नहीं भूल सकता। एक मनीष ही था जिससे मेरे सबसे पहले दोस्ती हुई थी। वो ही मुझे हॉस्टल आकर उठाता था और अपने साथ मुझे ऑफिस ले जाता था। किसी नए जगह में जो आरम्भ में सूनापन लगना चाहिए था वो मुझे मनीष कुमार की वजह से कभी नहीं लगा। इसके लिए मैं आजीवन मनीष का आभारी रहूँगा।
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मनीष मेरे दोस्त में तूझे भूल नहीं सकता यार।
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................." एक तुम ही थे जिसने मुझे तनहाइयों में दिया था सहारा ..............
..................एक तुम ही थे जिसने मेरी कश्ती को किया था किनारा ..................
..................तुझसे जुड़ी है कई यादें मेरी .................................................................
..................आज भी तेरी याद में पलकें भींगती है मेरी" ........................................
..............................................................................................................परमार्थ सुमन
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CMERI में join करने के बाद मेरी तैनाती सबसे पहले RCT अनुभाग में पूर्णिमा दीदी के अधीन हुई। मुझे परियोजना सहायक से सम्बंधित कार्य सौंपा गया किंतु अचानक ही 2 दिनों के बाद मेरी तैनाती E-II अनुभाग में कर दी गयी।
मैंने E-II अनुभाग में श्री बी पी साव, अनुभाग अधिकारी के अधीन अभी काम करना शुरू ही किया था की मेरी तैनाती हिन्दी अनुभाग में कर दी गई।