आतंक के साए में सांसे ले रहा हिन्दुस्तान आज त्रस्त है। हर तरफ आतंक और आतंक पसरा हुआ है। हर कोई आतंक के साये में सांसे ले रहा है। पहले तो हम दूसरे देशों से आये आतंकवादियों से संग्राम कर रहें थे, और आज हम अपने ही देश में पाले बढे यहाँ के विघटनकारी तत्वों अर्थात नक्सलवादिओं से लड़ भीड़ रहें हैं। दोनों और से हमारे ही लोग मर रहें हैं, और इसका खामियाजा पूरी तरह से हमें ही भुगतना पड़ रहा है।
कहीं सैनिक शहीद हो रहें हैं तो कहीं नक्सलवादी मर रहें हैं। एक भाई के हाथों दूसरा का खून तो हो ही रहा है। नक्सल को आन्दोलन का नाम देलेवालों को इस पर सोचना चाहिए। एक तरफ वो अपने आपको गरीबों के आन्दोलन का हिस्सा मानती है तो दूसरी तरफ उनके द्वारा इसी देश के लोगों की निर्मम हत्याएं की जाती हैं। एक तरफ वो सरकार को जमीं, शिक्षा और गरीबी में मुद्दे पर कटघरे में हमेशा ही खड़ा करती है तो दूसरी तरफ उनके द्वारा गावों कस्बों के विद्यालय भवनों को महज़ इसलिए नेस्तनाबूत कर दिया जाता है कि वहां उनके खात्मे के लिए सैनिकों को पानाह दिया जाता है। ये क्या है? एक विद्यालय जहाँ ना जाने कितने अशिक्षित लोग शिक्षित हो सकते है उसे बस एक धमाके में ध्वस्त कर देना कहाँ तक उचित है?
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