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लोकतंत्र में अनशन

बहुत ही दुर्भाग्‍यपूर्ण है लोकतंत्र के शिखर लालकिला पर खडे होकर जनतांत्रिक प्रणाली के प्रधानमंत्री का कहना कि किसी प्रकार की मांग को मनाने के लिए अनशन या भूख हडताल का सहारा न लें। वो भी स्‍वतंत्रता दिवस के अवसर पर जिसके इतिहास में अनशन तथा भूख हडताल समाया हुआ हो। जनहित में भ्रष्‍टाचार को हटाने की मांग में किए जाने वाले अनशन को जगह तक नहीं दिया जाना एक तरह से लोकतंत्र को गला घोंटने का प्रयास किया गया है। शांतिपूर्वक तरीके से किए जा रहे जन आंदोलन को कूचलने का यह कुत्सित प्रयास बाबा साहेब आम्‍बेडकर के संविधान को एक तमाचा है। वर्तमान सरकार अंग्रेजी हुकूमत से भी आगे निकल गई है। अंग्रेजी हुकूमत ने यदि इस तरह के फरमान सुनाए होते तो महात्‍मा गांधी के सत्‍याग्रह, नमक आंदोलन, नील खेती आंदोलन, भारत छोडो आंदोलन तथा अन्‍य दूसरे आंदोलन का क्‍या हस्र होता यह जगजाहिर है। आजादी मिलने के बावजूद यदि हम शांतिपूर्वक तरीके से अपनी बात सरकार के सामने नहीं रख पा रहे तो यह कैया लोकतंत्र है, यदि आमरण अनशन के हथियार को नेस्‍तनाबूत करने के सरकार के इस प्रकार के कदम जारी रहे तो फिर इस देश में एक बार फिर से भगत सि