3 मार्च 1978 को मेरा जन्म जमशेदपुर में हुआ। मेरे पापा टाटा स्टील में परमानेंट थे। मेरी माँ हाउस वाइफ थी। पिताजी टाटा स्टील के वर्कर कम एक समाजसेवक ज्यादा थे। मेरे जन्म से पहले मेरे माता पिता दोनों ही गायत्री युग निर्माण योजना से संस्थापक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी से और उनकी संस्था से जुड़े हुए थे और वे दोनों ही श्री आचार्य जी से सत्संग मण्डली में भजन आदि के कार्यक्रम करते थे। मेरे जन्म के बाद मेरे माता पिता दोनों ही पारिवारिक रूप से अपना जीवन यापन करने लगे। बागबेरा रेलवे कालोनी, लाल बिल्डिंग जो कि टाटानगर रेलवे स्टेशन से महज 2 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है, वहां मेरी परवरिश एक झोपडी नुमा मकान में हुई। रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण कर यहाँ मेरे पापा ने कुछ घर बनाए थे जिसमें हमलोग रह रहे थे और साथ ही साथ कुछ घरों को भाड़े पर लगाया गया था। मैंने अपना बचपन और जवानी दोनों इसी घर में बिताया।
इस घर के आस पास रेलवे के घर थे जिसमें रेलवे में काम करने वाले कर्मचारी रहते थे। आस पास के लोगों से हमारा ताल्लुक ना ही के बराबर था। बचपन से लेकर जवानी तक पड़ोसियों से कोई सम्बन्ध नहीं के बराबर रहा। जमशेदपुर में हमारे कई अपने सगे रिश्तेदार रहते थे, मेरी पापा के छोटे भाई अपने परिवार के साथ ही जमशेदपुर में ही रह रहे थे, मेरी पापा के बड़े भाई के बड़े बेटे भी अपने परिवार के साथ ही जमशेदपुर में ही रह रहे थे लेकिन आज तक इनसे ना जाने क्यूं रिश्तेदारी नहीं बन पाई। कभी मुझे लगा ही नहीं कि हमारे अपने खून के रिश्तेदार भी यहाँ रहते हैं। कभी मैं अंकल/चाचा शब्द के मर्म का एहसास नहीं कर पाया। कारन जो कुछ भी हो मगर मैं तरसता ही रहा अपने रिश्ते नातों को।
जब से मैंने होश संभाला अपने घर में एक बुजुर्ग को कई कठोर काम करते पाया जो इतने उम्र वाले लोग कर ही नहीं सकते। मेरे घर में वो बुजुर्ग मेरे जन्म से भी कई वर्ष पहले से रह रहे थे और कई तरह के घरेलु काम उनके द्वारा किया जाता था बदले में उनका रहन खाना हमारे घर में होता था। मैं उन्हें नाना कहकर संबोधित करता था। उनका वास्तविक नाम साधू तांती है इसकी जानकारी मुझे कई वर्षों के बाद ही हुई। ये एक कटु सत्य भी है कि वास्तव में मुझे अपने नाना से भी ज्यादा स्नेह उनसे ही मिला। और मेरे घर में किरायेदार के रूप में एक अंकल रहते थे जिसे मैं नारायण चाचा कहकर संबोधित करता था। मैंने चाचा का स्नेह बचपन से लेकर आजतक सिर्फ और सिर्फ उनसे ही पाया। जब भी में अपने जीवन के बुरे दौर से गुजरा सहारे के रूप में मैंने सिर्फ और सिर्फ नायारण चाचा को ही पाया। आज तो मेरे बीच मेरे नाना नहीं हैं मगर मैं उनकी यादों को भूला नहीं सकता। वो भी क्या दिन थे जब मेरे नाना मुझे लेकर पैदल ही मेरे घर लाल बिल्डिंग से बिस्टुपुर चले जाते थे राशन लाने के लिए और इस तरह हम दोनों के 25 पैसे बस किराये के बच जाते और फिर वापस आने समय मेरे नाना उन पैसों से मुझे होटल में बैठाकर गुलगुला खिलाते थे।
मेरे नारायण चाचा जी आज भी जमशेदपुर में ही अपने परिवार के साथ रह रहें हैं। उनसे मेरी मुलाक़ात होती ही रहती है। 1 से लेकर 8 वीं क्लास तक मैंने अपनी पढाई पंडित नेहरु मध्य एवं उच्च विद्यालय बागबेरा में की। वर्तमान में इस स्कूल की हालत खस्ता है। इस स्कूल के कई शिक्षकों से आज मेरी मुलाकात होती ही रहती है। चाहे वो महेश सर जी हों, भूपेंद्र सर और जीतेन्द्र सर से भी मुलाकात होती ही रहती है। मेरे जीवन में इस स्कूल की कई सारी यादें जुडी हुई हैं। इसकी बाद की पढाई मैंने क्लास IX, X और मेट्रिक की MRS K M P M स्कूल, बिस्टुपुर से की।
1991 में मेरे पापा ने टिस्को का घर ECC Flats, कदमा में ले लिए और हमारा परिवार सिर्फ पापा को छोड़ बाकि सब कदमा चले गया। एक बस्ती इलाके से फ्लैट में जाना क्या सुखद संयोग था हमारे लिए। वहां का माहोल एकदम ही निराला था। बागबेरा के घर की तुलना में वहां हमेशा ही बिजली पानी की सुविधा थी। बड़े बड़े रूम थे। हम लोग रूम के अन्दर क्रिकेट खेलते थे। मेरे पापा ने इसी बीच सेकंड हैण्ड राजदूत खरीद लिया उनका कहना था कि वे रोजाना ही गाड़ी से दूध लेकर बागबेरा से कदम पहुंचाया करेंगे लेकिन कुछ दिनों बाद सब कुछ मेरे सर आ गया मैं पापा वाली पुराणी साईकिल से KMPM स्कूल जाता और आता और रोजाना ही दूध लेने कदम से बागबेरा आता और जाता था। पापा ने परिवार को लगभग नजरंदाज करना शुरू कर दिया। कुछ ही महीने हुए होंगे कि माँ ने पापा के कारन कदम का वह फ्लैट छोड़ दिया और वापस हमलोग वही पुराने माकन लाल बिल्डिंग बागबेरा वापस आ गए। एक तरह से मैं ये कह सकता हूँ कि हमलोगों को कुछ दिनों के लिए स्वर्ग नसीब हुआ था।
किसी तरह से मैंने 1995 में मेट्रिक पास किया। मेरा क्लास X का रिजल्ट बहुत ही खराब था। वो तो मेरी माँ के दबाब और लगन का ही प्रतिफल था कि उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए पड़ोस के एक सर श्री पप्पू भैया से बात की और मुझे वहां पढने के लिए भेजा। क्लास X के रिजल्ट से मेट्रिक की परीक्षा के बीच के समय लगभग 3 से 4 महीनों में ही मेरी तैयारी कुछ हद तक सही हो सकी। इसका पूरा का पूरा श्रेया मेरी माँ को ही जाता है। अगर माँ मेरे पीछे नहीं होती तो शायद में सामान्य पढाई भी नहीं कर पता क्योंकि मेरे पापा को किसी के पढाई से कोई मतलब नहीं था।
1995 में मैंने इंटर पास किया। इसकी बाद मेरी माँ की ही वजह से मैंने कंप्यूटर कोर्स में एड्मिसन ले पाया। सबसे पहले मैंने कंप्यूटर क्लास 6 महीनों के लिए आदियापुर में किया। उसके बाद अपने ही इलाके के कॉमर्स टीचर श्री तारा भैया के यहाँ लगभग 1 साल तक कंप्यूटर कोर्स किया। इसी बीच हमारे ही इलाके में एक नया कंप्यूटर इंस्टिट्यूट खुला था वह भी मैंने एक स्टुडेंट के रूप में दाखिला लिया लेकिन कुछ ही दिनों बाद वहीँ मैं कंप्यूटर शिक्षक के रूप में कंप्यूटर की क्लास लेने लगा। NICT कंप्यूटर जो कि लाल बिल्डिंग चौक पर स्थित है और जिसके मालिक श्री किशोर यादव हैं, वहीँ मैं 1997 से 2002 तक शिक्षक के रूप में कार्य करता रहा। इसी बीच अप्रैल 2002 में मरा विवाह करा दिया गया। मेरे काफी ना नुकर के बाद पारिवारिक दबाद के आगे मैं झुक गया और अंततः 30 अप्रैल 2002 को मेरा विवाह हुआ।
अगस्त 2002 को मैंने NML जमशेदपुर में परियोजना सहायक के रूप में कार्यभार संभाला और मेरी पोस्टिंग हिंदी ऑफिसर श्री पुरुषोत्तम कुमार के अधीन हिंदी विभाग में हुई। यहाँ मैं 2002 से अप्रैल, 2006 तक कार्य करता रहा। इसी बीच मैंने CMERI दुर्गापुर में परमानेंट सहायक के पड़ हेतु परीक्षा दिया और CMERI दुर्गापुर में सहायक के पोस्ट पर मैंने 20 जून, 2006 को कार्य भार ग्रहण किया।
अफसरों के मदद और अपनों के आशीर्वाद से मैं 1 सितम्बर 2008 को CMERI दुर्गापुर से ट्रान्सफर होकर वापस NML जमशेदपुर एक परमानेंट पोस्ट के साथ ज्वाइन किया। वर्तमान में मैं यहाँ बिल अनुभाग में कार्य कर रहा हूँ और आयकर के कार्य के अलावा वैज्ञानिको, तक्नीकी अधिकारीयों और सामान्य संवर्ग अधिकारिओं के वेतन बिल बनाने, GPF, LTC बिल आदि का कार्य कर रहा हूँ। जितना काम मैंने NML में सिखा उतना मैं CMERI दुर्गापुर में नहीं सिख पाया था।
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