सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मेरी चाहत या मेरा पागलपन.

एक लड़की जो मेरे दिल में मोहब्बत का पैगाम लेकर आई और जिसे जिन्दगी मानकर मैं जीने को विवश हो गया मगर सच्चाई तो यही है कि कभी भी उसके साथ बैठकर दो चार शब्द प्यार भरी बातें तक नहीं हुई। प्यार की बातें तो छोडिये जनाब उसने तो कभी भी मेरी एक तरफा मोहब्बत पर ऐतबार तक नहीं किया। 1994 से आरम्भ हुई मेरी मोहब्बत में हम सिर्फ उनसे व्यक्तिगत रूप से सिर्फ और सिर्फ एक बार ही मुलाकात कर पाए (मेरा ब्लॉग पढ़े - मुलाकात (पहली और आखिरी)-एक सच्ची मोहब्बत की अनकही सच्ची कहानी, ब्लॉग दिनांक 21 अक्टूबर 2009) और उस मुलाकात में भी हम किसी प्रेमी प्रेमिका की तरह नहीं मिले थे। वो मुलाकात का अंजाम भी बस सहानुभूति से शुरू होकर सहानुभूति पर समाप्त हो गयी थी। हमारी मुलाकात एक बार और हुई थी मगर उसे व्यक्तिगत मुलाकात नहीं कहा जा सकता क्यूंकि हम दोनों किसी की शादी में मिले थे और वहां भी हमारी मुलाकात किसी अजनबी की तरह ही हुई थी।
इतना कुछ होने के बावजूद मैं आज तक किसी के एकतरफा प्यार में पागलों की तरह जीवन व्यतीत करता आ रहा हूँ। जो भी मुझे और मेरी एक तरफा मोहब्बत के बारे में जानता है वो मुझपर आज भी हँसता है। मगर मैं क्या करूँ मैंने तो प्यार किया है, मेरी नज़रों में येही प्यार है। उसे पाना या फिर उसके साथ जिन्दगी गुजरना मेरे नसीब में शायद नहीं था मगर उसके प्यार में जिन्दगी गुजरना तो मेरी नसीब में है। आज भी वो मेरी नज़रों के सामने रहती है, उसकी वो मुस्कराहट, उसकी वो नादानी, उसका वो भोलापन, उसकी चाल ढाल सबकुछ आज भी मेरी नज़रों के सामने ही है। 1994 से आज 2010 हो चूका है मगर मेरे लिए तो लगता है जैसे बीते कल की ही बात हो। उसके खवाब मैं अब नहीं देखता उसको पाने की लालसा अब मुझमें नहीं रही मगर उसका प्यार जो मेरे दिल में बरसों पहले था वो आज भी कायम ही है।
वो आज मेरे पास नहीं, मेरे साथ नहीं मगर मैं खुश हूँ कि वो अपनी जिन्दगी में खुश तो है। उसकी खुशियों में ही मेरी खुशियाँ शामिल हैं। मुझे सिर्फ इस बात का दुःख है कि वो मेरी बेपनाह मोहब्बत के प्रति लापरवाह रही, मेरी मोहब्बत को कभी उसने तरजीह नहीं दी, मेरे प्यार को उसने सिर्फ मजाक समझा। मैं नहीं जनता मैं कहाँ गलत था, मैं सिर्फ इतना जनता हूँ कि मैं उसके काबिल नहीं था, मैं अपने पैर पर खड़ा नहीं था, यही कारन था कि मैं खुद को उसकी नज़रों से बचाता फिरता रहा। कभी कभी मैंने कुछ गलतियाँ भी कि इसका ताउम्र अफ़सोस रहेगा।
शायद लोग मोहब्बत के माने अपने हिसाब से लगाते होंगे मगर मेरी नज़रों में येही मोहब्बत है। मैंने मोहब्बत की थी, की है और ताउम्र मेरी मोहब्बत मेरे दिल में धडकनों की तरह धड़कती रहेगी। वो कल भी मेरे पास मेरे साथ नहीं थी, वो आज भी मेरे पास मेरे साथ नहीं है और मुझे मालूम है वो आनेवाले कल को भी मेरे पास मेरे साथ नहीं रहेगी मगर इससे मुझे और मेरी मोहब्बत को क्या फर्क पड़ता है। मैंने उसे चाहा था, उसे अपने दिल के मंदिर में इश्वर का दर्जा दिया था आज भी मेरी चाहतों पर वो ही काबिज है और मेरे मन के मंदिर में आज भी इश्वर के रूप में वो ही समाई हुई है।
अपने इष्ट से मेरी यही दुआ है कि वो जहाँ भी रहे खुश रहे उसकी जिन्दगी खुशहाल रहे.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत   पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।   दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।   बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज

इश्वर, आत्मा और कुछ अनसुलझे रहस्य !

आत्मा, ना जन्म लेती है, ना ही मरती है, और ना ही उसे जलाकर नष्ट किया जा सकता है। ये वो सारी बातें हैं, जो हम गीता स्मरण के कारण जानते और मानतें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, हम लिखी बातोंपर जल्द ही यकीं कर लेतें हैं और फ़िर हमारे वंशज उसी को मानते चले जातें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, विश्वास करना हमारे रगों में है, किसी ने कुछ लिख दिया, किसी ने कुछ कह दिया बस हमने उसपर बिना कोई सवाल किए विश्वास कर लिया। हम रामायण से लेकर महाभारत तक तो सिर्फ़ मानकर विश्वास करते ही तो आ रहें हैं। हम शिव से लेकर रावण तक सिर्फ़ विश्वास के बल पर ही तो टिके हुए हैं। हमें हमारे माता-पिता ने बतलाया कि ब्रम्हा, बिष्णु, शिव, राम, हनुमान, गणेश, विश्वकर्मा, काली, दुर्गा आदि हमारे भाग्य विधाता हैं और हमने हिन्दुस्तानी का धर्म निभाते हुए ये मान लिए कि वे इश्वर हैं, हमारे भाग्य विधाता हैं। जब कोई विपत्ति कि बेला आई हमने उनका ध्यान करना आरम्भ कर दिया। बिना कोई सवाल किए हमने उनको इश्वर मानना आरम्भ कर दिया और फिर येही परम्परा बन स्थापित हो गई। ये ही दुहराव फिर हम भी अपने-अपने संतानों के साथ करेंगे, जो हमारे साथ किया गया। हमारे

जमशेदपुर में ट्रैफिक की समस्या

जमशेदपुर आज ट्रैफिक समस्याओं से बुरी तरस से ग्रसित है। मगर ना जाने क्यूंकिसी को इसकी परवाह नहीं है। चाहे बिस्टुपुर हो या स्टेशन एरिया या फिर साक्ची हो अथवा शहर के दुसरे इलाके हों सभी ट्रैफिक समस्यायों से बुरी तरह से ग्रसित हैं। बिष्टुपुर एरिया के मेनरोड को देखकर तो ऐसा लगता है की ये कोई मुख्यसड़क नही होकर कोई पार्किंग एरिया है। पता नहीं कैसे लोग खुले तौरपर अपने दो पहिये और चार पहिये वाहन को निर्भीक होकर मुख्य सड़क पर पार्क कर रोजमर्रा के कार्य करने में लीनहो जातें हैं। कोई देखने वाला नहीं की वाहन मुख्य सड़क पर पार्क कर दी गयी है। और तो और मुख्य सड़क पर पार्क कराकर पार्किंग टैक्स की वसूली भी की जाती है। आज की तिथि में बिष्टुपुर एरिया के मुख्य सड़क का आधा भाग तो वाहनों के ही पार्किंग से भरा परा रहता है। समूचा बिस्टुपुर एरिया देखने से ही किसी पार्किंग स्थल सा प्रतीत होता है। कोई देखने वाला नहीं, कोई एक्शन लेने वाला नही। कुछ इसी तरह के हालात साक्ची एरिया के भी हैं। जहाँ तहां खोमचे वाले, ठेले वाले, टेम्पू वाले अपने अपने मनमुताबिकजगह पर तैनात हैं। किसी को किसी की परवाह ही नहीं है। किसी को किसी का