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Narakas, Jamshedpur blogsite

मेरा मन

मुझको मेरी मोहब्बत का ऐ कैसा सिला मिला खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है तेरी मोहब्बत में फिर से बेकरार अब होने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है । 1   ।   ना जाने कहाँ तू चली गई मेरी मोहब्बत से होकर अंजान तेरी यादों में फिर से एकबार अब खोने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का दिल करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है । 2   ।   मेरे दिल को तोड़ने वाले ऐ संगदिल बेरहम तेरे करीब फिर से एकबार अब जाने का दिल करता है खामोशी की चादर ओढ़े अब सोने का जी करता है तुझसे लिपट-लिपट कर अब रोने का दिल करता है । 3   ।

क्यों

क्यों ख्वाबों की दुनियां में हमें तुम दूर ले जाती हो क्‍यों अनजान राहों में हमें तुम अपना हमसफर बनाती हो क्‍यों मोहब्बत के नगमें हमें तुम सुनाती हो क्‍यों पास अपने बुलाकर हमें तुम अपनेपन का एहसास दिलाती हो क्‍यों अपनी ज़ुल्फों की छांव में हमें तुम सुलाती हो क्‍यों झील सी निगाहों में हमें तुम वफा के मंजर दिखाती हो क्‍यों बांहों में बांहें डालकर हमें तुम साथ जीने-मरने की कसमें खिलाती हो क्‍यों ख्वाबों की दुनियॉं में हमें तुम दूर ले जाती हो ।।

तेरी आशिक़ी

बेरहम दुनिया के अनजान रास्‍ते तनहाई भरे सफर में खुद को तलाशते पूछता है दिल , अब कौन है अपना हकीकत के आईने में अब टूट गया सपना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।1।।   बेवफाओं की मंडी में वफा की कहानी तूझसे मोहब्‍बत करके क्‍यों की नादानी मोहब्‍बत की राहों में अब खुद को संभालते पूछता है दिल , अब कौन है अपना जख्‍म दिल के अब खुद ही है सहना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।2।।   तेरी आशिकी में बीताए लम्‍हें लगने लगे हैं अब मुझको बेमानी बेबस निगाहों में अब सूखे समन्‍दर सा पानी पूछता है दिल , अब कौन है अपना छूट गया है अब तेरी गलियों से भी गुजरना पूछता है दिल , अब कौन है अपना ।।3।।

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत   पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।   दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।   बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज

तेरी तस्वीर

बदलते मौसम की तरह  हम भी बदलने लगे हैं तेरी तस्वीर को देखकर  हम क्यों बहकने लगे हैं  बदलते मौसम की तरह  हम भी बदलने लगे हैं तुमने कमसें खाईं हैं हमसे दूर रहने की हमने भी कमसें खा ली हैं आजीवन तुम्‍हें नहीं भूलने की  बदलते मौसम की तरह  हम भी बदलने लगे हैं अपनी तकदीर को देखकर  हम क्यों तडपने लगे हैं बदलते मौसम की तरह हम भी बदलने लगे हैं झूठे कसमें वादों पर एतबार करने की सजा बेरहम संगदिल सनम से  बेइंतहा प्यार करने की खता बदलते मौसम की तरह हम भी बदलने लगे हैं तेरी तस्वीर को देखकर  हम क्यों बहकने लगे हैं 

कहाँ हो तुम

कहां हो दूर तुम  यहीं तो आस - पास हो मेरी सांसों में समाने वाले  मेरे जीवन की तुम तलाश हो कहां हो दूर तुम यहीं तो आस - पास हो जीवन के सफर में  परछाई बनकर मेरे साथ हो  मेरी निगाहों में बसने वाले मेरी खुशियों का तुम एहसास हो कहां हो दूर तुम  यहीं तो आस - पास हो मेरी बेइंतहा मोहब्बत से  जाने क्यों तुम नाराज हो मेरे दिल को तोड़ने वाले  मेरी धड़कनों की तुम आवाज हो कहां हो दूर तुम  यहीं तो आस - पास हो

तुम्हारा साथ

नहीं चाहिए अब साथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं नहीं चाहिए अब हाथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं नहीं चाहिए तेरी ज़ुल्फों की छाँव जिसमें सर छुपाकर खुलकर मैं रो सकूँ नहीं चाहिए तेरी मखमली गोद जिसपर सर रखकर मैं चैन से सो सकूँ नहीं चाहिए अब साथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं नहीं चाहिए अब हाथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं नहीं चाहिए तुझसे झूठे वादों के बोल जिसके सहारे जीवन मैं अपनी गुजार सकूँ नहीं चाहिए मुझे तेरे लिखे कोरे कागज के पन्ने जिसके पढ़कर मैं खुशियों का एहसास कर सकूँ नहीं चाहिए अब साथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं नहीं चाहिए अब हाथ तेरा तेरी यादें ही काफी हैं

हम तेरे काबिल नहीं

अरमानों के दिए दिल में जलते रहे मोहब्बत की राहों में हम तन्हा‍ चलते रहे तेरे ही हाथों बार-बार मेरे दिल के टुकडे होते रहे बेजार होकर भी मगर खुद से यही कहते फिर रहे हम तेरे काबिल नहीं ।। 1 ।। मोहब्बत के फसाने दिल में दफन होते रहे तेरी यादों के नगमें मुझ पर सितम करते रहे तेरी बेरहमी से हम टूट-टूटकर बिखरते रहे बेजार होकर भी मगर खुद से यही कहते फिर रहे हम तेरे काबिल नहीं ।। 2 ।। जख्मों को दिल से लगाए सिसक-सिसक कर रोते रहे अपने जीवन से दूर जाते हुए बेबस तूझे देखते रहे मेरी मोहब्बत को सरेआम तुम ही रूसवा करते रहे बेजार होकर भी मगर खुद से यही कहते फिर रहे हम तेरे काबिल नहीं ।। 3 ।।

तुम

सूख चुके झरने मेरी निगाहों से  अब तो बरबस बहने लगे हैं दिल मे दफन जज़्बात सारे फिर से मचलने लगे हैं तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं मेरी मोहब्बत से होकर अनजान जिनकी यादों की तपिश में हरपल हम जलते रहे हैं जीवन का सूनापन अरमानों से भरने लगा हैं बेताब निगाहों में अब तो ख्वाब भी सजने लगा है तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं मेरी हालातों से बनकर नादान जिनकी निगाहों के दर्पण में हम जिन्दगी का अख्श देखते हैं मेरी हसरतों का कभी किसी को फिक्र नहीं रहा मेरी सच्ची मोहब्बत का कहीं भी जिक्र नहीं रहा हम तलाशते रहे हर लम्हा तुमको जीवन के सफर में तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं मेरी पागलपन से होकर परेशान जिनको हमसफर मानकर तन्हा ही हम चलते रहे हैं

अनाथ

माँ है अपनी बाप भी है अपना फिर भी अनाथ हूँ अपनों के बीच रहकर भी मैं खुद से ही निराश हूँ माँ है अपनी बाप भी है अपना फिर भी अनाथ हूँ बीवी है अपनी बच्चा भी है अपना फिर भी अनाथ हूँ दिन के उजालों में भी मैं अमावस की रात हूँ माँ है अपनी बाप भी है अपना फिर भी अनाथ हूँ तेरी यादें हैं अपनी मेरा प्यार है अपना फिर भी अनाथ हूँ कल और आज के बीच जैसे बीता हुआ कोई बात हूँ माँ है अपनी बाप भी है अपना फिर भी अनाथ हूँ

Blood Donation : Common Questions

               

Diploma in Motivator

आजीवन

तेरी यादों को दिल के मंदिर में सजोने का इरादा जिंदा है तूझको बांहों में भरकर सीने से लगाने का इरादा जिंदा है तेरी गोद में सर रखकर जुल्फों तले खोने का इरादा जिंदा है तेरी कातिल मुस्कुराहट पर फिदा होने का इरादा जिंदा है ... तेरी निगाहों की बेकरारी को बरकरार रखने का इरादा जिंदा है तू गैर की हो गयी तो क्या हुआ आज भी पुनर्जन्म लेकर तेरी मोहब्बत की तपिश में एक बार फिर से जलने का इरादा जिंदा है

इंतजार

दिल पूछता है खुद से आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों एक संगदिल बेरहम से उसके इंतजार में दिल अक्सर तड़पता रहता है हर शख्स में दिल उसकी ही तस्वीर ढूंढता फिरता है मेरे अरमानों का मगर उसपर कुछ भी असर नहीं दिल पूछता है खुद से आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों एक संगदिल बेरहम से बेजुबान दिल अक्सर ही कराहता रहता है अपने जख्मी दिल को खुद ही संभालता फिरता है मेरे जज़्बातों का मगर उसे कुछ भी कद्र नहीं दिल पूछता है खुद से आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों एक संगदिल बेरहम से मेरे दिल के मंदिर में नित नए फूल खिलते रहते हैं हकीकत मे न सही ख्वाबों में हम मिलते रहते हैं मेरी हसरतों का मगर उसे कोई फिक्र नहीं दिल पूछता है खुद से आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों एक संगदिल बेरहम से

एतबार

मेरी सच्ची मोहब्बत पर तुझको क्यों एतबार नहीं मेरे कसमें वादों पर तुझको क्यों एतबार नहीं मेरी सच्ची मोहब्बत पर तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 1 ।। हम ढूंढते फिरते हैं खुशियाँ तेरी ज़ुल्फों की छांव में मेरे अरमानों का घरौंदा तोडने वाले तुझसे क्यों मैं नाराज नहीं मेरी सच्ची मोहब्बत पर तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 2 ।। नादान सी चाहत में तलाश रहा हूँ अनाम रिश्ते जीवन की इस आपाधापी में तू क्यों मेरी हमराज नहीं मेरी सच्ची मोहब्बत पर तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 3 ।। तेरी झील सी निगाहों में बिखरे पडे हैं ख़्वाब सारे मेरी सांसों में समानेवाली तुझको क्यों मुझसे प्यार नहीं मेरी सच्ची मोहब्बत पर तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 4 ।।

तेरा साथ

  तड़पता हूँ, सिसकता हूँ तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ तूझसे नाराज होकर भी तेरी यादों को ही साथ लिए चलता हूँ तड़पता हूँ, सिसकता हूँ तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ तेरी नादानियों से रूसवा होकर भी तेरे दर पर ही आकर ठहरता हूँ तड़पता हूँ, सिसकता हूँ तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ तेरी गलतफहमियों से परेशान होकर भी तेरे आगोश में ही सर अपना छुपाता हूँ तड़पता हूँ, सिसकता हूँ तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ