लगभग 14 वर्षों के वनवास के बाद एक मां कमला देवी की कोख ने पहले संतान के रूप में अपने कुल-दीपक को जन्म दिया। पति श्री ओम प्रकाश राय सीआरपीएफ में कार्यरत थे तथा दो भाईयों में छोटे थे। पत्नी कम पढी लिखी थी तथा उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के रेवतीपुर गांव में रहती थी। बचपन से अपने पुत्र को उच्च शिक्षा देने तथा अच्छा मुकाम हासिल करने की ललक में उस पिता ने अपने कुल-दीपक जिसका नाम दीपक ही रखा था, उसे लगभग 4 वर्ष की ही अबोध उम्र में अपने बडे भाई श्री अरुण कुमार राय, जो कि जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील की नौकरी कर रहे थे, उनके हाथों सुपुर्द कर दिया। उनके इस फैसले के पीछे काफी बडा बलिदान छिपा हुआ था। अपने कुल के चिराग को बेहतर शिक्षा देकर उसे अपने पैरों पर खडा करके अपने कुल का नाम रौशन करने की ललक ही थी जिसने मां की ममता और पिता के दुलार से वंचित करते हुए उसे यशोदा रूपी मां उर्मिला देवी की गोद में बाल्यावस्था में ही सौंप दिया। उस समय उर्मिला की अपनी तीन बेटियां ही थी। पुत्र के रूप में दीपक को पाकर वह धन्य धान्य से परिपूर्ण हो गई थी।
इधर एक देवकी रूपी मां कमला देवी पुत्र के विरह में इस इंतजार में अपना जीवन काट रही थी कि एक दिन उसका बेटा बडा आदमी बनकर वापस आएगा। उसके इंतजार में उसने अपने आंचल को ममतामयी स्नेह से समेटकर रखा था जिसे एक दिन वह अपने दीपक पर उधेड देने के इंतजार में थी वहीं दूसरी ओर यशोदा रूपी उर्मिला देवी एक पुत्र को पाकर गदगद थी, उसने अपने लाड प्यार में कोई कमीं कभी नहीं की। दीपक को कभी अपने माता-पिता की कमी नहीं खली। हालांकि कालांतर में उर्मिला की कुल पांच बेटियां और एक पुत्र भी हुए तथा कमला देवी को भी दो बेटियां हुईं मगर इसके बावजूद दीपक के प्रति उनका लगाव सबसे ज्यादा ही रहा। यही कारण था कि यशोदा की बांहों में कब दीपक बाल्यपन से यौवन की दहलीज पर खडा हो गया इसका किसी को आभास ही नहीं हुआ। इण्टर की पढाई सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद उसका एडमिशन नागपुर के प्रियदर्शनी कॉलेज में हो गया और देखते ही देखते वह आई.टी. इंजीनियर बन चुका था तथा कुछ ही दिनों की भागदौड के बाद उसे पुणे के एक मल्टीनेशनल कम्पनी में बतौर साफटवेयर इंजीनियर की नौकरी भी मिल गई। इसी बीच श्री अरुण कुमार राय तथा श्री ओम प्रकाश राय दोनों ही अपने-अपने संस्थानों से सेवानिवृत हो चुके थे।
अब सबकी आंखों में एक सुनहरा ख्वाब जग चुका था। बेटा अंतत: इंजीनियर बन चका था। कई सपनों को अब सच होना था। रंग बिरंगे ख्वाबों की दुनिया सज चुकी थी। दोनों माताएं ख्वाबों को अपने आंचल में समेटे कल्पनाशील दुनिया की सैर करने लगी थी तथा दोनों पिताओं का सीना फक्र से चौडा हो चुका था। तभी अचानक 18 नवम्बर, 2011 को दोपहर 2 बजे दीपक के दोस्तों ने यह जानकारी दी की दीपक उनलोगों के साथ पूणे से गोवा घूमने आया था और गोवा के बाघा समन्दर तट पर नहाने के दौरान डूबकर उसकी मौत हो गई। दीपक अब इस दुनिया में नहीं रहा।
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मुक्ति-बंधन
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ओम के प्रकाश से
कमल के रज से
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रत्न इस घर में ।।1।।
ममतामयी आंचल में
किलकोरी लेता बचपन
आज भी याद है मुझे
सर्द भरा वो तेरा बचपन
कुल-दीपक का जन्म हुआ था
कई आस लिए इस घर में
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।2।।
कलेजे पर पत्थर रखकर
हमने छोडा था तुम्हारा दामन
तेरे ही उज्ज्वल भविष्य के लिए
बदल दिया था मैंने अपना आंचल
तूझको सौंप दिया था
खुद को कैद करके इस घर में
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।3।।
तूझसे दूर रहकर भी मैंने
तेरा ही हरपल ध्यान किया
यशोदा की बांहों में भी मुझको
अपना ही घनश्याम दिखा
जीवन मैंने गुजार दिया था
तेरी यादों को समेटे इस घर में
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।4।।
हमारी त्याग उनकी परवरिश से
तेरी मेहनत सबकी किस्मत से
बदल कर रख दी तुमने
इस कुल की तकदीर को
सफलता तेरी अपने साथ लाया था
कई खुशियां इस घर में
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।5।।
पूरी हो चुकी थी उसकी
उज्ज्वल भविष्य की तलाश
अब टिकी थी उसपर
छोटों की आस-बडों की प्यास
बस अब साकार होना था
कई ख्वाबों को इस घर में
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।6।।
दो कलेजे पत्थर बने
दो हृदय कुंठित हुए
राम की तरह आकर तू
सीता की तरह कहां चला गया
हे मेरे कुल के दीपक
क्यों मुक्ति-बंधन करके तू चला गया
वनवास बीताकर आया था
एक अनमोल रतन इस घर में ।।7।।
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देवकी रूपी मां कमला देवी के हृदय से निकलती अपने पुत्र-वियोग की व्यथा
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