हम अक्सर ही दूसरों को इंसानियत का पाठ पठाया करते हैं। ऐसे मौक कम ही होते हैं जब हम खुद ही इस पाठ को अपने उपर अमल में लाते हैं। इंसानियत अक्सर की कई मौकों पर तार-तार होती हैा कभी जानबूझकर कभी बिना जाने बूझे।
आज का दिन बहुत ही भयावह रहा। सुबह 06.30 बजे पत्नी ने आवाज देकर उठाया और बताया कि बेटे के स्कूल की तैयारी नहीं हो पायी है इसलिए ऑटो वाले को मना कर देती हॅूं आप खुद ही बेटे को स्कूल छोड दीजिएगा। मैं तैयार हो गया। कारण साफ था ऑटो वाला कुछ अधिक समय पहले ही घर से मेरे बेटे को ले जाता है क्योंकि उसे और भी बच्चों को उनके घरों से लेना पडता है जबकि मैं सीधे मात्र 10 मिनट में अपने घर से स्कूल पहुंच जाता हॅूं। अक्सर ही ऐसा वाकया होता है जिसके लिए मैं हमेशा ही मानसिक रूप से तैयार रहता हॅू।
मेरी पत्नी मेरे पुत्र को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी तभी अचानक ही मेरे घर के बाहर कुछ तेज आवाज सुनाई दी। मैं बाहर निकला तो देखा मेरे पडोस के शर्मा जी मुझे ही पुकार रहे थे। बाहर निकलने पर उन्होंने मुझे सूचना दी कि उनके पडोस के दास जी की दुर्घटना रात्रि समय कार्यालय से आवास आने के समय बीच रास्ते में हो गयी है और रात के 12 बजे उनको एम जी एम अस्पताल में दाखिल कराया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि कॉलोनी के ही लोग रात के लगभग 12.30 बजे दास जी के घर आए और उनकी पत्नी को यह जानकारी दी कि उनके पति का घर वापसी के क्रम में दुर्घटना हो गया है और पुलिस द्वारा उन्हें एम जी एम अस्पताल में एडमिट कराया गया है। चिंता की कोई बात नहीं है। सुबह होने पर स्थिति का जायजा लिया जाएगा। शर्मा जी ने आगे बताया कि उनकी वर्तमान स्थिति कैसी है यह उन्हें नहीं मालूम। इतना सुनना था कि मैंने उनसे कहा ठीक है मैं अपने बेटे को उसके स्कूल छोडकर वापस आता हॅूं फिर हमलोग एम जी एम अस्पताल जाएंगे।
जमशेदपुर स्थित एम जी एम अस्पताल एक मात्र सरकारी अस्पताल है। यहां की चिकित्सा व्यवस्था की स्थिति काफी जर्जर रहती है तथा अन्य अस्पतालों की तुलना में यहां की व्यवस्था काफी कमतर मानी जाती है।
आनन-फानन में मैं तैयार होकर अपने बेटे को स्कूल छोड आया और फिर जब वापस अपने कॉलोनी में आया तो देखा कि कॉलोनी के गेट के सामने ही मेरे पडोस के राय जी के बडे बेटे पंकज अपने कार के साथ एम जी एम अस्पताल जाने के लिए तैयार खडा था। उसने जिद की कि मैं और शर्मा जी उनके कार से ही एम जी एम अस्पताल जाएं। मौसम की बदमिजाजी देखकर हम दोनों ही उसके कार में बैठ गए और फिर कुछ ही देर बाद हम एम जी एम अस्पताल के अंदर थे।
वहां पहुंचने पर मैंने देखा ही हमसे पूर्व ही वहां हमारे ही कॉलोनी के दो सज्जन एस के भटटाचार्जी जी तथा बी के राउत्रे वहां मौजूद थे। हमें देखकर बहुत ही अजीब स्वर में उन्होंने कहा कि आइए देख लिजिए क्या हाल है यहां। हम लोग अंदर गए। ड्रेसिंग रूम के अंदर गए जहां दास जी को रखा गया था। अंदर दाखिल होते ही मेरी आंखें फटी की फटी रह गयी। ड्रेसिंग कक्ष के एक किनारे बडे ही विचित्र तरीके से नीचे फर्श पर एक शरीर खून से लथपथ फेंका हुआ था। आस पास उनके सर के काटे हुए बाल बेतरीब ढंग से फेंके हुए थे, खून हर तरफ पसरा पडा था, काफी गंदा, बदबू भरा उपर से बिना किसी चादर के फर्श के पर एक बेजान लाश की तरह शरीर फेंका हुआ प्रतीत हो रहा था। मैं काफी शंका कुशंका से ग्रसित होकर उस के समीप गया, मेरी नजर सिर्फ और सिर्फ उसके छाती पर थी। कुछ ही सेकेंड हुए होंगे कि मेरी आंखों में एक अजीब रौशनी घिर आई और मैं हर्षित होकर पीछे मुडा और कहने लगा दास जी तो अभी जिंदा हैं भाई। सबों ने एक स्वर में कहा अरे वाह। मगर इसके तुरंत बाद मैं गुस्से से आग बबूला होकर डॉक्टर के पास गया और उनसे कहने लगा ''क्या मजाक है जिंदा इंसान को भी भला ऐसे रखा जाता है क्या'' मेरे इतना कहने भर से वह झन्नाते हुए हमलोगों से कहने लगी ''क्या कह रहे हैं आज आपका पेशेंट रात के 12 बजे से यहां पडा है क्या आपको यह जानकारी नहीं दी गयी थी क्या आपका पेशेंट सीरीयश है इसके बावजूद आपलोग 7 घंटे के बाद यहां पहुंच रहे हैं, अब आपलोगों को होश आ रहा है, रात में तीन-तीन बार यह अपने बेड के उपर से नीचे गिर पडा है हमलोग आखिर क्या करते अंत में नीचे ही लिटा दिया है'' देखते हैं हम लोग और क्या कर सकते हैं।
इतना सुनना था कि मुझे अपनी गलती महसूस हुई। मगर मैं उस डॉक्टर को भला क्या बताया कि आखिर रात के 12.30 बजे जो सूचना दास जी के घर दी गयी उस सूचना में कहीं भी किसी प्रकार के इस तरह के भयावह दुर्घटना की कोई बात नहीं कही गयी थी। बल्कि स्पष्ट तौर पर उनकी पत्नी को यह जानकारी दी गयी थी कि उनके पति का दुर्घटना हुआ है और वे फिलहाल एमजीएम में एडमिट करा दिए गए है तथा चिंता की कोई बात नहीं है आप निश्चितंत रहें।
हमारे कार्यालय से जमशेदपुर के जाने माने टी एम एच, टिनप्लेट अस्पताल तथा टाटा मोटर्स अस्पताल के साथ चिकित्सा को लेकर टाइअप किया गया है। ऑथोराइजेशन लेटर के बेस पर हम अपना इलाज वहां करवा सकते हैं। आपातकालीन समय में तो किसी प्रकार के ऑथोराइजेशन लेटर की भी आवश्यकता नहीं पडती। यह जानकारी रहने के बावजूद रात भर हमारे कार्यालय के एक स्टॉफ को एम जी एम जैसे जर्जर चिकित्सा व्यवस्था वाले सरकारी अस्पताल में भगवान भ्रोसे छोड दिया जाना मुझे किसी भी प्रकार से समझ नहीं आ रहा था। मैं यह सोचने पर विवश था कि आखिर मैं उसी ऑफिस में काम कर रहा हॅूं जहां किसी भी कार्मिक की मौत पर बाकी सभी कार्मिक स्वैच्छा से अपने एक दिन का वेतन दान स्वरूप म़़तक की विधवा को देते हैं उसी ऑफिस के कार्मिक द्वारा यह जानते हुए भी कि हमारा एक स्टॉफ एम जी एम में रात 11.45 बजे से पडा है इसके बावजूद उसे न तो टी एम एच अथवा दूसरी किसी अच्छे अस्पताल में ले जाने का प्रयास किया जाता है और न ही सही वस्तुस्थिति की जानकारी उनकी पत्नी की रात में दी जाती है। मैं यह सोच नहीं पा रहा कि अंतत क्या कारण है कि मर जाने के बाद हम रुपए पैसे दान करने की बात करते हैं और जीवित आदमी को मौत के मुंह में जाने से बचाने का प्रयास भर भी नहीं किया जाता है। आखिर हम किस दिशा की ओर उन्मुख हो रहे हैं। क्या यही मानवता है ? क्या हमारी नैतिकता इतनी खोखली है, क्या हम दौडती भागती जिंदगी में अपने कर्तव्यों मानवहितों के प्रति इतनी लापरवाही करने लगे हैं ?
अंतत: शर्मा जी, राउत्रे जी, एस के भटटाचार्या तथा पंकज की सहायता से लिखित कार्रवाई करके दास जी को सुबह 8.30 के करीब टी एम एच लाया गया जहां उनका उपचार आरंभ हुआ है। उनके लगभग पूरे शरीर का एक्सरे कर लिया गया है। सीटी स्कैन करके डॉक्टर यह देखना चाह रहे हैं कि उनके शरीर के अंदरूनी भागों में चौट का असर कैसा है। सीटी स्कैन भी किया जा चुका है।
आज की स्थिति कल से कुछ बेहतर है। जैसा कि उनके सहकर्मी श्याम सुन्दर जी ने आज बताया कि दास जी बोल रहे हैं तथा स्थिति कुछ ठीक लग रही है।
इतना कुछ होने के बाद फिर वही सवाल आखिर हम कहां जा रहे हैं मौत के बाद दान करने की परम्परा की शुरूआत तो अच्छी है मगर जीते जी हम आखिर क्यों एक दूसरे को संभालने का प्रयास भी नहीं कर पा रहे हैं।
दिनांक 25.09.2011 को सुबह 10 बजे के करीब मैं टी एम एच गया था और दास जी से मिला पता चला कि उनके सर में खून जम गया है तथा सर के अंदर हवा भी भरा हुआ है।
1 टिप्पणी:
nice blog friend thanks for share Blogger trickscj
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