सोमवार, 31 जनवरी 2011

तुम्‍हारा वो घर

आज भी वहां से गुजरते हुए तुम्‍हारे मकां की तरफ देखने की हिम्‍मत नहीं होती, कौन कहता है वक्‍त के साथ सबकुछ बदल जाता है, तुम्‍हारा भी शायद ऐसा ही मानना था, लेकिन कमबख्‍त वक्‍त आज तक मुझे बदल ही नहीं पाया। मैं जहां था 1994 में आज भी लगता है जैसे वहां ही खडा हूं। मेरे आस पास के सारे नजारे पूरी तरह से बदल गए मगर नहीं बदला तो मैं और मेरी मानसिकता।
मुझे अच्‍छे से याद है 1994 में जबकि मैंने मोहब्‍बत की राहों में चलना आरंभ ही किया था, मुझे तुम्‍हारी ओर तो छोडो तुम्‍हारे मकां तक देखने की हिम्‍मत नहीं होती थी, चोरी छिपके नजरे बचाके देखने की जुर्रत करता था वो भी काफी हिम्‍मत करके और ऐ आज का वक्‍त है जबकि मेरी मोहब्‍बत के निशां तक बाकी नहीं रहे मगर इसके बावजूद आज भी मुझमें हिम्‍मत नहीं कि नजरें उठाकर तुम्‍हारे मकां की ओर देख सकूं। आज भी तुम्‍हारे मकां की ओर चोरी छिपके ही नजरे फिरती हैं वो भी काफी हिम्‍मत करने के बाद।
कौन कहता है वक्‍त के साथ सबकुछ बदल जाता है.............।

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