गुरुवार, 19 जून 2014

मेरा मन

मुझको मेरी मोहब्बत का
ऐ कैसा सिला मिला
खामोशी की चादर ओढ़े
अब सोने का जी करता है
तुझसे लिपट-लिपट कर
अब रोने का दिल करता है
तेरी मोहब्बत में फिर से बेकरार
अब होने का दिल करता है
खामोशी की चादर ओढ़े
अब सोने का जी करता है । 1 
 
ना जाने कहाँ तू चली गई
मेरी मोहब्बत से होकर अंजान
तेरी यादों में फिर से एकबार
अब खोने का दिल करता है
खामोशी की चादर ओढ़े
अब सोने का दिल करता है
तुझसे लिपट-लिपट कर
अब रोने का दिल करता है । 2 
 
मेरे दिल को तोड़ने वाले
ऐ संगदिल बेरहम
तेरे करीब फिर से एकबार
अब जाने का दिल करता है
खामोशी की चादर ओढ़े
अब सोने का जी करता है
तुझसे लिपट-लिपट कर
अब रोने का दिल करता है । 3 

मंगलवार, 17 जून 2014

क्यों

क्यों ख्वाबों की दुनियां में
हमें तुम दूर ले जाती हो
क्‍यों अनजान राहों में
हमें तुम अपना हमसफर बनाती हो
क्‍यों मोहब्बत के नगमें
हमें तुम सुनाती हो
क्‍यों पास अपने बुलाकर
हमें तुम अपनेपन का एहसास दिलाती हो
क्‍यों अपनी ज़ुल्फों की छांव में
हमें तुम सुलाती हो
क्‍यों झील सी निगाहों में
हमें तुम वफा के मंजर दिखाती हो
क्‍यों बांहों में बांहें डालकर
हमें तुम साथ जीने-मरने की कसमें खिलाती हो
क्‍यों ख्वाबों की दुनियॉं में
हमें तुम दूर ले जाती हो ।।

सोमवार, 16 जून 2014

तेरी आशिक़ी

बेरहम दुनिया के अनजान रास्‍ते
तनहाई भरे सफर में खुद को तलाशते
पूछता है दिल, अब कौन है अपना
हकीकत के आईने में अब टूट गया सपना
पूछता है दिल, अब कौन है अपना ।।1।।
 
बेवफाओं की मंडी में वफा की कहानी
तूझसे मोहब्‍बत करके क्‍यों की नादानी
मोहब्‍बत की राहों में अब
खुद को संभालते
पूछता है दिल, अब कौन है अपना
जख्‍म दिल के अब खुद ही है सहना
पूछता है दिल, अब कौन है अपना ।।2।।
 
तेरी आशिकी में बीताए लम्‍हें
लगने लगे हैं अब मुझको बेमानी
बेबस निगाहों में अब
सूखे समन्‍दर सा पानी
पूछता है दिल, अब कौन है अपना
छूट गया है अब तेरी गलियों से भी गुजरना
पूछता है दिल, अब कौन है अपना ।।3।।

गुरुवार, 5 जून 2014

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत
 
पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।
 
दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।
 
बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज का कोई रिलेटिव उसके आस पास नहीं था। सिर्फ नर्स और वार्ड व्वा य इधर उधर दौड रहे थे तभी मैंने देखा कि एक नर्स ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आयी और उससे मास्क निकालकर उस बूढे मरीज को लगाया मगर बूढा मरीज जोर जोर से कराहता हुआ तेज आवाजे निकाल रहा था, और हर तेज आवाज के बाद ऐसा लग रहा था कि अब उसकी सांस इस कराहने के बाद रूकने वाली है। नर्स से हालात नहीं संभल रहे थे। वह दौडकर केबिन की ओर भागी तभी देखा वार्ड के केबिन की ओर से एक रंगीन शर्ट पहने एक आदमी उस बेड की ओर आ रहा था। गौर से देखा तो उसके कंधे पर डॉक्टरों द्वारा रखने वाला यंत्र पाया तब मुझे समझ में आया कि यह तो कोई डॉक्टेर है फिर लेटे हुए ही मैंने अपना सर बेड नं. 14 की तरफ कर दिया।
 
वह डॉक्टर बेड नं. 14 के मरीज के बेहद ही करीब पहुंचा, उस वक्त भी मरीज जोर जोर से सांस लेता हुआ कराहता हुआ काफी तेज आवाज निकाल रहा था। स्थिति पूर्व की तरह ही बनी हुई थी। डॉक्टर वहां पहुंचा और मरीज के मास्क पर अपना हाथ रखा और झल्लाते हुए कहने लगा ' ‍मुंह बंद कर ' मगर मरीज जो कि बिलकुल ही असामान्य हालत में था, उस वक्त उसे कुछ भी आवाज शायद नहीं समझ में आ रही होगी इसलिए वह पूर्व की तरह ही जोर जोर से कराहते हुए आवाजें कर रहा था, इस पर वह डॉक्टर फिर से लगभग चिल्लाते हुए तीन बार 'मुंह बंद कर-मुंह बंद कर-मुंह बंद कर' कह गया मगर जब इस पर भी उस बूढे मरीज पर कोई प्रति्क्रिया नहीं हुर्इ और वह पूर्व की तरह जोर जोर से सांसे लेता हुआ कराहता हुआ चिल्लाता ही रहा तो अंत में वह डॉक्टर यह कहते हुए कि 'मर साले' आने हाथ में लिए कपडे के किसी चीज को उसके बेड पर फेंक दिया और वार्ड 3ए में नर्स के केबिन की ओर तेजी से बढ् गया।
मेरा चेहरा जो कि बेड नं. 14 की तरफ ही था और सारी बातें मेरे सामने किसी भयावह सपने की तरह अचानक ही घटित हो चुकी थी। मुझे समझ में ही नहीं आया कि मैं आखिर क्या करूँ। मैं पिछले लगभग 24 घंटों से अपने बेड पर लगभग बेसुध सा पडा था इतना कुछ देखने के बाद न जाने मुझमें कहां से शक्ति आई और मैं अचानक ही उठ खडा हुआ और धीरे धीरे एक एक बेड पकड पकड पर वार्ड 3 ए के नर्स केबिन तक पहुंचा जहां वह डॉक्टर जाकर बैठ गया था तथा कुछ लिख रहा था। वहां पहुंचकर मैंने उससे कहा 'डॉक्टर आपने क्या किया है, एक पेशेंट के साथ क्या ऐसी हरकत की जाती है, डाक्टर तो भगवान का रूप होता है मगर आपने उस मरीज के साथ कैसा बर्ताव किया है, चलिए उस मरीज से जाकर अभी माफी मांगिए' मेरा इतना कहना था कि वह डॉक्टर आग बबूला हो गया और उसने मुझसे झल्‍लाते हुए कहा 'कौन हो तुम, उस मरीज कोई रिलेटीव हो क्या' जब मैंने उससे कहा कि 'नहीं मैं कोई रिलेटिव नहीं हॅूं और क्या गलत काम को रोकने के लिए बोलने के लिए क्‍या किसी का रिलेटिव होना जरूरी है' इस पर उस डॉक्टर ने मुझे धमकाते हुए लहजे में कहा 'चुपचाप जाकर अपने बेड पर बैठो नहीं तो अभी सिक्यूरिटी बुला लूंगा' इतना सुनने के बाद मैंने कहा कि 'डॉक्टर आप अपना नाम बताइए, आपका कमप्‍लेन करना है' इस पर उस डॉक्टर ने कहा 'जाओ जहां जाना है जिसे कमप्‍लेन करना है करो, मैं देख लूंगा' इसके बाद मैंने वहां खडे सभी नर्सों से उस डाक्टर का नाम जानना चाहा मगर किसी भी नर्स ने उस समय उस डॉक्टर का नाम तक मुझे नहीं बताया और इतना ही नहीं जब मैंने टीएमएच में डॉक्टर का कमप्‍लेन करने के लिए किसी मोबाइल नम्बर आदि की मांग की तो वह भी मुझे नहीं दिया गया।
इसके बाद मैं किसी तरह धीरे धीरे करके टीएमएच के मुख्य द्वार स्थित इमरजेंसी कक्ष गया और वहां से आरएमओ का मोबाइल नम्बर प्राप्त किया तथा उस मोबाइल नम्बर पर फोन करने पर मुझे टीएमएच के कस्टमर केयर यूनिट के किसी दिवाकर जी का मोबाइल नम्बर दिया गया तथा अपनी शिकायत उनसे करने की बात कही गयी।
मैंने तत्काल ही टीएमएच के कस्टमर केयर यूनिट के दिए गए मोबाइल नम्बर पर अपनी शिकायत दर्ज करायी और सारे वाकये की जानकारी दी ।
कुछ देर बाद ही मुझे यह जानकारी प्राप्त हो चुकी थी कि एक बूढे मरीज से जानवरों सा सलूक करने वाले सख्स का नाम शफी शादाब है जो लोयोला स्कूल का छात्र रहा चुका है तथा जिसने अपनी मेडिकल की पढाई श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज व हास्पीटल मुजफफरपुर से पूरी की तथा दो वर्षों तक वह टाटा मोटर्स अस्पताल में अपनी सेवा दे चुका है तथा 1 जून 2013 से वह टीएमएच में बतौर चिकित्सक कार्यरकत है।
टाटा मेन हास्पीटल, जमशेदपुर जैसे नामी अस्परताल में कार्यरत शफी शदाब जैसे डॉक्टर की यह करतूत एक डॉक्टर के पेशे को न सिर्फ कलंकित करती है बल्कि टीएमएच के मान सम्मान और प्रतिष्ठा में भी एक काला धब्बा लगाती है । ऐसे ही गिने चुने कुछ चंद डॉक्टरों की करतूतों से जमशेदपुर स्थित टीएमएच की प्रतिष्ठा दिन प्रतिदिन धूमिल होती जा रही है।
अगले दिन 2 जून 2014 को मैंने टीएमएच के वार्ड 3ए की शिकायत पंजिका में उपरोक्त् घटना की विस्तृत जानकारी दी तथा उस डॉक्टर पर आवश्यरक कार्रवाई करने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही टीएमएच के कस्टमर केयर यूनिट के दिवाकर जी द्वारा 2 जून 2014 को सुबह के लगभग 10 बजे घटना के संबंध में जानकारी ली गयी तथा मेरे शिकायत के आलोक में आवश्यक कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया गया।
सभी से मेरी गुजारिश है कि कृपया इस घटित सच्ची घटना को अधिक से अधिक लोग शेयर करके इस घटना की तथा टाटा मेन हास्‍पीटल के डॉक्‍टर शफी शादाब की पुरजोर तरीके से निंदा करें तथा टीएमएच जमशेदपुर प्रबंधन उस डॉक्टर के खिलाफ सख्त से सख्‍त कार्रवाई करें ।

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

तेरी तस्वीर


बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

तेरी तस्वीर को देखकर 

हम क्यों बहकने लगे हैं 

बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

तुमने कमसें खाईं हैं

हमसे दूर रहने की

हमने भी कमसें खा ली हैं

आजीवन तुम्‍हें नहीं भूलने की 

बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

अपनी तकदीर को देखकर 

हम क्यों तडपने लगे हैं

बदलते मौसम की तरह

हम भी बदलने लगे हैं

झूठे कसमें वादों पर

एतबार करने की सजा

बेरहम संगदिल सनम से 

बेइंतहा प्यार करने की खता

बदलते मौसम की तरह

हम भी बदलने लगे हैं

तेरी तस्वीर को देखकर 

हम क्यों बहकने लगे हैं 

कहाँ हो तुम


कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो

मेरी सांसों में समाने वाले 

मेरे जीवन की तुम तलाश हो

कहां हो दूर तुम

यहीं तो आस - पास हो


जीवन के सफर में 

परछाई बनकर मेरे साथ हो 

मेरी निगाहों में बसने वाले

मेरी खुशियों का तुम एहसास हो

कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो


मेरी बेइंतहा मोहब्बत से 

जाने क्यों तुम नाराज हो

मेरे दिल को तोड़ने वाले 

मेरी धड़कनों की तुम आवाज हो

कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो

तुम्हारा साथ


नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए तेरी ज़ुल्फों की छाँव

जिसमें सर छुपाकर खुलकर मैं रो सकूँ

नहीं चाहिए तेरी मखमली गोद

जिसपर सर रखकर मैं चैन से सो सकूँ

नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए तुझसे झूठे वादों के बोल

जिसके सहारे जीवन मैं अपनी गुजार सकूँ

नहीं चाहिए मुझे तेरे लिखे कोरे कागज के पन्ने

जिसके पढ़कर मैं खुशियों का एहसास कर सकूँ

नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

हम तेरे काबिल नहीं


अरमानों के दिए

दिल में जलते रहे

मोहब्बत की राहों में

हम तन्हा‍ चलते रहे

तेरे ही हाथों बार-बार

मेरे दिल के टुकडे होते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 1 ।।


मोहब्बत के फसाने

दिल में दफन होते रहे

तेरी यादों के नगमें

मुझ पर सितम करते रहे

तेरी बेरहमी से हम

टूट-टूटकर बिखरते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 2 ।।


जख्मों को दिल से लगाए

सिसक-सिसक कर रोते रहे

अपने जीवन से दूर जाते हुए

बेबस तूझे देखते रहे

मेरी मोहब्बत को सरेआम

तुम ही रूसवा करते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 3 ।।

रविवार, 13 अप्रैल 2014

तुम


सूख चुके झरने मेरी निगाहों से 

अब तो बरबस बहने लगे हैं

दिल मे दफन जज़्बात सारे

फिर से मचलने लगे हैं

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी मोहब्बत से होकर अनजान

जिनकी यादों की तपिश में

हरपल हम जलते रहे हैं



जीवन का सूनापन

अरमानों से भरने लगा हैं

बेताब निगाहों में अब तो

ख्वाब भी सजने लगा है

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी हालातों से बनकर नादान

जिनकी निगाहों के दर्पण में

हम जिन्दगी का अख्श देखते हैं



मेरी हसरतों का कभी

किसी को फिक्र नहीं रहा

मेरी सच्ची मोहब्बत का

कहीं भी जिक्र नहीं रहा

हम तलाशते रहे हर लम्हा

तुमको जीवन के सफर में

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी पागलपन से होकर परेशान

जिनको हमसफर मानकर

तन्हा ही हम चलते रहे हैं

अनाथ


माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

अपनों के बीच रहकर भी

मैं खुद से ही निराश हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ



बीवी है अपनी

बच्चा भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

दिन के उजालों में भी

मैं अमावस की रात हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ



तेरी यादें हैं अपनी

मेरा प्यार है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

कल और आज के बीच

जैसे बीता हुआ कोई बात हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

Blood Donation : Common Questions

 
 
 
 
 
 
 
 

मंगलवार, 25 मार्च 2014

आजीवन


तेरी यादों को दिल के मंदिर में

सजोने का इरादा जिंदा है

तूझको बांहों में भरकर

सीने से लगाने का इरादा जिंदा है

तेरी गोद में सर रखकर

जुल्फों तले खोने का इरादा जिंदा है

तेरी कातिल मुस्कुराहट पर

फिदा होने का इरादा जिंदा है ...

तेरी निगाहों की बेकरारी को

बरकरार रखने का इरादा जिंदा है

तू गैर की हो गयी तो क्या हुआ

आज भी पुनर्जन्म लेकर

तेरी मोहब्बत की तपिश में

एक बार फिर से जलने का इरादा जिंदा है

बुधवार, 5 मार्च 2014

इंतजार

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



उसके इंतजार में दिल

अक्सर तड़पता रहता है

हर शख्स में दिल उसकी ही

तस्वीर ढूंढता फिरता है

मेरे अरमानों का मगर

उसपर कुछ भी असर नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



बेजुबान दिल अक्सर ही

कराहता रहता है

अपने जख्मी दिल को

खुद ही संभालता फिरता है

मेरे जज़्बातों का मगर

उसे कुछ भी कद्र नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से



मेरे दिल के मंदिर में

नित नए फूल खिलते रहते हैं

हकीकत मे न सही

ख्वाबों में हम मिलते रहते हैं

मेरी हसरतों का मगर

उसे कोई फिक्र नहीं

दिल पूछता है खुद से

आखिर मोहब्बत हुई ही क्यों

एक संगदिल बेरहम से

एतबार


मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं

मेरे कसमें वादों पर

तुझको क्यों एतबार नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 1 ।।


हम ढूंढते फिरते हैं खुशियाँ

तेरी ज़ुल्फों की छांव में

मेरे अरमानों का घरौंदा तोडने वाले

तुझसे क्यों मैं नाराज नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 2 ।।



नादान सी चाहत में

तलाश रहा हूँ अनाम रिश्ते

जीवन की इस आपाधापी में

तू क्यों मेरी हमराज नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 3 ।।



तेरी झील सी निगाहों में

बिखरे पडे हैं ख़्वाब सारे

मेरी सांसों में समानेवाली

तुझको क्यों मुझसे प्यार नहीं

मेरी सच्ची मोहब्बत पर

तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 4 ।।

तेरा साथ

 
तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ

तूझसे नाराज होकर भी

तेरी यादों को ही साथ लिए चलता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ



तेरी नादानियों से रूसवा होकर भी

तेरे दर पर ही आकर ठहरता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ



तेरी गलतफहमियों से परेशान होकर भी

तेरे आगोश में ही सर अपना छुपाता हूँ

तड़पता हूँ, सिसकता हूँ

तेरी मोहब्बत में बहकता हूँ