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बुधवार, 5 मार्च 2014
एतबार
मेरी सच्ची मोहब्बत पर
तुझको क्यों एतबार नहीं
मेरे कसमें वादों पर
तुझको क्यों एतबार नहीं
मेरी सच्ची मोहब्बत पर
तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 1 ।।
हम ढूंढते फिरते हैं खुशियाँ
तेरी ज़ुल्फों की छांव में
मेरे अरमानों का घरौंदा तोडने वाले
तुझसे क्यों मैं नाराज नहीं
मेरी सच्ची मोहब्बत पर
तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 2 ।।
नादान सी चाहत में
तलाश रहा हूँ अनाम रिश्ते
जीवन की इस आपाधापी में
तू क्यों मेरी हमराज नहीं
मेरी सच्ची मोहब्बत पर
तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 3 ।।
तेरी झील सी निगाहों में
बिखरे पडे हैं ख़्वाब सारे
मेरी सांसों में समानेवाली
तुझको क्यों मुझसे प्यार नहीं
मेरी सच्ची मोहब्बत पर
तुझको क्यों एतबार नहीं ।। 4 ।।
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