रविवार, 13 अप्रैल 2014

तुम


सूख चुके झरने मेरी निगाहों से 

अब तो बरबस बहने लगे हैं

दिल मे दफन जज़्बात सारे

फिर से मचलने लगे हैं

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी मोहब्बत से होकर अनजान

जिनकी यादों की तपिश में

हरपल हम जलते रहे हैं



जीवन का सूनापन

अरमानों से भरने लगा हैं

बेताब निगाहों में अब तो

ख्वाब भी सजने लगा है

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी हालातों से बनकर नादान

जिनकी निगाहों के दर्पण में

हम जिन्दगी का अख्श देखते हैं



मेरी हसरतों का कभी

किसी को फिक्र नहीं रहा

मेरी सच्ची मोहब्बत का

कहीं भी जिक्र नहीं रहा

हम तलाशते रहे हर लम्हा

तुमको जीवन के सफर में

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी पागलपन से होकर परेशान

जिनको हमसफर मानकर

तन्हा ही हम चलते रहे हैं

कोई टिप्पणी नहीं: