शनिवार, 26 अप्रैल 2014

तेरी तस्वीर


बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

तेरी तस्वीर को देखकर 

हम क्यों बहकने लगे हैं 

बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

तुमने कमसें खाईं हैं

हमसे दूर रहने की

हमने भी कमसें खा ली हैं

आजीवन तुम्‍हें नहीं भूलने की 

बदलते मौसम की तरह 

हम भी बदलने लगे हैं

अपनी तकदीर को देखकर 

हम क्यों तडपने लगे हैं

बदलते मौसम की तरह

हम भी बदलने लगे हैं

झूठे कसमें वादों पर

एतबार करने की सजा

बेरहम संगदिल सनम से 

बेइंतहा प्यार करने की खता

बदलते मौसम की तरह

हम भी बदलने लगे हैं

तेरी तस्वीर को देखकर 

हम क्यों बहकने लगे हैं 

कहाँ हो तुम


कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो

मेरी सांसों में समाने वाले 

मेरे जीवन की तुम तलाश हो

कहां हो दूर तुम

यहीं तो आस - पास हो


जीवन के सफर में 

परछाई बनकर मेरे साथ हो 

मेरी निगाहों में बसने वाले

मेरी खुशियों का तुम एहसास हो

कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो


मेरी बेइंतहा मोहब्बत से 

जाने क्यों तुम नाराज हो

मेरे दिल को तोड़ने वाले 

मेरी धड़कनों की तुम आवाज हो

कहां हो दूर तुम 

यहीं तो आस - पास हो

तुम्हारा साथ


नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए तेरी ज़ुल्फों की छाँव

जिसमें सर छुपाकर खुलकर मैं रो सकूँ

नहीं चाहिए तेरी मखमली गोद

जिसपर सर रखकर मैं चैन से सो सकूँ

नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए तुझसे झूठे वादों के बोल

जिसके सहारे जीवन मैं अपनी गुजार सकूँ

नहीं चाहिए मुझे तेरे लिखे कोरे कागज के पन्ने

जिसके पढ़कर मैं खुशियों का एहसास कर सकूँ

नहीं चाहिए अब साथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

नहीं चाहिए अब हाथ तेरा

तेरी यादें ही काफी हैं

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

हम तेरे काबिल नहीं


अरमानों के दिए

दिल में जलते रहे

मोहब्बत की राहों में

हम तन्हा‍ चलते रहे

तेरे ही हाथों बार-बार

मेरे दिल के टुकडे होते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 1 ।।


मोहब्बत के फसाने

दिल में दफन होते रहे

तेरी यादों के नगमें

मुझ पर सितम करते रहे

तेरी बेरहमी से हम

टूट-टूटकर बिखरते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 2 ।।


जख्मों को दिल से लगाए

सिसक-सिसक कर रोते रहे

अपने जीवन से दूर जाते हुए

बेबस तूझे देखते रहे

मेरी मोहब्बत को सरेआम

तुम ही रूसवा करते रहे

बेजार होकर भी मगर

खुद से यही कहते फिर रहे

हम तेरे काबिल नहीं ।। 3 ।।

रविवार, 13 अप्रैल 2014

तुम


सूख चुके झरने मेरी निगाहों से 

अब तो बरबस बहने लगे हैं

दिल मे दफन जज़्बात सारे

फिर से मचलने लगे हैं

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी मोहब्बत से होकर अनजान

जिनकी यादों की तपिश में

हरपल हम जलते रहे हैं



जीवन का सूनापन

अरमानों से भरने लगा हैं

बेताब निगाहों में अब तो

ख्वाब भी सजने लगा है

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी हालातों से बनकर नादान

जिनकी निगाहों के दर्पण में

हम जिन्दगी का अख्श देखते हैं



मेरी हसरतों का कभी

किसी को फिक्र नहीं रहा

मेरी सच्ची मोहब्बत का

कहीं भी जिक्र नहीं रहा

हम तलाशते रहे हर लम्हा

तुमको जीवन के सफर में

तुम ही मगर दूर जा बैठी कहीं

मेरी पागलपन से होकर परेशान

जिनको हमसफर मानकर

तन्हा ही हम चलते रहे हैं

अनाथ


माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

अपनों के बीच रहकर भी

मैं खुद से ही निराश हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ



बीवी है अपनी

बच्चा भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

दिन के उजालों में भी

मैं अमावस की रात हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ



तेरी यादें हैं अपनी

मेरा प्यार है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

कल और आज के बीच

जैसे बीता हुआ कोई बात हूँ

माँ है अपनी

बाप भी है अपना

फिर भी अनाथ हूँ

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