घर से वनवास को निकले (2025 - 2006) लगभग 20 वर्ष हो गए हैं।
PROUD TO BE AN INDIAN
We are all INDIAN before a Hindu, Muslim, Sikh aur Isai or a Bihari, Marathi, Bengali etc. Love to all human being........
गुरुवार, 10 जुलाई 2025
फिर से एक मुलाकात की ख्वाहिश
वर्ष 2024 मेरे जीवन का काफी उथल-पुथल भर वर्ष रहा।
अप्रैल 2024 की घटना, जब मेरे छोटे भाई ने अपने एकलौते पुत्र को खो दिया, ने मेरे जीवन में काफी कुछ बदलाव कर दिया। इस घटना ने मेरे जीवन के प्रति मेरे नजरिए को पूरी तरह से ही बदल कर रख दिया। इसी बीच 31 अगस्त, 2024 को लगभग 21 वर्षों के बाद मुझसे मेरी जिंदगी की अचानक मुलाकात भी हुई और उसे ठीक से नहीं देख पाने का मलाल भी रहा।
जीवन में अगले जन्म का इंतजार करने की चाह के साथ-साथ जीवन को पल-पल गुजारने वाले चिंतन करते हुए मेरे जीवन में राधे-कृष्ण का प्रवेश तथा दिसंबर 2024 आते-आते मुझे ऐसा महसूस हो चला कि अब मेरा कोई और जन्म नहीं होनेवाला, मनुष्य के रूप में शायद मेरा यही अंतिम जन्म है। इस भाव के साथ जीवन जीना भी कितना सुकून भरा है। सब कुछ राधे-कृष्ण की कृपा से हो रहा है अब तो यही लगता है।
अब न कोई अगला जन्म, वो मेरी डायरी के पन्ने, वो इंतजार, कई अनकही बातें, कई अधूरी ख्वाहिशें - सब कुछ नजारा बदल सा गया। यही सोचते हुए कुछ दिनों पहले न जाने क्यूँ मेरी जिंदगी से फिर से एक मुलाकात की ख्वाहिश मेरे हृदय में पनपी और मैंने अपनी एक दीदी से उससे मुलाकात कराने का अनुरोध भी कर दिया मगर फिर मेरे हृदय में 20 मई 2021 की घटना तरोताजा हो गई ( पढ़ें 20 मई, 2001 की कहानी) कि किस परिस्थिति में मैंने उससे एक अंतिम मुलाकात करने की अर्जी उससे लगाई थी और उसने मुझसे क्या कुछ कहकर मिलने से मना कर दिया था। यह सोचकर मैं डर गया और दीदी से आज मुलाकात कराने के अपने अनुरोध को माफी मांगते हुए वापस ले लिए।
मेरे जीवन का अब कोई भरोसा नहीं। न जाने किस मोड पर कहाँ रुक जाए, ऐसा हृदय से महसूस कर रहा हूँ। मेरे प्रति उसके हृदय में बसी नफ़रतों की यादें आज भी मेरे साथ हमेशा सफर करती है।
उसके बोले गए शब्दों "हम आपको लाइक नहीं करते" से लेकर "अपनी लिए एक लड़की तो ढूंढ नहीं पा रहा और चला है मेरे लिए लड़का ढूँढने" को याद करके मेरा हृदय आज भी जार-जार होता है। मगर शायद यही जिंदगी है।
अब इस जीवन में किसी से कोई शिकायत नहीं रही। ईश्वर की भी मुझ पर असीम कृपा रही है।
हृदय के अरमानों को अब एक छोर से दूसरे छोर तक बांधने की कोशिश में लगा हूँ। देखता हूँ कहाँ तक सफल हो पाता हूँ।
शनिवार, 31 अगस्त 2024
जब वी मेट (21 साल के बाद)
31.08.2024 दिन शनिवार जब तुमसे हम 21 वर्षो के बाद मिले मगर अफ़सोस अपनी हालत का मैंने बिलकुल अगस्त 1994 जैसा महसूस किया. दो पल ठीक से तुम्हें देखने की हिम्मत तक जुटा नहीं पाया, इसका अफ़सोस है.
कुछ देर साथ थे, कुछ टूटी-फूटी बातें भी हुई और फिर हम पहले की तरह एक दूसरे से जुदा हो गए. आज तुम्हारे साथ बिताये इन लम्हो ने एक बात साबित कर दिया कि इतने वर्षो बाद न तुम बदली और न मैं, अगर बदला है तो सिर्फ यह वक़्त.
वर्षो बाद तुमसे मुलाक़ात के लिए उस परमेश्वर का आभार व्यक्त करता हूँ जिसने मुझे तुमसे मिलने में यहां महत्वपूर्ण कड़ी का काम किया और खुद को आज मैं बड़ा सौभाग्यशाली समझता हूँ, जरूर यह मेरे किसी पूर्व जन्म के पुण्यो का प्रतिफल है.
तुम्हारी खुशियों की दुआ करता हूँ. ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे.
शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2024
शनिवार, 6 जून 2020
इंसानियत का दुश्मन
गुरुवार, 14 मई 2020
बाघा बार्डर
कुछ गलती जिन्ना ने भी की होगी
गुरुवार, 19 दिसंबर 2019
नागरिकता विधेयक 2019
नागरिकता कानून, 1955 का संबंध भारतीय नागरिकता अधिग्रहण करने और नागरिकता तय करने के लिए है।भारत के संविधान के साथ ही नागरिकता कानून, 1955 में भारत की नागरिकता से संबंधित विस्तृत कानून है।किसी व्यक्ति को नागरिकता देने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 5 से 11 (पार्ट II) में प्रावधान किए गए हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 क्या था?
नागरिकता कानून, 1955 में बदलाव के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 पेश किया गया था। यह विधेयक 19 जुलाई, 2016 को पेश किया गया था। इसमें भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए अवैध गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया। लेकिन उस समय राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में सरकार की ओर से फिर से पेश किया गया।
नागरिकता विधेयक, 2019 फिर से क्यों पेश करना पड़ा?
संसदीय प्रक्रियाओं के नियम के मुताबिक, अगर कोई विधेयक लोकसभा में पास हो जाता है लेकिन राज्य सभा में पास नहीं हो पाता और लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो जाता है तो वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है यानी उसको फिर से दोनों सदनों में पास कराना होगा। वहीं राज्य सभा से संबंधित नियम अलग है। अगर कोई विधेयक राज्य सभा में लंबित हो और लोकसभा से पास नहीं हो पाता और लोकसभा भंग हो जाती है तो वह विधेयक निष्प्रभावी नहीं होता है। चूंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी बीच 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, इसलिए इस विधेयक को फिर से दोनों सदन में पास कराना पड़ा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया।
अब नए कानून में क्या है प्रावधान?
नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है।
सोमवार, 9 दिसंबर 2019
Rough Driving
बुधवार, 4 दिसंबर 2019
MRP and our responsibility
मंगलवार, 6 अगस्त 2019
आत्मसाक्षात्कार एवं नशा-मुक्ति मार्ग का सफर
मंगलवार, 1 मार्च 2016
धिक्कार है तूझपे
उसकी गोद में बैठकर
दुश्मनों की जय जयकार करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
जिसकी छाती पर, गुजारा तूने अपना बचपन
उस माटी को कलंकित करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
जिसने आतंकवादियों का साथ दिया
उसको शहीद बताकर, शहीदों का अपमान करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
ऐ कैसी अभिव्य्क्ति तेरी, जिससे समूचा देश हो शर्मसार
ऋषि-मुनियों की यह पवित्र भूमि
जिससे पूरा विश्व हुआ आलोकमय
उसी जमीं पर ऐसी, विकृत मानसिकता रखते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
दार्शनिक-सा विचार होता
बाल-सुलभ सा व्यवहार होता
निश्छल-सा स्वभाव होता
छात्र नाम को लांछित करके
क्यों देशद्रोही साजिश रचते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
हर धर्म के प्रति आदर भाव है
न जाने क्यों फिर कट्टरपंथी बनकर
गांधी की इस तपोभूमि को
हिंसात्मक नारों से उद्वेलित करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
................................................परमार्थ सुमन