शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

मुंबई कल और आज

राज ठाकरे ने मुंबई में जो उथल पुथल मचाया और उसके बाद मुंबई पुलिस के द्वारा राहुल राज के कत्ल के बाद जो स्थिति मुंबई की हुई ये हमने कभी सोचा नहीं था। खुलेआम गुंडागर्दी खुलेआम कत्ल खुलेआम कानून का मजाक उडाना सब कुछ मुंबई ने पिछले दिनों देखा। निहत्थे लोगों पर सिर्फ़ राजनीति की दूकान चलाने के लिए जुल्म करना और आमची मुंबई का नारा बुलंद करना ये कहाँ का इंसाफ है। कभी दक्षिण भारत तो कभी उत्तर भारत के लोगों पर ठाकरे जैसे नेताओं ने जो जुल्म किये उसे हम सबने अपने अपने अंतरात्मा से महसूस किया। सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीति की रोटी सेकने के लिए कभी हिंदू मुस्लिम के बीच दंगे कराए जाते थे तो आज स्थिति इतनी बदल गयी है की क्षेत्रीय राजनीति के नाम पर एक नए आतंकवाद की पटकथा लिख दी है। उस वक्त जब राज ठाकरे के गुंडे क्षेत्रीय राजनीति के नाम पर उत्तर भारत के लोगों पर अत्याचार कर रहे थे, समूचा लोकतंत्र शर्मिंदा हो गया था तब किसीं ने यी नहीं कहा था कि ये ग़लत हो रहा है।
मुंबई, जहाँ अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, लता मंगेशकर से लेकर सचिन तेंदुलकर तक बड़ी से बड़ी हस्तियां रहतीं हैं मगर किसी ने इस मामले में दखल देना मुनासिब नही समझा। क्यो? आख़िर क्यो? क्या हो गया था उन हस्तियों को जो आज आतंकवाद के मसले पर अपने अपने ब्लॉग पर अपनी अपनी दुःख भरी व्यथा लिख रहे हैं और जो दिन प्रतिदिन समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ कि शोभा बन रहें है। चाहे अमिताभ भाच्चन हों या लता मंगेशकर या फिर धर्मेन्द्र हों सभी खुलकर आतंकवाद के खिलाफ अपनी आवाजें बुलंद कर रहें है, उनसे मेरा एक सवाल है - क्या आतंकवादियों द्वारा किए गए कत्लेआम का ही विरोध करेंगे, पिछले दिनों जो राज ठाकरे और उसके मनसे के गुंडे ने राजनीति के नाम पर आतंकवाद का नया रूप पेश किया उसका विरोध क्योँ नहीं किया गया। यदि वर्तमान कि तरह मुखर होकर उस समय येही प्रतिक्रया की गई होती तो राज ठाकरे जैसे नेता को मजबूरन अपनी राजनीति की दूकान बंद करनी पड़ती।
मुंबई में 200 के लगभग लोग मर गए, वे भी इंसान ही थे, 22 लोगों को छोड़कर बाकी लोग हमारे अपने ही थे, हमारे हिन्दुस्तान के ही थे, मगर ना जाने क्यों इस बार मुझे व्यक्तिगत रूप से ये एहसास ही नही हुआ की मैंने कुछ खोया है, मुझे ऐसा लगा ही नही की मैंने अपने लोगों को खोया है। ना जाने क्यों मेरे जेहन से वो अपनापन गायब हो गया था। मैंने ये महसूस किया की जब राज ठाकरे जैसा नेता मुंबई को अपने बाप की जागीर समझता है और मुंबई में रह रहे सामान्य लोगों से लेकर खास लोगों तक में कोई भी ऐसा नही जो उसके इस जागीर पर ऐतराज करने का दम भरे। शायद येही कारन हैं जिसके कारन मैं सवेदंशुन्य होकर सिर्फ़ न्यूज़ और न्यूज़ देखता रहा कहीं से कोई भावः मेरे अंतरात्मा से नही निकले कहीं से कोई मर्म मुझे एहसास नहीं हुआ मुझे ऐसा लगा जैसे मुंबई किसी दूसरे देश में चली गयी हो, मुंबई से अब हमारे देश का कोई मतलब नही।

सोमवार, 17 नवंबर 2008

साइंटिस्ट तथा एडमिनिस्ट्रेशन का अदभुत मिलाप - सी एम् इ आर आई दुर्गापुर

वैज्ञानिक संस्थानों में हमेशा ही वैज्ञानिक तथा एडमिनिस्ट्रेशन में बहुत बड़ी दूरी बनी रहती है किंतु सी एम् इ आर आई दुर्गापुर में मैंने व्यक्तिगत स्तर पर ये महसूस किया है की यहाँ वो दूरी दूसरे संस्थानों की तरह इतनी गहरी नहीं थी। मेरे अपने 2.2 साल की अवधि में कई बार साइंटिस्ट और गैर - साइंटिस्ट (एडमिनिस्ट्रेशन) के बीच पनपे ऐसे अदभूत संगम को देखा और इस संगम के परिणामस्वरूप सफल हुए कई आयोजनों का मैं स्वयं गवाह भी बना। इसके कई उदहारण हैं जैसे कि : .................................Annual Sports 2006
.................................Regular and Pensioner के लिए वृहत स्तर पर आयोजित समारोह 2007
................................. Annual Sports 2007
..................................SSBMT ZONAL TOURNAMENT 2007
..................................Solar Autorickshaw Project 2007
इतना ही नहीं जो भी समारोह अथवा सेमिनार आयोजित किए जाते उनमें एडमिनिस्ट्रेशन की भी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। सी एम् आर आई दुर्गापुर में मैंने साइंटिस्ट और गैर साइंटिस्ट (एडमिनिस्ट्रेशन) का मिलाप देखा है। दोनों की सहभागिता प्रत्येक मामले में देखी है। चाहे सुप्रकाश हलदर हों या पी के चटर्जी, चाहें बी के कर हों या सुभाजीत बनर्जी या एम् सी मुर्मू सभी अनुभाग अधिकारियों के सम्बन्ध वैज्ञानिकों के साथ ना सिर्फ़ मधुर है बल्कि मिलकर काम करने की भावना इनमें दर्शनीय है। इसके लिए ना सिर्फ़ ये अधिकारी बधाई के पात्र हैं बल्कि इनके साथ साथ वहां के साइंटिस्ट भी बधाई के पात्र हैं जो हर कदम पर प्रशासनिक महकमे को साथ लेकर चलने का सफल प्रयास करता हैं।

मंगलवार, 11 नवंबर 2008

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संस्थान, दुर्गापुर और मैं


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Dear Balu, We all miss you yaar ....................

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संजीत कुमार तथा मनीष जी का शुक्रिया जो आप दोनों ने मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स लिखा , इसी तरह सभी दोस्तों से मेरा अनुरोध है की कृपया करके आप भी अपने कमेंट्स जरुर से जरुर लिखें.
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मेरा बचपन बंगाली माहौल में गुजरा। 1978 के बालपन से लेकर 2006 की जवानी तक मैंने बंगाली माहौल में सांसे ली. मेरा पहला प्यार भी एक बंगाली ही थी। मुझे बंगाल से जुड़ी हर एक चीज पसंद लगती थी। मैंने बंगाली बोलना सीखा। मेरी नौकरी जब दुर्गापुर में केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान में हुई तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। जिस बंगाली माहौल से मुझे एक सभ्य संस्कार की खुशबू आती थी, उसी माहौल में रहने, काम करने का मुझे सौभाग्य मिला था। मेरे लिए बंगाल में काम करना, बंगाली माहौल में काम करना किसी सपने के सच होने के समान था। वो बंगाल जिसने रबिन्द्र नाथ टैगोर और अमर्त्य सेन जैसा नोबेल पदकधारी पैदा किया। वो बंगाल जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपना एक अहम् योगदान दिया। प्रत्येक बंगाली को जिस तरह अपने आप पर गर्व होता है ठीक उसी तरह मुझे भी बंगाल के माहौल में ख़ुद को पाकर असीम गर्व की अनुभूति हुई।
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.समस्त बंगाल के सभी निवासियों को मेरा कोटिशः नमन। .
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मैंने केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान, दुर्गापुर में 20 जून 2006को अपना पद ग्रहण किया। मुझे अच्छी तरह से याद है उस समय मेरा स्वाभाव अजीबोगरीब था। जब मैं पद ग्रहण करने RCT अनुभाग गया था तो मेरे सर पे टोपी थी, मेरे हांथो में बैन्ड बंधा हुआ था। मेरे स्वर में एक अजीब तरह का बडबोलापन था, जो उस समय कई लोगों को जरुर खटका होगा। इसमे कोई दो राय नही की व्यावहारिक स्तर पर मैं ग़लत था। इसका एहसास मुझे लगभग 1 वर्षों के बाद हुआ। मेरे लिए ये नौकरी किसी जीवनदान से कम नहीं। मैं इसके लिए इश्वर को कोतिश: नमन करता हूँ। इस नौकरी से पहले मेरी क्या हालत थी, ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं ही जनता हूँ। सुबह 9 से साम 6 बजे तक NML जमशेदपुर की नौकरी और फिर रात 8 बजे से देर रात 2 बजे तक उदितवाणी समाचार पत्र में काम करके कुल मिलाकर जैसे तैसे 5500 रूपये कमा पाता था। इसी दौरान किसी तरह से कम्पीटिशन की तैयारी करके मैंने CMERI दुर्गापुर जैसे प्रतिष्ठित सन्स्थान में एक पोस्ट पर अपना कब्जा किया था।
मैंने जब CMERI में अपना पद ग्रहण किया था, उस समय मैं हॉस्टल में कुछ दिनों के लिए रहा था। मैं E-II में तैनात मनीष कुमार को नहीं भूल सकता। एक मनीष ही था जिससे मेरे सबसे पहले दोस्ती हुई थी। वो ही मुझे हॉस्टल आकर उठाता था और अपने साथ मुझे ऑफिस ले जाता था। किसी नए जगह में जो आरम्भ में सूनापन लगना चाहिए था वो मुझे मनीष कुमार की वजह से कभी नहीं लगा। इसके लिए मैं आजीवन मनीष का आभारी रहूँगा।
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मनीष मेरे दोस्त में तूझे भूल नहीं सकता यार।
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................." एक तुम ही थे जिसने मुझे तनहाइयों में दिया था सहारा ..............
..................एक तुम ही थे जिसने मेरी कश्ती को किया था किनारा ..................
..................तुझसे जुड़ी है कई यादें मेरी .................................................................
..................आज भी तेरी याद में पलकें भींगती है मेरी" ........................................
..............................................................................................................परमार्थ सुमन
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CMERI में join करने के बाद मेरी तैनाती सबसे पहले RCT अनुभाग में पूर्णिमा दीदी के अधीन हुई। मुझे परियोजना सहायक से सम्बंधित कार्य सौंपा गया किंतु अचानक ही 2 दिनों के बाद मेरी तैनाती E-II अनुभाग में कर दी गयी।
मैंने E-II अनुभाग में श्री बी पी साव, अनुभाग अधिकारी के अधीन अभी काम करना शुरू ही किया था की मेरी तैनाती हिन्दी अनुभाग में कर दी गई।