सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संस्थान, दुर्गापुर और मैं


---------------------------------------------------------------------------------------------------

Dear Balu, We all miss you yaar ....................

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
संजीत कुमार तथा मनीष जी का शुक्रिया जो आप दोनों ने मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स लिखा , इसी तरह सभी दोस्तों से मेरा अनुरोध है की कृपया करके आप भी अपने कमेंट्स जरुर से जरुर लिखें.
-----------------------------------------------------------------
मेरा बचपन बंगाली माहौल में गुजरा। 1978 के बालपन से लेकर 2006 की जवानी तक मैंने बंगाली माहौल में सांसे ली. मेरा पहला प्यार भी एक बंगाली ही थी। मुझे बंगाल से जुड़ी हर एक चीज पसंद लगती थी। मैंने बंगाली बोलना सीखा। मेरी नौकरी जब दुर्गापुर में केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान में हुई तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नही रहा। जिस बंगाली माहौल से मुझे एक सभ्य संस्कार की खुशबू आती थी, उसी माहौल में रहने, काम करने का मुझे सौभाग्य मिला था। मेरे लिए बंगाल में काम करना, बंगाली माहौल में काम करना किसी सपने के सच होने के समान था। वो बंगाल जिसने रबिन्द्र नाथ टैगोर और अमर्त्य सेन जैसा नोबेल पदकधारी पैदा किया। वो बंगाल जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपना एक अहम् योगदान दिया। प्रत्येक बंगाली को जिस तरह अपने आप पर गर्व होता है ठीक उसी तरह मुझे भी बंगाल के माहौल में ख़ुद को पाकर असीम गर्व की अनुभूति हुई।
-------------------------------------------------------------------------
.समस्त बंगाल के सभी निवासियों को मेरा कोटिशः नमन। .
-------------------------------------------------------------------------
मैंने केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिक अनुसन्धान संसथान, दुर्गापुर में 20 जून 2006को अपना पद ग्रहण किया। मुझे अच्छी तरह से याद है उस समय मेरा स्वाभाव अजीबोगरीब था। जब मैं पद ग्रहण करने RCT अनुभाग गया था तो मेरे सर पे टोपी थी, मेरे हांथो में बैन्ड बंधा हुआ था। मेरे स्वर में एक अजीब तरह का बडबोलापन था, जो उस समय कई लोगों को जरुर खटका होगा। इसमे कोई दो राय नही की व्यावहारिक स्तर पर मैं ग़लत था। इसका एहसास मुझे लगभग 1 वर्षों के बाद हुआ। मेरे लिए ये नौकरी किसी जीवनदान से कम नहीं। मैं इसके लिए इश्वर को कोतिश: नमन करता हूँ। इस नौकरी से पहले मेरी क्या हालत थी, ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं ही जनता हूँ। सुबह 9 से साम 6 बजे तक NML जमशेदपुर की नौकरी और फिर रात 8 बजे से देर रात 2 बजे तक उदितवाणी समाचार पत्र में काम करके कुल मिलाकर जैसे तैसे 5500 रूपये कमा पाता था। इसी दौरान किसी तरह से कम्पीटिशन की तैयारी करके मैंने CMERI दुर्गापुर जैसे प्रतिष्ठित सन्स्थान में एक पोस्ट पर अपना कब्जा किया था।
मैंने जब CMERI में अपना पद ग्रहण किया था, उस समय मैं हॉस्टल में कुछ दिनों के लिए रहा था। मैं E-II में तैनात मनीष कुमार को नहीं भूल सकता। एक मनीष ही था जिससे मेरे सबसे पहले दोस्ती हुई थी। वो ही मुझे हॉस्टल आकर उठाता था और अपने साथ मुझे ऑफिस ले जाता था। किसी नए जगह में जो आरम्भ में सूनापन लगना चाहिए था वो मुझे मनीष कुमार की वजह से कभी नहीं लगा। इसके लिए मैं आजीवन मनीष का आभारी रहूँगा।
--------------------------------------------------------------------------
मनीष मेरे दोस्त में तूझे भूल नहीं सकता यार।
--------------------------------------------------------------------------
................." एक तुम ही थे जिसने मुझे तनहाइयों में दिया था सहारा ..............
..................एक तुम ही थे जिसने मेरी कश्ती को किया था किनारा ..................
..................तुझसे जुड़ी है कई यादें मेरी .................................................................
..................आज भी तेरी याद में पलकें भींगती है मेरी" ........................................
..............................................................................................................परमार्थ सुमन
------------------------------------------------------------------------
CMERI में join करने के बाद मेरी तैनाती सबसे पहले RCT अनुभाग में पूर्णिमा दीदी के अधीन हुई। मुझे परियोजना सहायक से सम्बंधित कार्य सौंपा गया किंतु अचानक ही 2 दिनों के बाद मेरी तैनाती E-II अनुभाग में कर दी गयी।
मैंने E-II अनुभाग में श्री बी पी साव, अनुभाग अधिकारी के अधीन अभी काम करना शुरू ही किया था की मेरी तैनाती हिन्दी अनुभाग में कर दी गई।

टिप्पणियाँ

Sanjeet Kumar ने कहा…
Really, this is very fantastic effort for writing an autobiography.
Sanjeet
बेनामी ने कहा…
Poori Film kab dikhaoge

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur

Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत   पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी।   दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ।   बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज

इश्वर, आत्मा और कुछ अनसुलझे रहस्य !

आत्मा, ना जन्म लेती है, ना ही मरती है, और ना ही उसे जलाकर नष्ट किया जा सकता है। ये वो सारी बातें हैं, जो हम गीता स्मरण के कारण जानते और मानतें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, हम लिखी बातोंपर जल्द ही यकीं कर लेतें हैं और फ़िर हमारे वंशज उसी को मानते चले जातें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, विश्वास करना हमारे रगों में है, किसी ने कुछ लिख दिया, किसी ने कुछ कह दिया बस हमने उसपर बिना कोई सवाल किए विश्वास कर लिया। हम रामायण से लेकर महाभारत तक तो सिर्फ़ मानकर विश्वास करते ही तो आ रहें हैं। हम शिव से लेकर रावण तक सिर्फ़ विश्वास के बल पर ही तो टिके हुए हैं। हमें हमारे माता-पिता ने बतलाया कि ब्रम्हा, बिष्णु, शिव, राम, हनुमान, गणेश, विश्वकर्मा, काली, दुर्गा आदि हमारे भाग्य विधाता हैं और हमने हिन्दुस्तानी का धर्म निभाते हुए ये मान लिए कि वे इश्वर हैं, हमारे भाग्य विधाता हैं। जब कोई विपत्ति कि बेला आई हमने उनका ध्यान करना आरम्भ कर दिया। बिना कोई सवाल किए हमने उनको इश्वर मानना आरम्भ कर दिया और फिर येही परम्परा बन स्थापित हो गई। ये ही दुहराव फिर हम भी अपने-अपने संतानों के साथ करेंगे, जो हमारे साथ किया गया। हमारे

जमशेदपुर में ट्रैफिक की समस्या

जमशेदपुर आज ट्रैफिक समस्याओं से बुरी तरस से ग्रसित है। मगर ना जाने क्यूंकिसी को इसकी परवाह नहीं है। चाहे बिस्टुपुर हो या स्टेशन एरिया या फिर साक्ची हो अथवा शहर के दुसरे इलाके हों सभी ट्रैफिक समस्यायों से बुरी तरह से ग्रसित हैं। बिष्टुपुर एरिया के मेनरोड को देखकर तो ऐसा लगता है की ये कोई मुख्यसड़क नही होकर कोई पार्किंग एरिया है। पता नहीं कैसे लोग खुले तौरपर अपने दो पहिये और चार पहिये वाहन को निर्भीक होकर मुख्य सड़क पर पार्क कर रोजमर्रा के कार्य करने में लीनहो जातें हैं। कोई देखने वाला नहीं की वाहन मुख्य सड़क पर पार्क कर दी गयी है। और तो और मुख्य सड़क पर पार्क कराकर पार्किंग टैक्स की वसूली भी की जाती है। आज की तिथि में बिष्टुपुर एरिया के मुख्य सड़क का आधा भाग तो वाहनों के ही पार्किंग से भरा परा रहता है। समूचा बिस्टुपुर एरिया देखने से ही किसी पार्किंग स्थल सा प्रतीत होता है। कोई देखने वाला नहीं, कोई एक्शन लेने वाला नही। कुछ इसी तरह के हालात साक्ची एरिया के भी हैं। जहाँ तहां खोमचे वाले, ठेले वाले, टेम्पू वाले अपने अपने मनमुताबिकजगह पर तैनात हैं। किसी को किसी की परवाह ही नहीं है। किसी को किसी का