शनिवार, 7 दिसंबर 2013

ना जाने क्यों


ना जाने क्‍यों आज भी
वक्‍त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्‍बत का
कत्‍लेआम हुआ था कभी
उसके ही हाथों बेवजह
सरेआम जलील हुआ था कभी
ना जाने क्‍यों आज भी
वक्‍त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्‍बत का
कत्‍लेआम हुआ था कभी  ।। 1 ।।

वो दिन के उजाले में
चांद के ख्‍वाब देखना
वो रातों को पलकें खोलकर
नगमें मोहब्‍बत के गुनगुनाते रहना
ना जाने क्‍यों आज भी
वक्‍त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्‍बत का
कत्‍लेआम हुआ था कभी ।। 2 ।।

वो तेरे दीदार की चाहत में
पलकों से अश्‍क बहाते फिरना
वो बेबसी की आग में
जलकर भी मुस्‍कुराते रहना
ना जाने क्‍यों आज भी
वक्‍त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्‍बत का
कत्‍लेआम हुआ था कभी ।। 3 ।।

मेरी बेइंतहा मोहब्‍बत को हासिल
आखिर क्‍या हुआ था तभी
ना जाने क्‍यों आज भी
वक्‍त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्‍बत का
कत्‍लेआम हुआ था कभी ।। 4 ।।
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