ना जाने क्यों आज भी
वक्त वहीं ठहरा हुआ लगता है
जहां मेरी मोहब्बत का
कत्लेआम हुआ था कभी
उसके ही हाथों बेवजह
सरेआम जलील हुआ था
कभी
ना जाने क्यों आज
भी
वक्त वहीं ठहरा हुआ
लगता है
जहां मेरी मोहब्बत
का
कत्लेआम हुआ था
कभी ।। 1 ।।
वो दिन के उजाले में
चांद के ख्वाब
देखना
वो रातों को पलकें
खोलकर
नगमें मोहब्बत के
गुनगुनाते रहना
ना जाने क्यों आज
भी
वक्त वहीं ठहरा हुआ
लगता है
जहां मेरी मोहब्बत
का
कत्लेआम हुआ था कभी
।। 2 ।।
वो तेरे दीदार की चाहत में
पलकों से अश्क
बहाते फिरना
वो बेबसी की आग में
जलकर भी मुस्कुराते
रहना
ना जाने क्यों आज
भी
वक्त वहीं ठहरा हुआ
लगता है
जहां मेरी मोहब्बत
का
कत्लेआम हुआ था कभी
।। 3 ।।
मेरी बेइंतहा मोहब्बत को हासिल
आखिर क्या हुआ था
तभी
ना जाने क्यों आज
भी
वक्त वहीं ठहरा हुआ
लगता है
जहां मेरी मोहब्बत
का
कत्लेआम
हुआ था कभी ।। 4 ।।
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