पिछले दिनों जो कुछ हुआ उससे गद्दार, नमकहराम शब्द भी शर्मशार हो गया। लोगों ने व्यक्तिगत लडाई लडने की कोशिश में नमकहरामी तक कर डाली। जिसका नमक खाया उसकी ही बेइज्जती कराने में कोई कसर नही छोडी। अपने हित की, अपने अहम की, अपने स्वाभिमान की लडाई में उस समाज की बेइज्जती करा डाली जिसने उसे रोजी रोटी दी है। ऐ ऐसे चुनिंदे लोग हैं जो देशद्रोही की कतार में खडे हैं जिसे समाज, मुल्क की इज्जत से कोई सारोकार नहीं जिसे महज अपने अहम की परवाह है अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की परवाह है जिसे पूरा नहीं होने की स्थिति में वे कहां तक जा सकते हैं इसे इन लोगों ने अपने कुत्सित प्रयास द्वारा दिखा दिया। कम से कम अब तो इन्हें अपने उपर शर्म करनी चाहिए जिसकी रोटी मिल रही, जो रोटी दे रहा उसे ही इन लोगों ने बेइज्जती का घाव दे दिया है और उसके उपर बेशर्मी की हंसी दिन प्रतिदिन अपने होंठो पर लिए बेफिक्री से घूम रहे हैं।
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