पिछले दिनों जो कुछ हुआ उससे गद्दार, नमकहराम शब्द भी शर्मशार हो गया। लोगों ने व्यक्तिगत लडाई लडने की कोशिश में नमकहरामी तक कर डाली। जिसका नमक खाया उसकी ही बेइज्जती कराने में कोई कसर नही छोडी। अपने हित की, अपने अहम की, अपने स्वाभिमान की लडाई में उस समाज की बेइज्जती करा डाली जिसने उसे रोजी रोटी दी है। ऐ ऐसे चुनिंदे लोग हैं जो देशद्रोही की कतार में खडे हैं जिसे समाज, मुल्क की इज्जत से कोई सारोकार नहीं जिसे महज अपने अहम की परवाह है अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की परवाह है जिसे पूरा नहीं होने की स्थिति में वे कहां तक जा सकते हैं इसे इन लोगों ने अपने कुत्सित प्रयास द्वारा दिखा दिया। कम से कम अब तो इन्हें अपने उपर शर्म करनी चाहिए जिसकी रोटी मिल रही, जो रोटी दे रहा उसे ही इन लोगों ने बेइज्जती का घाव दे दिया है और उसके उपर बेशर्मी की हंसी दिन प्रतिदिन अपने होंठो पर लिए बेफिक्री से घूम रहे हैं।
Shadab Shafi, Doctor, Tata Main Hospital, Jamshedpur की करतूत पिछले दिनों 31 मई, 2014 को संध्या 6 बजे के करीब मैं टीएमएच में भर्ती हुआ था। मुझे उस वक्त ठंड लगकर बुखार की शिकायत थी। मैं टीएमएच के 3ए वार्ड के बेड नं. 15 में एडमिट हुआ था। मेरा बेड दो बेडों के बीच में था, मेरे बेड के बाएं साइड बेड नं. 14 पर एक लगभग 65 वर्ष का बूढा मरीज एडमिट था जिसे शायद अस्थमा की शिकायत थी। दिनांक 1 जून, 2014 दिन रविवार की बात है उस समय संध्या के लगभग 7 बज रहे होंगे। बेड सं. 14 के बूढे मरीज की तबीयत अचानक ही खराब हो गयी, वह बहुत ही जोर जोर से खांस रहा था तथा उसकी सांस तेजी से फूल रही थी। मेरे ख्याल से उसे अस्थमा का अटैक आया था। उस वक्त मुझसे मिलने मेरे एनएमएल में मेरे साथ काम करने वाले श्री केजी साइमन भी आए हुए थे। मैं उनसे बात कर रहा था तथा बीच बीच में उस बूढे मरीज की तेज कराहती आवाज बरबस हम दोनों का ध्यान उस ओर खींच रही थी तभी श्री साइमन ने मुझसे बिना चीनी की चाय लाने की बात कही और वार्ड से बाहर की ओर निकल गऐ। बगल के बेड संख्या् 14 पर अफरा तफरी का महौल बना हुआ था। उस वक्त उस मरीज
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