पिछले तीन दिनों से अन्ना हजारे अनशन पर बैठे हुए हैं। उन्होंने पिछले तीन दिनों से कुछ भी खाया पीया नहीं है मगर इस दौरान हमारे देश के 120 करोड की आबादी के अधिकांश लोग अपना जीवन पूर्व की तरह ही जिए जा रहे हैं जिसमें मैं खुद भी शामिल हॅूं। पिछले तीन दिनों के दौरान जब भी कुछ खा पी रहा हॅूं मेरे जेहन के सामने एक चेहरा अकस्मात ही नजर आ रहा है वह फिर मैं अपने आप को धिक्कारने लगता हॅूं। मुझे आत्मग्लानि महसूस हो रही है। मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं वर्ष 1947 के पहले के समय में हॅूं और जबकि समूचा देश स्वतंत्रता संग्राम के लिए आंदोलनरत है मैं अंग्रेजों की वफादारी में अपना समय काट रहा हूँ। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं अपने आप को देशहित के लिए जारी इस आंदोलन में किसी प्रकार शरीक करूँ।
मैं क्या करूँ, कहां जाएं, किस प्रकार अन्ना हजारे के समर्थन में अपने हाथ उठाउं, किसका-कहां विरोध करूँ। आज फिर से एक बार देश को भ्रष्टाचार की गुलामी से छुटकारा दिलाने के लिए एक और गांधी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं मगर मैं खुद को विवश पा रहा हॅूं इस आंदोलन का हिस्सा नहीं बन पाने के कारण।
जन लोकपाल विधेयक को पारित कराने का प्रयास आने वाले भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयास है इसे लेकर किए जा रहे आंदोलन को हालांकि देश भर में भारी समर्थन मिल रहा है मगर इस प्रयास में मैं अपना कोई हिस्सा नहीं दे पा रहा हॅूं इसके लिए मुझे आत्मग्लानि हो रही है।
देश डूब रहा है गर्त के अंधेरे में, देश को डुबाने वालों को इससे कोई मतलब नहीं कि जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम करे या कुछ और यह सब कुछ देखकर तो यही लगता है कि अब देश को दूसरी आजादी की जरूरत है और मुझ जैसे युवा हाथ पर हाथ रखकर सिर्फ तमाश देख रहे हैं हमें भी अपने स्तर पर इस आंदोलन को सफल बनाने की दिशा में प्रयत्न करने की आवश्यकता हैा
जय हिन्द जय भारत ।
1 टिप्पणी:
आप ने लेक लिख कर समर्थन दिया है जब संभव हो आंदोलन का हिस्सा बनिये । ग्लानि से ुत्साह खतम हो जाता है ।
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