रविवार, 25 जुलाई 2010

मेरी अंतिम इच्छा.

बहुत कुछ सोचकर अंततः आज मैं अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर रहा हूँ। जन्म से लेकर आज तक मैं जलता ही रहा हूँ। कभी अपनों ने तो कभी अपने बनकर परायों ने मुझे आज तक सिर्फ और सिर्फ जलाया ही है। मैं रोजाना ही इस तपिस में जल ही रहा हूँ। वर्षों से मेरा रोम-रोम इस तपिस की ज्वाला से अन्दर ही अन्दर सुलग रहा है। मैं अब और जलना नहीं चाहता इसलिए मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मरने के बाद मेरे नश्वर शरीर को जलाया नहीं जाय बल्कि इसे दफना दिया जाय। बहुत दिनों तक सोचने के बाद मैंने अपने इस अंतिम इच्छा को व्यक्त की है। कल को मैं रहूँ या ना रहूँ मेरे इस ब्लॉग के माध्यम से अभिव्यक्त टिप्पण को मेरी अंतिम इच्छा मानी जाय।
और एक बात मैंने ROSHANI FOUNDATION के द्वारा अपना नेत्र दान करवा रखा है अतः मेरे मरने के फ़ौरन बाद इसकी सूचना नजदीकी हॉस्पिटल को देकर मेरा नेत्र दान कराने की कृपा की जाय.

मेरी चाहत या मेरा पागलपन.

एक लड़की जो मेरे दिल में मोहब्बत का पैगाम लेकर आई और जिसे जिन्दगी मानकर मैं जीने को विवश हो गया मगर सच्चाई तो यही है कि कभी भी उसके साथ बैठकर दो चार शब्द प्यार भरी बातें तक नहीं हुई। प्यार की बातें तो छोडिये जनाब उसने तो कभी भी मेरी एक तरफा मोहब्बत पर ऐतबार तक नहीं किया। 1994 से आरम्भ हुई मेरी मोहब्बत में हम सिर्फ उनसे व्यक्तिगत रूप से सिर्फ और सिर्फ एक बार ही मुलाकात कर पाए (मेरा ब्लॉग पढ़े - मुलाकात (पहली और आखिरी)-एक सच्ची मोहब्बत की अनकही सच्ची कहानी, ब्लॉग दिनांक 21 अक्टूबर 2009) और उस मुलाकात में भी हम किसी प्रेमी प्रेमिका की तरह नहीं मिले थे। वो मुलाकात का अंजाम भी बस सहानुभूति से शुरू होकर सहानुभूति पर समाप्त हो गयी थी। हमारी मुलाकात एक बार और हुई थी मगर उसे व्यक्तिगत मुलाकात नहीं कहा जा सकता क्यूंकि हम दोनों किसी की शादी में मिले थे और वहां भी हमारी मुलाकात किसी अजनबी की तरह ही हुई थी।
इतना कुछ होने के बावजूद मैं आज तक किसी के एकतरफा प्यार में पागलों की तरह जीवन व्यतीत करता आ रहा हूँ। जो भी मुझे और मेरी एक तरफा मोहब्बत के बारे में जानता है वो मुझपर आज भी हँसता है। मगर मैं क्या करूँ मैंने तो प्यार किया है, मेरी नज़रों में येही प्यार है। उसे पाना या फिर उसके साथ जिन्दगी गुजरना मेरे नसीब में शायद नहीं था मगर उसके प्यार में जिन्दगी गुजरना तो मेरी नसीब में है। आज भी वो मेरी नज़रों के सामने रहती है, उसकी वो मुस्कराहट, उसकी वो नादानी, उसका वो भोलापन, उसकी चाल ढाल सबकुछ आज भी मेरी नज़रों के सामने ही है। 1994 से आज 2010 हो चूका है मगर मेरे लिए तो लगता है जैसे बीते कल की ही बात हो। उसके खवाब मैं अब नहीं देखता उसको पाने की लालसा अब मुझमें नहीं रही मगर उसका प्यार जो मेरे दिल में बरसों पहले था वो आज भी कायम ही है।
वो आज मेरे पास नहीं, मेरे साथ नहीं मगर मैं खुश हूँ कि वो अपनी जिन्दगी में खुश तो है। उसकी खुशियों में ही मेरी खुशियाँ शामिल हैं। मुझे सिर्फ इस बात का दुःख है कि वो मेरी बेपनाह मोहब्बत के प्रति लापरवाह रही, मेरी मोहब्बत को कभी उसने तरजीह नहीं दी, मेरे प्यार को उसने सिर्फ मजाक समझा। मैं नहीं जनता मैं कहाँ गलत था, मैं सिर्फ इतना जनता हूँ कि मैं उसके काबिल नहीं था, मैं अपने पैर पर खड़ा नहीं था, यही कारन था कि मैं खुद को उसकी नज़रों से बचाता फिरता रहा। कभी कभी मैंने कुछ गलतियाँ भी कि इसका ताउम्र अफ़सोस रहेगा।
शायद लोग मोहब्बत के माने अपने हिसाब से लगाते होंगे मगर मेरी नज़रों में येही मोहब्बत है। मैंने मोहब्बत की थी, की है और ताउम्र मेरी मोहब्बत मेरे दिल में धडकनों की तरह धड़कती रहेगी। वो कल भी मेरे पास मेरे साथ नहीं थी, वो आज भी मेरे पास मेरे साथ नहीं है और मुझे मालूम है वो आनेवाले कल को भी मेरे पास मेरे साथ नहीं रहेगी मगर इससे मुझे और मेरी मोहब्बत को क्या फर्क पड़ता है। मैंने उसे चाहा था, उसे अपने दिल के मंदिर में इश्वर का दर्जा दिया था आज भी मेरी चाहतों पर वो ही काबिज है और मेरे मन के मंदिर में आज भी इश्वर के रूप में वो ही समाई हुई है।
अपने इष्ट से मेरी यही दुआ है कि वो जहाँ भी रहे खुश रहे उसकी जिन्दगी खुशहाल रहे.