सोमवार, 15 जून 2009

बीता वक्त और आज के बीच मैं

दुनिया अजीब है। कौन कब कहाँ आकर मिल जाए कोई सोच नहीं सकता। बीते हुए वक्त और आज के बीच में ख़ुद को एक नए दुनिया में देख रहा हूँ। कल भी मेरे पास सबकुछ होकर भी मैं तनहा था और आज भी मैं सबकुछ पाकर भी तनहा ही हूँ। खुश हूँ बहुत खुश हूँ जी रहा हूँ बस जिए जा रहा हूँ।

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