मंगलवार, 1 मार्च 2016

धिक्कार है तूझपे

जिस माता ने तूझे जन्म दिया
उसकी गोद में बैठकर
दुश्मनों की जय जयकार करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
जिसकी छाती पर, गुजारा तूने अपना बचपन
उस माटी को कलंकित करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
देश की आस्था पर हमला करवाकर
जिसने आतंकवादियों का साथ दिया
उसको शहीद बताकर, शहीदों का अपमान करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
देश के भविष्य तुम, देश के तुम कर्णदार
ऐ कैसी अभिव्य्क्ति तेरी, जिससे समूचा देश हो शर्मसार
ऋषि-मुनियों की यह पवित्र भूमि
जिससे पूरा विश्व हुआ आलोकमय
उसी जमीं पर ऐसी, विकृत मानसिकता रखते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
छात्र जीवन होता बडा संयमित
दार्शनिक-सा विचार होता
बाल-सुलभ सा व्यवहार होता
निश्छल-सा स्वभाव होता
छात्र नाम को लांछित करके
क्यों देशद्रोही साजिश रचते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
सहिष्णु हैं सदभाव हैं,
हर धर्म के प्रति आदर भाव है
न जाने क्यों फिर कट्टरपंथी बनकर
गांधी की इस तपो‍भूमि को
हिंसात्मक नारों से उद्वेलित करते हो
धिक्कार है तूझपे, धिक्कार है तूझपे
................................................परमार्थ सुमन