आज 21 जून, 2011 हैा बीता कल 20 जून, 2011 था। आज ही के दिन अर्थात 20 जून, 2006 को मैंने दुर्गापूर में सरकारी कर्मचारी के रूप में कार्यभार ग्रहण किया था। एक सरकारी नौकरी जिसने मेरी जिंदगी ही पूरी तरह से बदल दी। क्या से क्या हो गया। 20 जून, 2006 से पहले के समय के बारे में कभी सोचता भी हूं तो सिहर जाता हॅूं। क्या जिंदगी थी।
सुबह 09.15 से 05.45 तक की ड़यूटी फिर 6.15 के करीब घर वापस आकर तैयार होकर रात 08 बजे से 01.30 बजे की दूसरी ड़यूटी को जाना फिर लगभग 2 बजे के करीब घर वापस आना। 3 से 4 बजे के करीब सुबह में सोना फिर सुबह 8.30 बजे उठकर पहली ड़यूटी की तैयारी में लग जाना। कभी कभी तो दूसरी ड़यूटी सुबह 2 बजे के बाद ही खत्म होती।
इतना भागदौड करने के बावजूद हाथों में महज 5500/- पांच हजार पांच सौ के करीब राशि का आना और इससे अपने छोटे से परिवार को चलाने के लिए गुत्थमगुत्थी करना।
वक्त बदला, मेरी मेहनत से ज्यादा मेरी किस्मत का हाथ रहा इसमें। 20 जून, 2006 को जब मैंने एक सरकारी कार्मिक के रूप में अपना कार्यभार संभाला तो उस समय मेरे हाथों में लगभग सबकुछ काटने के बाद 5000/- की राशि मिलने लगी। रहने का घर, पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा नि:शुल्क हो जाने के कारण 5000/- की राशि में मुझे सारा जहान नजर आने लगा। मैं खुद को दुनिया का सबसे अमीर आदमी मानने लगा।
वर्तमान में मैं जमशेदपुर वापस आ चुका हूँ। इस बीच मेरी पदोन्नति भी हो चुकी है। परिवार भी बढ चुका हूँ। अब मैं और मेरी पत्नी के साथ मेरे दो छोटे बच्चे भी हैं। जिन्दगी की गाडी चल रही है। बीच बीच में अवरोध आते रहते हैं मगर इससे कोई फर्क नहीं पडता। ईश्वर पर आस्था है और उस पर भरोसा है।
कल और आज के दरम्यान काफी कुछ बदला हुआ है। अगर कुछ नहीं बदला तो सिर्फ मेरी सोच। मैंने काफी तंग हालात में अपना बचपन बीताया है मैं उन हालातों में अपने बच्चों को नहीं देखना चाहता। यही कारण है कि आज लगभग 15000/- का वेतन होने के बावजूद मेरे पास महीने के अंत में एकाउंट राफ साफ रहता है। कई बार तो महीने के 15 तारीख के बाद ही अफरातफरी का माहौल बन जाता है। परंतु इसके बावजूद मुझे लगता है कि दुनिया का सबसे अमीर आदमी मैं ही हॅूं। पिछले ही दिनों जबकि मेरे बैंक एकाउंट में सिर्फ 72 रुपए बचे थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब 20 जून के बाद से 30 जून तक का सफर कैसे कटेगा। इसी उधेडबून में अपने बॉस से मैंने यह आग्रह किया कि ट़यूशन फी का बिल पेमेंट यदि कर दिया जाए तो अच्छा होगा और साथ ही मैंने अपने व्यक्तिगत परेशानी की बात भी उनसे कह दी। उन्होंने अपनी हामी भरी और मैं लग गया ट़यूशन फी के बिल को बनाने में तकरीबन 2 से 3 दिनों में ही बिल तैयार कर मैंने उस बिल का पेमेंट करा लिया। 20 तारीख को ही ट़यूश्न फी के मद में मुझे 6740/- रुपए प्राप्त हुए।
क्या से क्या बदल गया है बीत कल और आज में, कहां 2006 में मेरी पूरी सैलरी ही 5000/- के करीब होती थी और कहां आज मुझे बच्चे को पढाने के मद में 6740/- का भुगतान हो रहा है।
यह सब कुछ देखकर तो यही लगता है कि मैं जो कुछ इस ऑफिस को दे रहा हॅूं वो बहुत ही कम है मुझे दिए जा रहे वेतन की तुलना में मेरे द्वारा किया जा रहा काम बहुत ही कम है। कहां मैं रोजाना 13 से 14 घंटे काम करके 5500/- कमा पाता था और कहां आज मुझे तकरीबन 15000/- रुपए सैलरी मिलती है वो भी रोजना 8 घंटे के काम के बदले जबकि साप्ताहिक छुट़टी दो दिनों की है। ऐसे में मुझे हर पल ऐसा एहसास होता है कि मैं इस ऑफिस के साथ नाइंसाफी कर रहा हॅूं। मुझे और भी मेहनत करना चाहिए तथा अपना इफोर्ट और भी देना चाहिए। इस दिशा में मैं प्रयासरत्न भी हॅूं यही कारण है कि मैं न सिर्फ मुझे दिए गए कार्य को कर रहा हॅूं बल्कि नए नए काम में भी अपना योगदान देने की कोशिश करता रहता हॅूं।
दुर्गापूर कार्यालय के लगभग सभी सहयोगियों को मैं भुला नहीं सकता। सिर्फ 2 वर्ष और कुछ महीनों के अपने कार्यकाल में ही मेरी घनिष्ठता अनेक लोगों से हो चुकी थी जो आज तक कायम है और आशा ही नहीं पूर्ण विश्वाष है कि आने वाले कल को भी कायम ही रहेगी।
सुबह 09.15 से 05.45 तक की ड़यूटी फिर 6.15 के करीब घर वापस आकर तैयार होकर रात 08 बजे से 01.30 बजे की दूसरी ड़यूटी को जाना फिर लगभग 2 बजे के करीब घर वापस आना। 3 से 4 बजे के करीब सुबह में सोना फिर सुबह 8.30 बजे उठकर पहली ड़यूटी की तैयारी में लग जाना। कभी कभी तो दूसरी ड़यूटी सुबह 2 बजे के बाद ही खत्म होती।
इतना भागदौड करने के बावजूद हाथों में महज 5500/- पांच हजार पांच सौ के करीब राशि का आना और इससे अपने छोटे से परिवार को चलाने के लिए गुत्थमगुत्थी करना।
वक्त बदला, मेरी मेहनत से ज्यादा मेरी किस्मत का हाथ रहा इसमें। 20 जून, 2006 को जब मैंने एक सरकारी कार्मिक के रूप में अपना कार्यभार संभाला तो उस समय मेरे हाथों में लगभग सबकुछ काटने के बाद 5000/- की राशि मिलने लगी। रहने का घर, पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधा नि:शुल्क हो जाने के कारण 5000/- की राशि में मुझे सारा जहान नजर आने लगा। मैं खुद को दुनिया का सबसे अमीर आदमी मानने लगा।
वर्तमान में मैं जमशेदपुर वापस आ चुका हूँ। इस बीच मेरी पदोन्नति भी हो चुकी है। परिवार भी बढ चुका हूँ। अब मैं और मेरी पत्नी के साथ मेरे दो छोटे बच्चे भी हैं। जिन्दगी की गाडी चल रही है। बीच बीच में अवरोध आते रहते हैं मगर इससे कोई फर्क नहीं पडता। ईश्वर पर आस्था है और उस पर भरोसा है।
कल और आज के दरम्यान काफी कुछ बदला हुआ है। अगर कुछ नहीं बदला तो सिर्फ मेरी सोच। मैंने काफी तंग हालात में अपना बचपन बीताया है मैं उन हालातों में अपने बच्चों को नहीं देखना चाहता। यही कारण है कि आज लगभग 15000/- का वेतन होने के बावजूद मेरे पास महीने के अंत में एकाउंट राफ साफ रहता है। कई बार तो महीने के 15 तारीख के बाद ही अफरातफरी का माहौल बन जाता है। परंतु इसके बावजूद मुझे लगता है कि दुनिया का सबसे अमीर आदमी मैं ही हॅूं। पिछले ही दिनों जबकि मेरे बैंक एकाउंट में सिर्फ 72 रुपए बचे थे। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब 20 जून के बाद से 30 जून तक का सफर कैसे कटेगा। इसी उधेडबून में अपने बॉस से मैंने यह आग्रह किया कि ट़यूशन फी का बिल पेमेंट यदि कर दिया जाए तो अच्छा होगा और साथ ही मैंने अपने व्यक्तिगत परेशानी की बात भी उनसे कह दी। उन्होंने अपनी हामी भरी और मैं लग गया ट़यूशन फी के बिल को बनाने में तकरीबन 2 से 3 दिनों में ही बिल तैयार कर मैंने उस बिल का पेमेंट करा लिया। 20 तारीख को ही ट़यूश्न फी के मद में मुझे 6740/- रुपए प्राप्त हुए।
क्या से क्या बदल गया है बीत कल और आज में, कहां 2006 में मेरी पूरी सैलरी ही 5000/- के करीब होती थी और कहां आज मुझे बच्चे को पढाने के मद में 6740/- का भुगतान हो रहा है।
यह सब कुछ देखकर तो यही लगता है कि मैं जो कुछ इस ऑफिस को दे रहा हॅूं वो बहुत ही कम है मुझे दिए जा रहे वेतन की तुलना में मेरे द्वारा किया जा रहा काम बहुत ही कम है। कहां मैं रोजाना 13 से 14 घंटे काम करके 5500/- कमा पाता था और कहां आज मुझे तकरीबन 15000/- रुपए सैलरी मिलती है वो भी रोजना 8 घंटे के काम के बदले जबकि साप्ताहिक छुट़टी दो दिनों की है। ऐसे में मुझे हर पल ऐसा एहसास होता है कि मैं इस ऑफिस के साथ नाइंसाफी कर रहा हॅूं। मुझे और भी मेहनत करना चाहिए तथा अपना इफोर्ट और भी देना चाहिए। इस दिशा में मैं प्रयासरत्न भी हॅूं यही कारण है कि मैं न सिर्फ मुझे दिए गए कार्य को कर रहा हॅूं बल्कि नए नए काम में भी अपना योगदान देने की कोशिश करता रहता हॅूं।
दुर्गापूर कार्यालय के लगभग सभी सहयोगियों को मैं भुला नहीं सकता। सिर्फ 2 वर्ष और कुछ महीनों के अपने कार्यकाल में ही मेरी घनिष्ठता अनेक लोगों से हो चुकी थी जो आज तक कायम है और आशा ही नहीं पूर्ण विश्वाष है कि आने वाले कल को भी कायम ही रहेगी।