शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

इश्वर, आत्मा और कुछ अनसुलझे रहस्य !

आत्मा, ना जन्म लेती है, ना ही मरती है, और ना ही उसे जलाकर नष्ट किया जा सकता है। ये वो सारी बातें हैं, जो हम गीता स्मरण के कारण जानते और मानतें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, हम लिखी बातोंपर जल्द ही यकीं कर लेतें हैं और फ़िर हमारे वंशज उसी को मानते चले जातें हैं। हम हिन्दुस्तानी हैं, विश्वास करना हमारे रगों में है, किसी ने कुछ लिख दिया, किसी ने कुछ कह दिया बस हमने उसपर बिना कोई सवाल किए विश्वास कर लिया। हम रामायण से लेकर महाभारत तक तो सिर्फ़ मानकर विश्वास करते ही तो आ रहें हैं। हम शिव से लेकर रावण तक सिर्फ़ विश्वास के बल पर ही तो टिके हुए हैं। हमें हमारे माता-पिता ने बतलाया कि ब्रम्हा, बिष्णु, शिव, राम, हनुमान, गणेश, विश्वकर्मा, काली, दुर्गा आदि हमारे भाग्य विधाता हैं और हमने हिन्दुस्तानी का धर्म निभाते हुए ये मान लिए कि वे इश्वर हैं, हमारे भाग्य विधाता हैं। जब कोई विपत्ति कि बेला आई हमने उनका ध्यान करना आरम्भ कर दिया। बिना कोई सवाल किए हमने उनको इश्वर मानना आरम्भ कर दिया और फिर येही परम्परा बन स्थापित हो गई। ये ही दुहराव फिर हम भी अपने-अपने संतानों के साथ करेंगे, जो हमारे साथ किया गया।

हमारे हिंदू समाज में दशरथ पुत्र राम को ना सिर्फ़ इश्वर का दर्जा प्राप्त है अपितु उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम का सम्मान भी दिया जाता है। बचपन से लेकर आज तक मेरे अन्तःमन में राम के इश्वर और मर्यादा पुरुषोत्तम को लेकर कई सवाल उभरतें रहें हैं, किंतु आज तक किसी ने मेरे उन सवालों का मुझे संतुष्ट करने लायक जवाब नहीं दिया।

* अयोध्या में राम राज्य की स्थापना राजा राम ने नहीं बल्कि उनके छोटे भाई भरत ने की थी, और यह वो समय था जब राम वनवास में थे और उनके भाई भरत अयोध्या की बागडोर संभल रहे थे।
* बाली का वध राम ने छुपकर किया था वो भी सुग्रीव के निकटता के कारण जबकि सुग्रीव और बाली की निजी शत्रुता थी। छुपकर किया गया बाली का वध राम के इश्वर चरित्र और मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्र को कलंकित करता है।
* लंका में अग्नि द्वारा अपनी पत्नी सीता के चरित्र का सत्यापन करने के बावजूद बिना बताये अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर उसे अपने भाई लक्ष्मण द्वारा जंगल में अकेला छोड़ देना उनके इश्वर चरित्र और मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्र को कलंकित करता है।
और भी ऐसे कई उदहारण हैं जो राम के इश्वर और मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्र के ऊपर प्रश्न अंकित करता है। येही कारण है की मैं व्यक्तिगत रूप से उन्हें इश्वर नहीं मानता।

ऐसे ही कई सवाल कृष्ण को इश्वर मानने से लेकर है। मुझे पता है यदि कोई इनके इश्वर चरित्र पर सवाल मात्र उठाए तो हमारे हिंदुस्तान तो मानो भूचाल ही आ जाएगा। क्या हमें हक़ नहीं अपनी परम्पराओं को सार्थक रूप देने का। क्या हमें हक़ नहीं विश्वास करने से पहले उसके बारे में जानने का।

हम आत्मा की बात करतें हैं। एतिहासिक संदर्भो के आधार पर हम मानते चले आ रहें है की ये अजन्मा है, ये अविनाशी है, ये अजर - अमर है। मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण कुछ अलग ही है।

* यदि आत्मा जन्म नही लेती तो फ़िर ये जनसँख्या निरंतर इतनी बढ़ क्यों रही है? नए लोग जो पैदा हो रहें हैं वे आत्माएं कहाँ से आ रहीं हैं?

इन्ही आत्मा-paramatmaon के कारण हम मनुष्यता को बिल्कुल ही भूलते जा रहें हैं। हम हिंदू हैं, वो मुस्लिम है, वो सिख है, वो इसाई है। क्या हो रहा है यहाँ? क्यों हो रहा है ये सब? कौन है इन सब के पीछे? एक सवाल मगर कोई जवाब नही :?
* कई गैर मुस्लिम लोग महज इस कारण की मांस कटाने वाला कोई मुस्लमान है, उससे मांस नहीं खरीदता, उनका मानना है की मुस्लिम मांस हलाल करके काटते हैं जिससे मरने वाला जानवर को धीरे धीरे करके मारा जाता है। मेरा ये मानना है की जानवर की किसी प्रकार से मारा जाए अंततः वो मारा तो जाता ही है, फिर उसके मारे जाने के तरीकों पर सवाल खड़े करना कहाँ तक शोभा देता है। एक तो आप जानवर के मृत शरीर के टुकड़े (मांस) को खाने जा रहें हैं और फिर ये भी सोचने बैठतें हैं की इसे कितनी पीडा से मारा गया है। है ना क्या दिलचस्प सवाल?

कई सवाल हैं मेरे अंतर्मन में जो जवाब की प्रतीक्षा में हैं।
आप अपने राय जरुर कमेन्ट में लिखें।