गुरुवार, 7 अगस्त 2025

सजदा (एक मुलाक़ात मेरे दिल की उसके धड़कन से)

आज का दिन मेरे जीवन के सबसे यादगार दिन के रूप में कैद हो गया. आज 31 वर्षो के बाद मेरे दिल की धड़कन के सामने मुझे घंटो बैठने का सौभाग्य हासिल हुआ जिसने कभी मुझसे "हम आपको लाइक नहीं करते हैं" कहकर मेरे ह्रदय के एहसासों को तार तार कर दिया था इसके बावजूद जिसके एहसास मेरे साथ मेरी परछाई बनकर पिछले 31 वर्षो से मेरे साथ रहगुजर कर रही थी. हालांकि उससे मेरी व्यक्तिगत मुलाक़ात वर्ष 2000 के बाद लगभग 25 वर्षो बाद हुई. (मुलाक़ात - पहली और आखिरी)

आज की मुलाक़ात में मैंने सिर्फ उसके - मेरे जीवन की कुछ यादगार कहानी को बेहद सरलता से उसके साथ शेयर किया और वो शांत होकर मेरी कहानी सुनती रही. इस दौरान कुछ ही किस्से कुछ ही कहानी आज उसे सूना पाया जबकि दिल में दफ़न अधिकांश किस्से दिल में ही दफ़न रह गए,  उन किस्से कहानी को न तो उससे कह पाया और न ही उससे कह पाया कि "आज भी उसे नहीं भूल पाया हूँ, मेरी परछाई में आज भी उसके एहसास काबिज हैं". इतना ही नहीं अपने साथ 1996 से 2001 के दौरान लिखें कुछ डायरी भी साथ ले गया था. उनमें लिखी कुछ दिल की कहानी को येल्लो टैग करके ले गया था कि उसे पढ़ाऊंगा, बहुत हिम्मत करके डायरी उसके सामने निकाल तो ली मगर अफ़सोस कि उसके किसी शब्द को मैं उसे पढ़ाना तो दूर उसे खोलकर दिखाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाया. 

इन सबके बावजूद उसके साथ बिताये कुछ घंटे मुझे जीवन भर की संतुष्टि प्रदान कर रहे. मेरा जीवन धन्य हो गया ऐसा महसूस कर रहा हूँ. ऐसा महसूस हो रहा जैसे कि आज कुछ घंटे में ही मैंने अपनी पूरी 1994-2025 (31 वर्ष) जिंदगी जी ली. अब कोई इच्छा नहीं रही. ह्रदय को ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मुझे जीते जी मोक्ष की प्राप्ति हो गई. अब इस जीवन से कोई अभिलाषा नहीं रही.

उसका सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. बहुत डर रहा था यह सोचकर कि:

कहीं उससे बात करते समय भावुक होकर मेरी निगाहों से पानी की धारा बरबस न निकल पड़े!

कहीं मैं जज़्बाती होकर उससे लिपट कर रोने न लग जाऊं!

इस डर के साथ मुलाकात करने जाना और फिर ह्रदय की सारी भावुकता पर विजय प्राप्त करते हुए मुलाक़ात कर लेना मेरे लिए किसी युद्ध पर विजय प्राप्त कर लेना जैसा था.

आखिर में, उसे छोड़ते समय, उसके अपार्टमेंट के सामने मैंने अपनी कार रोकी और गेट खोलकर बाहर खड़ा हो गया. पीछे की सीट से वह निकली और अपने अपार्टमेंट के अंदर दाखिल हो गई. उसके जाते ही अचानक मैंने अपनी कार के पीछे की सीट का दरवाजा खोला और अपने हाथों से कार के अंदर उस जगह की मिट्टी को स्पर्श किया जहाँ उसके पैर पड़े थे और उस मिट्टी को सजदा करते हुए अपने सर पर लगा लिया और मैंने जीते जी ऐसा महसूस किया जैसे मुझे जीवन का अंतिम दर्शन प्राप्त हो गया हो. शब्द नहीं है इन एहसासों को क्या लिखूं जो मैंने ऐसा करके सुखद एहसास किया. ईश्वर उसे हमेशा खुश रखे.

ह्रदय में उस शख्स के प्रति कृतज्ञता के पुष्प अर्पित करते हुए वापस आ रहा था जिसने मुझे मेरे दिल की धड़कन से मिलवाया था. ईश्वर उसे खुश रखे. वापस आते वक़्त उसे याद करके निगाहें बेवजह बरबस पानी बहा रहा था और ह्रदय चित्कार कर रहा था. उसका नाम लेकर चीख रहा था. उससे लिपटकर, उसे अपनी बांहों में भींचकर चीख-चीखकर रोने की इच्छा जता रहा था. 

ईश्वर उसे हमेशा खुश रखे. 🙏


सोमवार, 4 अगस्त 2025

हे धरती माँ, मुझको अपने आप में समाहित कर लो

 हे धरती माँ, मुझको अपने आप में समाहित कर लो. 

इतने वर्षो (2025 - 1994) की पीड़ा को ह्रदय में दफनाये जी रहा. इस जीवन में सारे रिश्ते - नातों को सहेजने की पूर्णतः कोशिश की. इस दौरान चार बार आत्मह्त्या की भी असफल कोशिश की मगर फिर भी 47 बरस जिंदगी के काट लिए. 

न जाने क्यूँ माता सीता का धरती में समाहित होने का प्रसंग बरबस याद आ रहा:

अयोध्या के राजमहल में देवी सीता आती हैं। सीता जी अपने चरित्र का प्रमाण देते हुए हाथ जोड़कर और प्रभु श्रीराम को देखे बिना कहती हैं कि "यदि मैं पवित्र हूं और मैंने प्रभु श्रीराम के अतिरिक्त किसी और के बारे में सोचा भी ना हो, तो धरती मां मैं आप में समा जाऊं। कृपया मुझे अपने साथ ले चलो।" सीता के मुख से यह बात सुनकर राजमहल की धरती तुरंत फट गई और स्वंय देवी धरा आकर सीता माता को अपने साथ ले गई। अपने सामने ऐसा विचित्र नजारा देखकर राजमहल में मौजूद लोग वैसे ही खड़े रह गए और माता सीता धरती में समा गईं।

कुछ इसी तरह,  हे धरती माँ, मुझको अपने आप में समाहित कर लो. अब यही भाव मेरे ह्रदय में पैदा हो रहे. 

तुमसे मुलाक़ात, और मेरी जिंदगी की सारी आरजू समाप्त. 

 हे धरती माँ, मुझको अपने आप में समाहित कर लो.

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

वनवास


घर से वनवास को निकले (2025 - 2006) लगभग 20 वर्ष हो गए हैं। 

फिर से एक मुलाकात की ख्वाहिश

वर्ष 2024 मेरे जीवन का काफी उथल-पुथल भर वर्ष रहा।

अप्रैल 2024 की घटना, जब मेरे छोटे भाई ने अपने एकलौते पुत्र को खो दिया, ने मेरे जीवन में काफी कुछ बदलाव कर दिया। इस घटना ने मेरे जीवन के प्रति मेरे नजरिए को पूरी तरह से ही बदल कर रख दिया।  इसी बीच 31 अगस्त, 2024 को लगभग 21 वर्षों के बाद मुझसे मेरी जिंदगी की अचानक मुलाकात भी हुई और उसे ठीक से नहीं देख पाने का मलाल भी रहा। 


जीवन में अगले जन्म का इंतजार करने की चाह के साथ-साथ जीवन को पल-पल गुजारने वाले चिंतन करते हुए मेरे जीवन में राधे-कृष्ण का प्रवेश तथा दिसंबर 2024 आते-आते मुझे ऐसा महसूस हो चला कि अब मेरा कोई और जन्म नहीं होनेवाला, मनुष्य के रूप में शायद मेरा यही अंतिम जन्म है। इस भाव के साथ जीवन जीना भी कितना सुकून भरा है। सब कुछ राधे-कृष्ण की कृपा से हो रहा है अब तो यही लगता है। 

अब न कोई अगला जन्म, वो मेरी डायरी के पन्ने, वो इंतजार, कई अनकही बातें, कई अधूरी ख्वाहिशें - सब कुछ नजारा बदल सा गया। यही सोचते हुए कुछ दिनों पहले न जाने क्यूँ मेरी जिंदगी से फिर से एक मुलाकात की ख्वाहिश मेरे हृदय में पनपी और मैंने अपनी एक दीदी  से उससे मुलाकात कराने का अनुरोध भी कर दिया मगर फिर मेरे हृदय में 20 मई 2001 की घटना तरोताजा हो गई ( पढ़ें 20 मई, 2001 की कहानी)  कि किस परिस्थिति में मैंने उससे एक अंतिम मुलाकात करने की अर्जी उससे लगाई थी और उसने मुझसे क्या कुछ कहकर मिलने से मना कर दिया था। यह सोचकर मैं डर गया और दीदी से आज मुलाकात कराने के अपने अनुरोध को माफी मांगते हुए वापस ले लिए। 

मेरे जीवन का अब कोई भरोसा नहीं। न जाने किस मोड पर कहाँ रुक जाए, ऐसा हृदय से महसूस कर रहा हूँ।  मेरे प्रति उसके हृदय में बसी नफ़रतों की यादें आज भी मेरे साथ हमेशा सफर करती है। 

उसके बोले गए शब्दों  "हम आपको लाइक नहीं करते" (पढ़ें पूरी कहानी) से लेकर "अपनी लिए एक लड़की तो ढूंढ नहीं पा रहा और चला है मेरे लिए लड़का ढूँढने" को याद करके मेरा हृदय आज भी जार-जार होता है। मगर शायद यही जिंदगी है। 


अब इस जीवन में किसी से कोई शिकायत नहीं रही। ईश्वर की भी मुझ पर असीम कृपा रही है। 

हृदय के अरमानों को अब एक छोर से दूसरे छोर तक बांधने की कोशिश में लगा हूँ।  देखता हूँ कहाँ तक सफल हो पाता हूँ।